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Supreme Court said Collegium system should not be derailed
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Supreme Court: शीर्ष कोर्ट ने कहा- कॉलेजियम सिस्टम पटरी से न उतरे, पूर्व जजों के बयान पर टिप्पणी नहीं करेंगे
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: निर्मल कांत
Updated Fri, 02 Dec 2022 10:02 PM IST
सार
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जस्टिस एमआर शाह और सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि कॉलेजियम दूसरों के निजी जीवन में अत्याधिक रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति के आधार पर काम नहीं करता है। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और कॉलेजियम को उसके कर्तव्यों के अनुसार काम करने देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कॉलेजियम सिस्टम अच्छी तरह से काम कर रहा है, उसे पटरी से न उतरने दें। कॉलेजियम के पहले के निर्णयों के बारे में टिप्पणी करना सेवानिवृत्त जजों के लिए फैशन बन गया है, जबकि कॉलेजियम सबसे पारदर्शी संस्थान है। ऐसे में हम पूर्व जजों के बयान पर टिप्पणी नहीं करना चाहते।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि कॉलेजियम दूसरों के निजी जीवन में अत्याधिक रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति के आधार पर काम नहीं करता है। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और कॉलेजियम को उसके कर्तव्यों के अनुसार काम करने देना चाहिए। हम सबसे पारदर्शी संस्थान हैं।
दरअसल, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर विचार कर रही थी। हाईकोर्ट ने आरटीआई के तहत 12 दिसंबर 2018 को कॉलेजियम की बैठक में लिए गए निर्णयों की जानकारी मांगने वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सेवानिवृत्त जस्टिस मदन बी लोकुर (2018 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा) ने कहा था कि कॉलेजियम के फैसलों में से एक को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए था।
इस पर जस्टिस शाह ने कहा कि आजकल कॉलेजियम के पहले के फैसलों पर टिप्पणी करना एक ‘फैशन’ बन गया है। हम अब उस पर कुछ भी नहीं कहना चाहते। 12 दिसंबर, 2018 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने जजों की नियुक्ति के संबंध में कुछ निर्णय लिए गए थे। जस्टिस लोकुर भी उस कोलेजियम का हिस्सा थे। बैठक का विवरण न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि बाद में उन फैसलों को पलट दिया गया। 10 जनवरी, 2019 के निर्णय में कॉलेजियम ने दर्ज किया कि 12 दिसंबर, 2018 के निर्णय को अतिरिक्त सामग्रियों के आलोक में फिर से गौर किया गया।
प्रशांत भूषण ने कहा कि याचिकाकर्ता तीन विशिष्ट दस्तावेजों की मांग कर रही है। भूषण ने तर्क दिया कि सीजेआई और सरकार के बीच सभी पत्राचार और मुख्य न्यायाधीशों के बीच पत्राचार आरटीआई के तहत लोगों के लिए उपलब्ध होना चाहिए, क्योंकि आरटीआई मौलिक अधिकार है।
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पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या कॉलेजियम का निर्णय के बारे में आरटीआई द्वारा जानकारी मांगी जा सकती है। बाद की बैठक (जनवरी, 2019) में निर्णय लिखित नहीं था। यह एक मौखिक निर्णय था। बहरहाल पीठ ने भूषण की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
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