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विस्तार
हाल ही में उत्तरी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि, 'लगभग 300 आतंकवादी जम्मू-कश्मीर के आसपास मौजूद हैं, लेकिन हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि वे कोई कार्रवाई करने में सक्षम न हों।' उन्होंने आगे कहा कि 'हमारे आंकड़ों के अनुसार, 82 पाकिस्तानी आतंकवादी और 53 स्थानीय आतंकवादी भीतरी इलाकों में सक्रिय हैं, जबकि चिंता का विषय 170 अन्य की आपराधिक गतिविधियां हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाई है।' द्विवेदी ने कहा कि लगभग 170 हाइब्रिड आतंकवादी थे। उन्होंने खुफिया जानकारी भी साझा की कि संभवत: 160 आतंकवादी आतंकी शिविरों में, 130 आतंकी उत्तरी पीर पंजाल (कश्मीर घाटी) में और 30 उसके दक्षिण में मौजूद हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान इस क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। पाकिस्तान ने उनके बयान का जवाब देते हुए अपनी संलिप्तता से इनकार किया।
उसके डीजी, आईएसपीआर (जनसंपर्क विभाग) ने कहा कि तथाकथित लॉन्च-पैड और आतंकियों के बारे में झूठे बयान और निराधार आरोप भारतीय सेना द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन से ध्यान हटाने का एक प्रयास है। साफ है कि पाकिस्तान जनरल द्विवेदी के बयान से बौखलाया हुआ है और वह जानता है कि भारत उसके लॉन्च-पैड्स पर कड़ी नजर रख रहा है। एक अन्य प्रेस कॉन्फ्रेंस में जम्मू और कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा कि जहां तक आतंकवाद की स्थिति का सवाल है, सक्रिय स्थानीय आतंकवादियों की संख्या घटकर दहाई अंकों तक रह गई है। उन्होंने कहा कि इस समय उत्तर कश्मीर पूरी तरह शांत है और अब आतंकवाद का प्रभाव कम है। इससे पहले उन्होंने कहा था कि नशीले पदार्थों का संकट एक बड़े खतरे के रूप में उभरा है, क्योंकि नशीले पदार्थों से पैदा धन आतंकवादी गतिविधियों को वित्तपोषित कर रहा है। हाल के दिनों में भारतीय सुरक्षा एजेंसियां नियमित अंतराल पर पाकिस्तानी ड्रोन को मारकर गिरा रही हैं। ज्यादातर ड्रोन आईईडी, पिस्तौल और ड्रग लाते हैं।
यह क्षेत्र हाइब्रिड आतंकवादियों के बढ़ते खतरे का सामना कर रहा है। सकारात्मक खुफिया सूचनाओं ने स्थानीय पुलिस को हाइब्रिड आतंकवादियों पर नकेल कसने में सक्षम बनाया है। इसके विपरीत, कश्मीरी राजनेता दावा करते रहे हैं कि हाइब्रिड आतंकवादियों के नाम पर निर्दोष लोगों को मारा जा रहा है। फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती लगातार कहते रहे हैं कि कश्मीर मुद्दे का स्थायी समाधान खोजने के लिए सरकार को पाकिस्तान से बात करनी चाहिए। फारूक ने तो यहां तक कहा कि भारत को उनसे बात करने के लिए जी-20 की अपनी अध्यक्षता का फायदा उठाना चाहिए। जब पुलवामा हमला हुआ था, उस समय पाकिस्तान के नवनियुक्त सैन्य प्रमुख जनरल असीम मुनीर आईएसआई के महानिदेशक थे। वह भारतीय प्रतिशोध के गवाह हैं। पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि अगर उसने बड़े हमले की कोशिश की, तो भारत सैन्य तरीके से जवाबी कार्रवाई करेगा।
नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम जारी है, इसका कारण है कि पाकिस्तान भारतीय सेना की बढ़ती क्षमताओं से वाकिफ है। भारत इस बात पर अडिग है कि जब तक पाकिस्तान 26/11 के हमलावरों पर कार्रवाई नहीं करता, तब तक वह उससे बात नहीं करेगा। यह आत्मविश्वास कश्मीर की स्थिरता से उपजा है। अंतिम मतदाता सूची के साथ जम्मू-कश्मीर चुनाव के लिए कमर कसता प्रतीत होता है। पाकिस्तान को लगातार चीन से संरक्षण मिल रहा है। हालांकि घाटी में आतंकी गुटों की धमकियां जारी हैं, जिससे भय एवं आतंक पैदा हो रहा है। हाल ही में एक स्थानीय आतंकी गुट टीआरएफ (द रेजिस्टेंस फ्रंट) से 20 से अधिक पत्रकारों को जान से मारने की धमकी मिली, जिसके चलते कई छिप गए, कुछ ने इस्तीफा दे दिया और घाटी छोड़कर चले गए। इससे पता चलता है कि स्थानीय लोगों को हाइब्रिड आतंकियों का खात्मा करने वाले सुरक्षा बलों पर भरोसा नहीं है। पुलिस ने कहा कि ये धमकियां स्थानीय जानकारी के साथ पाकिस्तान से जारी की गई थीं। हालांकि समग्रता में स्थिति सामान्य प्रतीत होती है और पर्यटन बढ़ रहा है, लेकिन गैर-स्थानीय श्रमिकों और कश्मीरी पंडितों की बेतरतीब हत्या भय का माहौल पैदा करती है।
ऐसी संभावना नहीं है कि सुरक्षा बलों के तमाम प्रयासों के बावजूद हाइब्रिड खतरा निकट भविष्य में कम हो जाएगा। इसका राजनीतिक दोहन होता रहेगा। हर हत्या के बाद घाटी में कार्यरत कश्मीरी पंडित जम्मू स्थानांतरण की मांग दोहराते हैं। जिन जगहों पर उन्हें निशाना बनाया गया, वहां से वे पलायन भी कर रहे हैं। सरकार कश्मीर में स्थिति सामान्य दिखाने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है, लेकिन क्षेत्रीय राजनीतिक दल, आतंकी गुट एवं पाकिस्तान इसे झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं। वास्तविकता इन दोनों स्थितियों के बीच में है। लंबे समय से बंद, सुनियोजित हिंसा या विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ है। भाजपा के, जो कभी कश्मीर में अपनी पहचान नहीं बना पाई, अब घाटी में काफी अनुयायी हैं। बाजार बंद और स्वघोषित कर्फ्यू अब इतिहास की बात हो गया है। हुर्रियत का दबदबा खत्म हो गया है। आतंकियों को अब आदर्श नहीं माना जाता। आतंकवाद को हवा देने वाले हवाला फंड की आमद रोक दी गई है। सरकार को कश्मीर में जी-20 की बैठक करने का भरोसा है।
कश्मीरी पंडितों के साथ स्थानीय लोगों में भी डर दिखाई देता है। विकास तो दिखाई देता है, लेकिन शासन और सुरक्षा बलों पर लोगों का विश्वास कम है। ऐसा लगता है कि आम कश्मीरी दोनों पक्षों के दबाव का सामना करते हुए आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच फंस गया है। बदनामी के डर से लोग बात करने को तैयार नहीं हैं। नशा युवाओं को बर्बाद कर रहा है, जिससे कई युवा इस लत को पूरा करने के लिए बंदूक उठा रहे हैं। मौन रहना और अपने काम से काम रखना अस्तित्व का आदर्श बन गया है। लोगों का भरोसा लौटाने के लिए बयानबाजी से ज्यादा करने की जरूरत है। इसके लिए सरकार में विश्वास, खतरों से सुरक्षा और समझदार नौकरशाही की जरूरत है। जब तक स्थानीय अधिकारियों और सुरक्षा एजेंसियों की पहुंच नहीं होगी, यह भय गायब नहीं होगा।