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don't breathe 2 movie review in hindi Pankaj Shukla Rodo Sayagues Fede Álvarez Stephen Lang Madelyn Grace
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Don't Breathe 2 Review: रिश्तों की गांठ में उलझी ‘डोन्ट ब्रीद 2’, स्टीफन लैंग पर ही पूरा दारोमदार
स्टीफन लैंग
,
ब्रेंडन सैक्सटन थर्ड
और
मैडेलिन ग्रेस
लेखक
फेड अल्वारेज
और
रोडो सायागुएज
निर्देशक
रोडो सायागुएज
निर्माता
फेज अल्वारेज
,
सैम रायमी
और
रॉब टैपर्ट
सिनेमाघर
सिनेमाघर
रेटिंग
2.5/5
सीक्वेल फिल्में इस बात का प्रयास होती हैं कि किसी हिट कहानी या पसंदीदा किरदारों के कल्पना लोक को इसके पहले भाग में पसंद कर चुके दर्शकों को वापस सिनेमाघरों तक फिर से लाया जाए और उनकी पहले वाली फिल्म से जुड़ चुकी संवेदनाओं को बॉक्स ऑफिस पर कमाई का साधन बनाया जाए। ‘डोंट ब्रीद’ पांच साल पहले रिलीज हुई एक हिट फिल्म है। इसकी लेखक जोड़ी फेड अल्वारेज और रोडो सायागुएज ने ही इसकी सीक्वेल लिखी है। पिछली बार निर्देशन का जिम्मा फेड अल्वारेज ने संभाला था, इस बार बारी रोडो सायागुएज की है। पिछली बार एक अनुभवी लेकिन रिटायर्ड दृष्टिहीन फौजी के घर में कुछ अनजान से नौसिखिए चोर उसकी गाढ़ी कमाई चुराने घुस आते हैं। इस बार कहानी वहां से आठ साल आगे आ चुकी है। इस बार चोर एक किशोरी को चुराने आए हैं जिसके बारे में फिल्म की शुरुआत में ये समझाने की कोशिश की जाती है कि वह दृष्टिहीन फौजी की बेटी है।
डोन्ट ब्रीद 2
- फोटो : अमर उजाला मुंबई
फिल्म ‘डोन्ट ब्रीद 2’ उत्तरजीविता की कहानी है। डार्विन के ‘सर्वोच्च की उत्तरजीविता’ वाले सिद्धांत पर बढ़ती इस कहानी का संघर्ष हालांकि कई स्तरों पर चलता है लेकिन फिल्म के दोनों कथाकार यहां उस समय को भूल गए जिसमें ये कहानी घट रही है। यहां पुलिस नाम की चिड़िया तक पूरी फिल्म में नहीं दिखती। धमाकों, गोलियां चलने की आवाजों और एक के बाद एक होती वीभत्स हत्याओं के बाद भी नहीं। हां, यहां ये फिर से याद दिलाना जरूरी है कि फिल्म ‘डोन्ट ब्रीद 2’ एक वीभत्स कहानी है। खून खराबा इसकी फितरत में है। वयस्कों के लिए बनी इस फिल्म में दृष्टिहीन फौजी के घर में रहने वाली किशोरी का एक गिरोह अपहरण करने की कोशिश में है। अपहरण का जो उद्देश्य फिल्म में दिखाया गया है, उसका तर्क स्पष्ट नहीं है। और न ही ये स्पष्ट है कि आखिर इन लोगों को अपने इस कारण के लिए ये किशोरी ही क्यों चाहिए। फिल्म ‘डोन्ट ब्रीद 2’ की सबसे कमजोर कड़ी यही है।
डोन्ट ब्रीद 2
- फोटो : अमर उजाला मुंबई
कहानी के स्तर पर फिल्म ‘डोन्ट ब्रीद 2’ के गड़बड़ाने के अलावा फिल्म में बाकी सब इसकी श्रेणी के सिनेमा के हिसाब से ठीक ठाक दिखता है। बस दिक्कत ये है कि फिल्म की रिलीज होने का जो समय है, उसमें चेहरे पर मास्क लगाकर और आसपास की खाली सीटों के बीच बैठकर कोई दर्शक क्या ऐसी फिल्में देखने सिनेमाघर आने को तैयार है? ये समय तनाव से मुक्ति का है। डेढ़ साल से घरों में कैद रहे लोग सिनेमाघरों में सुख का सिनेमा देखना चाहते हैं। खुलकर हंसना चाहते हैं। और, सामूहिक मनोरंजन का स्वाद फिर से चखना चाहते हैं।
डोन्ट ब्रीद 2
- फोटो : अमर उजाला मुंबई
लेकिन, फिल्म ‘डोन्ट ब्रीद 2’ वैयक्तिक अनुभव वाला सिनेमा है। इसे आप सिनेमाघर में देखें या फिर ओटीटी पर इसे देखने का अनुभव ज्यादा कुछ खास बदलने वाला नहीं दिखता। बतौर निर्देशक रोडो सायागुएज की विफलता यहां इसमें दिखती है कि उन्होंने एक हिट फ्रेंचाइजी बन सकने वाले विचार को दूसरी ही फिल्म में हाशिये पर पहुंचा दिया है। फिल्म हालांकि अगली पीढ़ी के भविष्य के खतरों का आमुख लिखकर खत्म हो जाती है लेकिन अगर इसकी अगली कड़ी बनती है तो इसके लेखकों और निर्देशक को इन बातों का ख्याल रखना ही होगा।
डोन्ट ब्रीद 2
- फोटो : अमर उजाला मुंबई
69 साल के हो चुके अभिनेता स्टीफन लैंग अपनी कदकाठी और अपने भाव प्रदर्शनों के चलते ऐसे किरदार के लिए बिल्कुल सही पसंद हैं। पिछली फिल्म में भी स्टीफन ने पूरी फिल्म को अकेले अपने कंधों पर ढो कर सफलता के शीर्ष पर पहुंचाया था। फिल्म ‘डोन्ट ब्रीद 2’ में भी वह यही करते दिखते हैं लेकिन इस बार उनके संघर्ष का कारक विकसित करने में इसके लेखक मात खा गए। फिल्म के पहले दृश्य से ही एक पिता और एक पुत्री का रिश्ता विकसित करने को कोशिश फिल्म में की गई है लेकिन जैसा संबंध दोनों के बीच फिल्म के रफ्तार पकड़ने के पहले दिखना चाहिए था, वैसा दिखाने में इसके लेखक और निर्देशक सफल नहीं हो सके। स्टीफन के संघर्ष से दर्शकों का भावनाएं आखिर तक इसीलिए जुड़ भी नहीं पाती हैं। वहीं, अपने अतीत की असलियत जानने की कोशिश में लगी किशोरी के किरदार में मैडेलिन ग्रेस ने अपनी उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्व किरदार निभाया है और इसके लिए उनकी हिम्मत की दाद भी दी जानी चाहिए। लेकिन एक बेटी की तड़प उनके चेहरे पर आखिर तक आती नहीं है।
डोन्ट ब्रीद 2
- फोटो : अमर उजाला मुंबई
तकनीकी तौर पर भी फिल्म बहुत उम्दा नहीं है। ये भी हो सकता है कि पीवीआर के जिस थिएटर में मैंने ये फिल्म देखी, उसमें मौजूद गिनती के पांच दर्शकों के चलते थिएटर प्रबंधन ने अपने ऑडियो विजुअल सिस्टम को पूरी क्षमता के साथ चलाया ही न हो। फिल्म की अधिकतर शूटिंग सूर्यास्त के बाद की है। अंधेरे में शूट किए गए फिल्म के हिस्से अपना मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करने में सफल रहे हैं। पेद्रो लुक्यू की सिनेमैटोग्राफी इस मायने में अपना काम कर जाती है। फिल्म का पार्श्व संगीत और इसका संपादन भी कहानी के हिसाब से दुरुस्त है। फिल्म ‘डोन्ट ब्रीद 2’ एक खास दर्शक वर्ग के लिए बनी फिल्म है और ऐसे भारतीय दर्शक अब सिनेमाघरों में आकर इतनी वीभत्स फिल्म देखना भी चाहते हैं, फिल्म का बॉक्स ऑफिस भविष्य इसी पर निर्भर है।
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