जीवनघाती कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का सच क्या कभी सामने आ पाएगा, इसका संदेह बढ़ गया है। राज्य सरकारों के हवाले से केंद्र सरकार द्वारा राज्यसभा में दिए ‘एक भी मौत न होने’ वाले बयान के बाद सियासी बयानबाजी शुरू हो गई।
दूसरी ओर विशेषज्ञों का कहना है कि हकीकत जानने और बताने को कोई तैयार नहीं है। अभी तो कोरोना से मौतों का आंकड़ा ही सामने नहीं आ रहा। महाराष्ट्र सरकार ने तो मंगलवार को ही अपने राज्य में हुई मौतों की संख्या में 3,505 पुरानी मौतें जोड़ी हैं, जिनका खुलासा पहले नहीं किया था।
राज्यों ने बुधवार को अलग-अलग सुर साधे। आंध्र प्रदेश, दिल्ली अपने आंकड़ों से पलट गए, वहीं छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार व मध्यप्रदेश सरकारों ने दावा किया कि उनके यहां ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। महाराष्ट्र सरकार ने तो नासिक अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से एकसाथ हुई 22 मौतों को हादसा ही करार दे दिया। वहीं, भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने आरोप लगाया कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है, मामलों व मौतों का आंकड़ा राज्य ही केंद्र सरकार को दे रहे थे। केंद्र सिर्फ उन्हें जारी करता था।
रेणु सिंघल ने अमर उजाला को बताया कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई, यह सुनकर ही मुझे बहुत धक्का लगा है। मैं उदाहरण हूं...उस समय हर अस्पताल में ऑक्सीजन की परेशानी थी और अस्पताल-दर-अस्पताल दौड़ लगाने के बाद भी अपने पति रवि सिंघल को नहीं बचा पाई। यह कहना है आगरा की रेणु का, जिन्होंने अपने पति को बचाने के लिए मुंह से सांसें दी थीं। यह फोटो देशभर में वायरल हुआ था।
रेणु ने बताया, परिवार में तीन ही सदस्य थे। अब कमाने वाला कोई नहीं रहा। रवि की 23 अप्रैल को सुबह अचानक तबीयत बिगड़ी। उन्हें ऑटो में लेकर कई अस्पतालों में गई, लेकिन किसी ने एडमिट नहीं किया। ऑक्सीजन न होने की बात कहकर टरकाते रहे। मैं 3-4 घंटे तक ऑटो में लेकर घूमती रही, रास्ते में हालत बिगड़ती जा रही थी। मैंने अपने मुंह से सांसें देने की बहुत कोशिश की। लग रहा था शायद मेरी सांसों से वह बच जाएंगे। आखिर एसएन मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में पहुंची, पर अफसोस कि उन्होंने गेट पर ही दम तोड़ दिया।
नो वन किल्ड जेसिका...इसी तर्ज पर दब जाएगा मामला
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री डॉ. भारती पवार का बयान फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ से मेल खाता है। यह कहना है ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन एकेडमिक गिल्ड के महासचिव डॉ. ईश्वर गिलाडा का। उन्होंने बताया, किसी भी राज्य ने मेडिकल सर्टिफिकेशन काॅज ऑफ डेथ (एमसीसीडी) में जिक्र ही नहीं किया कि अमुक मरीज की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है। उनका दावा है कि दरअसल, डॉक्टर तकनीकी तौर पर मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी से होना नहीं लिख सकते। इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज (आईसीडी) में ऑक्सीजन की कमी या हाईपोक्सिया के लिए कोई कोड नहीं हैं। कोविड-19 से होने वाली मौतों के लिए जारी सरकारी दिशा-निर्देशाें में स्पष्ट है कि मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी यानी हाईपोक्सिया, रिस्पॉरिटी अरेस्ट या रिस्पॉरिटी फेलियर नहीं लिख सकते।
लिख नहीं सकते... इसका अर्थ यह नहीं कि कमी से मौत नहीं हुई
वे दिन मैं भूल नहीं सकता हूं। पूरे चिकित्सीय जीवन में ऐसे दिन नहीं देखे। अपने साथी सीनियर डॉक्टर हिमतानी को भी खो दिया। 12 लोगों की मौत हुई थी। इसलिए यह कहना कि ऑक्सीजन की कमी से मौत नहीं हुई, एकदम गलत है। मृत्यु प्रमाणपत्र पर ऑक्सीजन की कमी नहीं लिखा जा सकता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उस मरीज की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। -डॉ. एसएल गुप्ता, निदेशक, बत्रा अस्पताल, नई दिल्ली
यहां लग गईं थीं शवों की कतारें
दूसरी लहर के दौरान देशभर में ऑक्सीजन की किल्लत से मौतों की खबरें आ रहीं थीं। राजधानी दिल्ली के ही बत्रा अस्पताल में 12, जयपुर गोल्डन अस्पताल में 20 और गंगाराम अस्पताल में 25 मौतों का प्रबंधन ने दावा किया था। मध्यप्रदेश के शहडोल मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन व जिला प्रशासन ने एक ही रात में 12 मौत की पुष्टि की थी। कर्नाटक के चामराज नगर अस्पताल में एक दिन में 24 और आंध्र प्रदेश के रुइया अस्पताल में 30 मरीजों की मौतों का दावा किया था।
विस्तार
जीवनघाती कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का सच क्या कभी सामने आ पाएगा, इसका संदेह बढ़ गया है। राज्य सरकारों के हवाले से केंद्र सरकार द्वारा राज्यसभा में दिए ‘एक भी मौत न होने’ वाले बयान के बाद सियासी बयानबाजी शुरू हो गई।
दूसरी ओर विशेषज्ञों का कहना है कि हकीकत जानने और बताने को कोई तैयार नहीं है। अभी तो कोरोना से मौतों का आंकड़ा ही सामने नहीं आ रहा। महाराष्ट्र सरकार ने तो मंगलवार को ही अपने राज्य में हुई मौतों की संख्या में 3,505 पुरानी मौतें जोड़ी हैं, जिनका खुलासा पहले नहीं किया था।
राज्यों ने बुधवार को अलग-अलग सुर साधे। आंध्र प्रदेश, दिल्ली अपने आंकड़ों से पलट गए, वहीं छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार व मध्यप्रदेश सरकारों ने दावा किया कि उनके यहां ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। महाराष्ट्र सरकार ने तो नासिक अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से एकसाथ हुई 22 मौतों को हादसा ही करार दे दिया। वहीं, भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने आरोप लगाया कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है, मामलों व मौतों का आंकड़ा राज्य ही केंद्र सरकार को दे रहे थे। केंद्र सिर्फ उन्हें जारी करता था।
रेणु सिंघल ने अमर उजाला को बताया कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई, यह सुनकर ही मुझे बहुत धक्का लगा है। मैं उदाहरण हूं...उस समय हर अस्पताल में ऑक्सीजन की परेशानी थी और अस्पताल-दर-अस्पताल दौड़ लगाने के बाद भी अपने पति रवि सिंघल को नहीं बचा पाई। यह कहना है आगरा की रेणु का, जिन्होंने अपने पति को बचाने के लिए मुंह से सांसें दी थीं। यह फोटो देशभर में वायरल हुआ था।
रेणु ने बताया, परिवार में तीन ही सदस्य थे। अब कमाने वाला कोई नहीं रहा। रवि की 23 अप्रैल को सुबह अचानक तबीयत बिगड़ी। उन्हें ऑटो में लेकर कई अस्पतालों में गई, लेकिन किसी ने एडमिट नहीं किया। ऑक्सीजन न होने की बात कहकर टरकाते रहे। मैं 3-4 घंटे तक ऑटो में लेकर घूमती रही, रास्ते में हालत बिगड़ती जा रही थी। मैंने अपने मुंह से सांसें देने की बहुत कोशिश की। लग रहा था शायद मेरी सांसों से वह बच जाएंगे। आखिर एसएन मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में पहुंची, पर अफसोस कि उन्होंने गेट पर ही दम तोड़ दिया।
नो वन किल्ड जेसिका...इसी तर्ज पर दब जाएगा मामला
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री डॉ. भारती पवार का बयान फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ से मेल खाता है। यह कहना है ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन एकेडमिक गिल्ड के महासचिव डॉ. ईश्वर गिलाडा का। उन्होंने बताया, किसी भी राज्य ने मेडिकल सर्टिफिकेशन काॅज ऑफ डेथ (एमसीसीडी) में जिक्र ही नहीं किया कि अमुक मरीज की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है। उनका दावा है कि दरअसल, डॉक्टर तकनीकी तौर पर मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी से होना नहीं लिख सकते। इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज (आईसीडी) में ऑक्सीजन की कमी या हाईपोक्सिया के लिए कोई कोड नहीं हैं। कोविड-19 से होने वाली मौतों के लिए जारी सरकारी दिशा-निर्देशाें में स्पष्ट है कि मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी यानी हाईपोक्सिया, रिस्पॉरिटी अरेस्ट या रिस्पॉरिटी फेलियर नहीं लिख सकते।
लिख नहीं सकते... इसका अर्थ यह नहीं कि कमी से मौत नहीं हुई
वे दिन मैं भूल नहीं सकता हूं। पूरे चिकित्सीय जीवन में ऐसे दिन नहीं देखे। अपने साथी सीनियर डॉक्टर हिमतानी को भी खो दिया। 12 लोगों की मौत हुई थी। इसलिए यह कहना कि ऑक्सीजन की कमी से मौत नहीं हुई, एकदम गलत है। मृत्यु प्रमाणपत्र पर ऑक्सीजन की कमी नहीं लिखा जा सकता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उस मरीज की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है।
-डॉ. एसएल गुप्ता, निदेशक, बत्रा अस्पताल, नई दिल्ली
यहां लग गईं थीं शवों की कतारें
दूसरी लहर के दौरान देशभर में ऑक्सीजन की किल्लत से मौतों की खबरें आ रहीं थीं। राजधानी दिल्ली के ही बत्रा अस्पताल में 12, जयपुर गोल्डन अस्पताल में 20 और गंगाराम अस्पताल में 25 मौतों का प्रबंधन ने दावा किया था। मध्यप्रदेश के शहडोल मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन व जिला प्रशासन ने एक ही रात में 12 मौत की पुष्टि की थी। कर्नाटक के चामराज नगर अस्पताल में एक दिन में 24 और आंध्र प्रदेश के रुइया अस्पताल में 30 मरीजों की मौतों का दावा किया था।