किसान आंदोलन को अगले महीने एक साल पूरा हो जाएगा। कई बार ऐसी परिस्थितियां सामने आईं, जब यह लगा कि आंदोलन तो अब खत्म हो गया है, मगर ऐसा नहीं हुआ। किसान आंदोलन से जुड़े विभिन्न संगठनों और उनके पदाधिकारियों में आपसी भेद हैं, सवाल हैं और उन सबके बीच 'पंजाब' भी है। यह आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ था, लेकिन वहीं से इस आंदोलन में कुछ चुनौतियां मिलती रही हैं। किसान संगठनों से जुड़े एक बड़े पदाधिकारी बताते हैं, 'लाल किला' और 'सिंघु' बॉर्डर जैसी घटनाओं का दोहराव न हो, अब इस पर रणनीति बना रहे हैं। 'भेद' और 'पंजाब' जैसी चुनौती सामने हैं, लेकिन कोई बात नहीं, इससे निपटा जाएगा। जहां से चुनौती मिल रही है, उसकी सुप्रीम संस्था के पदाधिकारियों से मिलकर मामले का समाधान खोजेंगे। तीन कृषि कानून, ये एक ऐसी वजह है, जो आपसी मतभेदों के बाद भी सभी किसान संगठनों को जोड़े हुए है।
बता दें कि किसान संगठनों के बीच मतभेद की खबरें पहले भी आती रही हैं। कभी किसी पार्टी विशेष की तरफ से सोशल मीडिया में दुष्प्रचार हुआ तो कभी संगठन के ही किसी नेता द्वारा कोई गलत बयानबाजी कर दी गई। बीच में कई किसान संगठन, 'संयुक्त किसान मोर्चे' को छोड़ गए। लाल किला कांड, टीकरी बॉर्डर पर रेप, लखीमपुर खीरी और अब सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन के बीच एक व्यक्ति की जघन्य तरीके से हत्या कर दी गई। इस पर ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान से खास बातचीत हुई है। उन्होंने कई सवालों का बहुत खुलकर जवाब दिया। उन्होंने कहा, ये आंदोलन दो लोगों के बीच है। एक वो, जिनके पास पैसा ही पैसा है। दूसरी ओर हम हैं, किसान हैं, मजदूर है। ये निर्णायक लड़ाई है, जारी रहेगी।
किसान संगठनों में वैसे ही मतभेद होते रहे हैं, जैसे एक परिवार में रहते हैं। आंदोलन में जो भी विपदा आती है, वह साझे की है। सभी संगठनों पर उसका असर पड़ेगा। किसान आंदोलन में जितने भी छोटे बड़े संगठन शामिल हैं, वे एक बात पर सहमत हैं। एक साथ हैं और आगे भी रहेंगे। केंद्र सरकार के किसान विरोधी तीन काले कानूनों को रद्द कराने व बिजली (संशोधित) बिल 2020 को वापस लेने पर सभी संगठन एक हैं। पंजाब के किसान संगठनों को लेकर कुछ परेशानी रही है। बता दें कि इससे पहले संयुक्त किसान मोर्चे के वरिष्ठ पदाधिकारी अविक साहा व दूसरे नेता भी यह संकेत दे चुके हैं। मोर्चे के लिए पंजाब के किसान संगठनों को संभालना एक बड़ी चुनौती बनी रही है। वह चुनौती आज भी है। सिंघु बॉर्डर पर जो घटना हुई है, उसे लेकर संयुक्त किसान मोर्चा का बयान आया कि निहंग समूह/ग्रुप या मृतक व्यक्ति, का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है। हम किसी भी धार्मिक ग्रंथ या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ हैं, लेकिन इस आधार पर किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है। हत्या और बेअदबी के षड़यंत्र के आरोप की जांच कर दोषियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाए। संयुक्त किसान मोर्चा किसी भी कानून सम्मत कार्यवाही में पुलिस और प्रशासन का सहयोग करेगा।
आगे इस तरह की घटनाओं से कैसे बचेंगे, इस पर सत्यवान बताते हैं, यह गंभीर मामला है। पंजाब या दूसरे राज्य का ऐसा कोई संगठन जो खुद से किसानों के साथ जुड़ा हुआ है, उसकी सुप्रीम अथॉरिटी से बात करेंगे। निहंग हैं तो उनके बड़े एवं प्रभावशाली लोगों से बात की जाएगी। इसी तरह दूसरे समुदाय जो किसान आंदोलन में अपनी मनमर्जी करते हैं, उनके संगठनों से वार्ता करेंगे। पंजाब के संगठनों के साथ किसान आंदोलन शुरू होने से लेकर अभी तक कई बार मतभेद सामने आ चुके हैं। ये सही है, लेकिन इससे आंदोलन कमजोर तो नहीं पड़ा। संयुक्त तौर पर आगे बढ़ रहे हैं। अगर कोई मिशन पंजाब या यूपी को लेकर कोई बयान देता है तो उसे वापस कराया गया है। देखिये, सरकार जिसके पीछे खड़ी है, उसके साथ हमारा मुकाबला है। किसान आंदोलन के अंदर बाहर सवाल उठते हैं, भेद आता रहता है। एक प्लेटफार्म के भीतर लोगों की अलग सोच होती है। उग्राह, चढ़ूनी, कक्का या खुद टिकैत, वे संगठन से परे जाकर बोलते रहे हैं, मगर वापस भी उतनी ही तेजी से आ गए। पंजाब के किसान संगठनों की सोच और सामाजिक तानाबाना दूसरे राज्यों से अलग है। दिक्कत आ जाती है। पंजाब की सामाजिक धार्मिक ताकतों की सहायता लेकर सिंघु बॉर्डर जैसी घटनाओं का दोहराव न हो, इस बाबत सार्थक एवं प्रभावी चर्चा होगी।
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किसान आंदोलन को अगले महीने एक साल पूरा हो जाएगा। कई बार ऐसी परिस्थितियां सामने आईं, जब यह लगा कि आंदोलन तो अब खत्म हो गया है, मगर ऐसा नहीं हुआ। किसान आंदोलन से जुड़े विभिन्न संगठनों और उनके पदाधिकारियों में आपसी भेद हैं, सवाल हैं और उन सबके बीच 'पंजाब' भी है। यह आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ था, लेकिन वहीं से इस आंदोलन में कुछ चुनौतियां मिलती रही हैं। किसान संगठनों से जुड़े एक बड़े पदाधिकारी बताते हैं, 'लाल किला' और 'सिंघु' बॉर्डर जैसी घटनाओं का दोहराव न हो, अब इस पर रणनीति बना रहे हैं। 'भेद' और 'पंजाब' जैसी चुनौती सामने हैं, लेकिन कोई बात नहीं, इससे निपटा जाएगा। जहां से चुनौती मिल रही है, उसकी सुप्रीम संस्था के पदाधिकारियों से मिलकर मामले का समाधान खोजेंगे। तीन कृषि कानून, ये एक ऐसी वजह है, जो आपसी मतभेदों के बाद भी सभी किसान संगठनों को जोड़े हुए है।
बता दें कि किसान संगठनों के बीच मतभेद की खबरें पहले भी आती रही हैं। कभी किसी पार्टी विशेष की तरफ से सोशल मीडिया में दुष्प्रचार हुआ तो कभी संगठन के ही किसी नेता द्वारा कोई गलत बयानबाजी कर दी गई। बीच में कई किसान संगठन, 'संयुक्त किसान मोर्चे' को छोड़ गए। लाल किला कांड, टीकरी बॉर्डर पर रेप, लखीमपुर खीरी और अब सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन के बीच एक व्यक्ति की जघन्य तरीके से हत्या कर दी गई। इस पर ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान से खास बातचीत हुई है। उन्होंने कई सवालों का बहुत खुलकर जवाब दिया। उन्होंने कहा, ये आंदोलन दो लोगों के बीच है। एक वो, जिनके पास पैसा ही पैसा है। दूसरी ओर हम हैं, किसान हैं, मजदूर है। ये निर्णायक लड़ाई है, जारी रहेगी।