वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर मामले की सुनवाई अब जिला जज करेंगे। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि अंदर एक शिवलिंग मिला है। इसकी कुछ तस्वीरें भी सामने आई हैं। वहीं, मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बता रहा है।
ऐसे में सवाल है कि क्या औरंगजेब के समय हुए निर्माण के वक्त फव्वारा बनवाया गया था या बाद में इसका निर्माण हुआ? क्या बगैर बिजली के क्या फव्वारा चल सकता है?
इन सभी सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमने कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की। जानिए उन्होंने क्या कहा?
पहले जान लीजिए मुस्लिम पक्ष ने क्या दावा क्या है?
न्यायालय में दाखिल रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वादी पक्ष के शिवलिंग के दावे पर मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया। इसपर विशेष अधिवक्ता आयुक्त ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के मुंशी एजाज मोहम्मद से पूछा कि यह फव्वारा कब से बंद है? इसपर उनका पहले जवाब आया कि 20 वर्ष और फिर उन्होंने बताया कि 12 वर्ष से बंद है। फव्वारा चालू करके दिखाने पर उन्होंने असमर्थता भी जताई। उस आकृति की गहराई में बीचों-बीच सिर्फ आधे इंच से कम का एक छेद मिला, जो 63 सेंटीमीटर गहरा था।
इसका जवाब जानने के लिए हमने कन्नौज इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ प्रो. मनोज शुक्ला से संपर्क किया। प्रो. शुक्ला कहते हैं, 'बगैर बिजली के फव्वारा संभव है, लेकिन इसके लिए पहले करीब 200 से 300 फीट की ऊंचाई से पानी को नीचे भेजा जाता है। तेजी से पानी नीचे आने पर प्रेशर बनता था और फिर अगर वहां कोई छेद है तो फव्वारा के रूप में पानी बाहर आ सकता है।'
प्रो. शुक्ला आगे कहते हैं, 'अभी तक जो वीडियो और तस्वीर ज्ञानवापी से सामने आई है, उसे देखकर ये नहीं लगता कि यह तकनीक वहां प्रयोग में लाई गई होगी। आसपास कोई ऊंची टंकी भी नहीं दिख रही। ऐसे में सही मायने में इसकी सच्चाई पता करने के लिए जिस जगह शिवलिंग या फव्वारा होने का दावा किया जा रहा है, वहां नीचे जाकर जांच की जानी चाहिए। यह देखना चाहिए कि क्या अंदर कोई पाइप का सिस्टम है या नहीं? अगर है तो वहां कहां से पानी आता था? जिसे फव्वारा कहा जाता है, उसके बीच में क्या पाइप का सिस्टम है? अगर है तो उसकी लंबाई-चौड़ाई कितनी है? ये सब जांच होने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि मुस्लिम पक्ष का दावा कितना सही है? इसकी जांच अल्ट्रासाउंड इक्यूपमेंट के जरिए भी की जा सकती है।'
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने मोती लाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी), प्रयागराज के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डॉ. आरपी तिवारी से बातचीत की। उन्होंने कहा, 'मुगल आक्रांता अरब देशों से आए थे। वहां पानी का हमेशा से संकट रहा है। जितने भी मुगल शासक थे, वो अरब को ही यहां कॉपी करते थे। ऐसे में फव्वारा बनाने का सवाल ही नहीं उठता है।'
प्रो. तिवारी आगे कहते हैं, 'मैंने ज्ञानवापी मस्जिद को करीब से देखा है। बतौर सिविल इंजीनियर मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि मंदिर की दिवारों पर ही मस्जिद के गुंबद बनाए गए हैं। उसका स्ट्रक्चर साफ-साफ समझा जा सकता है। वहीं, रही बात फव्वारे की तो जो भी फव्वारा बनेगा वो जमीन से ऊपर बनेगा। जमीन से नीचे बनाने का कोई औचित्य नहीं हो सकता है।'
अब तक इस मामले में क्या-क्या हुआ?
इस मामले में तीन अलग-अलग कोर्ट में सुनवाई हुई। पहली स्थानीय अदालत में अभी भी सुनवाई जारी है। यहीं पर कोर्ट कमिश्नर ने सर्वे की रिपोर्ट सौंपी है। दूसरी सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई छह जुलाई तक टाल दी है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए ज्ञानवापी मामला वाराणसी की जिला अदालत को ट्रांसफर कर दिया है।
सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को आदेश दिया कि कोई अनुभवी और वरिष्ठ जज इस मामले की सुनवाई करेंगे। कोर्ट ने आदेश दिया कि जिस स्थान पर शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है उसकी सुरक्षा और नमाज की इजाजत देने का उसका 17 मई का अंतरिम आदेश बरकरार रहेगा। मस्जिद कमेटी की याचिका पर जिला अदालत में प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई होगी। इसके साथ ही अदालत ने मामले की अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टियों के बाद जुलाई के दूसरे हफ्ते में करने का फैसला किया है। मतलब अब जिला न्यायालय में ही पहले इसकी सुनवाई होगी।
सर्वे रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन व अन्य विग्रहों के संरक्षण की मांग पर ज्ञानवापी मस्जिद में 14 से 16 मई तक विशेष अधिवक्ता आयुक्त विशाल सिंह के नेतृत्व में हुई कमीशन की कार्यवाही की रिपोर्ट अदालत को सौंपी जा चुकी है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वजूखाने में मिली आकृति शिवलिंग जैसी है।
- मस्जिद के भीतर हाथी के सूंड़, त्रिशूल, पान, घंटियों के चिह्न मौजूद, दीवार पर मंत्र लिखे होने का भी दावा किया जा रहा है।
- बाहर विराजमान नंदी और अंदर मिले कुंड (वादी पक्ष के शिवलिंग वाली जगह) के बीच की दूरी 83 फीट तीन इंच है।
- कुंड के बीचों-बीच स्थित गोलाकार आकृति के पत्थर (वादी पक्ष के शिवलिंग) में सींक डालने पर 63 सेंटीमीटर गहराई मिली।
- पत्थर की गोलाकार आकृति के बेस का व्यास चार फीट, ऊंचाई 2.5 फीट, ऊपर पांच दिशाओं में बने हैं पांच खांचे हैं।
- तीनों बाहरी गुंबद के नीचे तीन शंकुकार शिखरनुमा ढांचे मौजूद, शंकुकार शिखर की ऊंचाई 2.5 फीट और नीचे का व्यास 22 फीट है।
- जेम्स प्रिंसेप और एएस एल्टेकर की किताबों में वर्णित जिगजैग दीवारों व खंभों की फोटो और मौके पर मौजूद आकार में पूरी तरह समानता का दावा किया जा रहा है।
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वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर मामले की सुनवाई अब जिला जज करेंगे। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि अंदर एक शिवलिंग मिला है। इसकी कुछ तस्वीरें भी सामने आई हैं। वहीं, मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बता रहा है।
वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर मामले की सुनवाई अब जिला जज करेंगे। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि अंदर एक शिवलिंग मिला है। इसकी कुछ तस्वीरें भी सामने आई हैं। वहीं, मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बता रहा है।
ऐसे में सवाल है कि क्या औरंगजेब के समय हुए निर्माण के वक्त फव्वारा बनवाया गया था या बाद में इसका निर्माण हुआ? क्या बगैर बिजली के क्या फव्वारा चल सकता है?
इन सभी सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमने कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की। जानिए उन्होंने क्या कहा?
पहले जान लीजिए मुस्लिम पक्ष ने क्या दावा क्या है?
न्यायालय में दाखिल रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वादी पक्ष के शिवलिंग के दावे पर मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया। इसपर विशेष अधिवक्ता आयुक्त ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के मुंशी एजाज मोहम्मद से पूछा कि यह फव्वारा कब से बंद है? इसपर उनका पहले जवाब आया कि 20 वर्ष और फिर उन्होंने बताया कि 12 वर्ष से बंद है। फव्वारा चालू करके दिखाने पर उन्होंने असमर्थता भी जताई। उस आकृति की गहराई में बीचों-बीच सिर्फ आधे इंच से कम का एक छेद मिला, जो 63 सेंटीमीटर गहरा था।