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सुप्रीम कोर्ट में बोली डीएमके: CAA केंद्र सरकार की मनमानी, छह धर्मों को साथ, लेकिन मुस्लिमों को बाहर किया गया
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: संजीव कुमार झा
Updated Wed, 30 Nov 2022 02:23 PM IST
सार
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डीएमके ने शीर्ष अदालत को बताया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) केंद्र सरकार की मनमानी है क्योंकि यह केवल छह धर्मों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई ) का साथ दे रहा है।
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK ने सुप्रीम कोर्ट में सीएए(CAA) को चुनौती दी है। अपनी याचिका में डीएमके ने शीर्ष अदालत को बताया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) केंद्र सरकार की मनमानी है क्योंकि यह केवल छह धर्मों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई ) का साथ दे रहा है। लेकिन इसमें से मुस्लिमों को बाहर कर दिया गया है। यह सही तरीका नहीं है। केंद्र सरकार को हर किसी का ख्याल रखना होगा।
डीएमके ने उठाया तमिल शरणार्थी का मुद्दा
सीएए को चुनौती देने वाली अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हलफनामा दायर करते हुए डीएमके ने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर विचार करते हुए भी केंद्र सरकार भारतीय मूल के ऐसे तमिलों के साथ पक्षपात कर रही है जो उत्पीड़न के कारण श्रीलंका से भागकर वर्तमान में भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। यह अधिनियम तमिल नस्ल के खिलाफ है और इसी तरह से तमिलनाडु में रहने वाले तमिलों को अधिनियम के दायरे से बाहर रखता है। आक्षेपित अधिनियम इस वास्तविकता को अनदेखा करता है कि कई दशकों से तमिलनाडु में बसे तमिल शरणार्थी गैर-नागरिकता के कारण मौलिक अधिकारों और अन्य अधिकारों से वंचित हैं।
अब छह दिसंबर को होगी सुनवाई
बता दें कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब छह दिसंबर को सुनवाई होगी। आज चीफ जस्टिस (CJI)यू यू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने तीन हफ्ते में आसाम और त्रिपुरा को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील पल्लवी प्रताप और केंद्र की ओर से कनु अग्रवाल को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। सभी पक्षों को तीन पेज की लिखित दलील देने को कहा गया है।
क्या है नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019(CAA)
सीएए के जरिए मोदी सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदुओं, सिखों, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई जैसे प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है। कानून के तहत इन समुदायों के जो लोग 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए थे और जो वहां धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे थे, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी। बता दें कि पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इससे पहले संसद में सीएए पारित होने के बाद, देश के विभिन्न हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे जिसमें पुलिस गोलीबारी और संबंधित हिंसा में लगभग 100 व्यक्तियों की मौत हो गई।
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