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Supreme Court said that sport of Jallikattu involving animal cruelty cannot be allowed
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Supreme Court: सुप्रीम सवाल-क्या जल्लीकट्टू को किसी भी रूप में दी जा सकती है अनुमति? सीएए मामले पर भी सुनवाई
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: वीरेंद्र शर्मा
Updated Thu, 01 Dec 2022 07:11 AM IST
सार
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तमिलनाडु सरकार का मानना है कि इन सांडों को प्रशिक्षित किया जाता है और उनके साथ सबसे अधिक स्नेह किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के फैसले में कहा था कि सांडों को जल्लीकट्टू या बैलगाड़ी दौड़ में जानवरों के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
जल्लीकट्टू को मंजूरी वाले तमिलनाडु के कानून के खिलाफ सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आखिर सवाल यह है कि क्या सांड को काबू करने वाले इस खेल को जिसे कई लोग पशु क्रूरता बताते हैं, किसी भी रूप में उसकी अनुमति दी जा सकती है। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि पशु क्रूरता वाले इस खेल की अनुमति नहीं दी जा सकती।
पीठ ने कहा, यह तमिलनाडु सरकार का मानना है कि इन सांडों को प्रशिक्षित किया जाता है और उनके साथ सबसे अधिक स्नेह किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के फैसले में कहा था कि सांडों को जल्लीकट्टू या बैलगाड़ी दौड़ में जानवरों के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। अदालत ने देशभर में इन उद्देश्यों के लिए उनके उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था। तमिलनाडु ने केंद्रीय कानून-पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन किया था और राज्य में ‘जल्लीकट्टू’ की अनुमति दे दी थी।
द्रमुक ने सुप्रीम कोर्ट में सीएए को बताया केंद्र का मनमाना कानून
सीएए से संबंधित एक अन्य याचिका की सुनवाई के दौरान द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक) ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, केंद्र सरकार श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थियों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। 2019 में आया नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) मनमाना है। इसमें सिर्फ तीन पड़ोसी मुल्कों से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को ही शामिल किया गया है और श्रीलंका से आए तमिल लोगों को शरणार्थी ही माना गया है। द्रमुक ने हलफनामे में कहा, केंद्र सरकार तमिल शरणार्थियों की दुर्दशा पर स्पष्ट रूप से चुप है। केंद्र के सौतेले व्यवहार ने उन्हें निर्वासन और अनिश्चित भविष्य के निरंतर भय में रहने के लिए छोड़ दिया है। सीएए को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह धर्म हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई तक ही सीमित रखा गया है।
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