पूरी दुनिया जानती है कि तालिबान कट्टरपंथी और हिंसक संगठन है। उसके अफगानिस्तान पर काबिज होने के बाद पूरी दुनिया को नागरिक स्वतंत्रता और अधिकार के खतरे में पड़ जाने का डर है। लेकिन जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और फारूक अबदुल्ला तालिबान के समर्थन में बयान दे रहे हैं। महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को कहा कि तालिबान अब एक हकीकत बन चुका है। उन्होंने कहा कि तालिबान को 'असली शरिया' कानून के तहत अफगानिस्तान पर शासन करना चाहिए। उनसे पहले अब्दुल्ला ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि तालिबान सरकार अफगानिस्तान में इस्लाम के सिद्धांतों का पालन करेगी और मानवाधिकारों का ख्याल रखेगी।
ध्यान खींचने की कोशिश
तालिबान के समर्थन में दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के इस बयान को ध्यान खींचने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। जानकार बताते हैं कि दोनों ही नेता जम्मू-कश्मीर में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और तालिबान पर बयान देकर वे जम्मू-कश्मीर के हालात पर चर्चा करने और कश्मीर की अवाम का ध्यान अपनी तरफ करने के बहाने तलाश रहे हैं।
वहीं इसकी एक वजह यह भी बताई जा रही है कि पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) अक्टूबर 2020 में अपने गठन के बाद से ही अस्थिर है और ज्यादतर मुद्दे पर उनकी आपस में सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी खिलाफ बना यह गठबंधन अपना मकसद खो रहा है।
गठबंधन के अस्तित्व में आने के बाद, पीएजीडी नेताओं ने कहा कि उनकी प्राथमिकता अनुच्छेद 370 को बहाल करने के लिए संघर्ष करना था न कि चुनाव लड़ना। लेकिन नवंबर 2021 में, उसने जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव संयुक्त रूप से लड़ने का फैसला किया। लेकिन अभी तक इस बात पर सहमति नहीं बन पाई है कि पीएजीडी विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ेगी या एक साथ। महबूबा का कहना है कि ऐसा करना एक सामूहिक निर्णय होगा और अभी समूह किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया है, क्योंकि परंपरागत रूप से सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। इसी बात को लेकर इन नेताओं में बेचैनी है यह संगठन अभी तक अपने किसी मकसद को हासिल नहीं कर पाया है।
क्या है गुपकार
गुपकार जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों का एक समूह है और जो जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को बहाल करने के लिए एक साथ आया था। पीएजीडी को एक बड़ा झटका तब लगा था जब इस साल 19 जनवरी को सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) पार्टी गठबंधन से बाहर हो गई। अभी एनसी पीडीपी, सीपीआई (एम), अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एएनसी) और पीपुल्स मूवमेंट (पीएम) गठबंधन के शेष घटक हैं। इससे पहले, कांग्रेस, पीसी और जेल में बंद इंजीनियर रशीद के नेतृत्व वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) भी गठबंधन का हिस्सा थी। पीएजीडी में विचारधाराओं, नीतियों और व्यक्तिगत विचारों की विविधता है, इसलिए कई मुद्दों पर वे आपस में ही टकरा रहे हैं।
पार्टी को जिंदा करना चाहती हैं मुफ्ती
बताया जाता है कि एनसी पीएजीडी के गठन के पक्ष में नहीं थी क्योंकि वह पहले से ही टूट चुकी पीडीपी को नया जीवन नहीं देना चाहती थी। जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद जम्मू-कश्मीर की पिछली चुनी हुई सरकार में भाजपा के साथ गठबंधन करने वाली बाद पीडीपी "राजनीतिक रूप से मृत" हो गई थी। एनसी और पीडीपी के नेताओं को लंबे समय तक नजरबंद रखा गया। मुफ्ती अपनी पार्टी को राजनीतिक जीवन देने के लिए सुरक्षा बलों के हाथों कश्मीर के आतंकवादियों के मारे जाने का शोक मनाती रहती हैं। उन पर यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने वोट हासिल करने के लिए अलगाववादी भावना का इस्तेमाल किया और जब जरूरत पड़ी तो गठबंधन सरकार बनाने के लिए भाजपा का समर्थन ले लिया।
दूसरी तरफ राज्य के बंटवारे के बाद एनसी को सबसे अधिक नुकसान हुआ क्योंकि पार्टी को विधानसभा चुनावों के अगले दौर में जीतने की उम्मीद थी। पीडीपी के भाजपा के साथ सरकार बनाने के फैसले से एनसी को बढ़त मिली थी, लेकिन राज्य से अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद अब तक विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं और पार्टी को अब अपना सियासी दबदबा खत्म होता दिख रहा है। इसलिए तालिबान के बहाने एनसी और पीडीपी कश्मीर की तरफ दुनिया का और कश्मीर की अवाम का ध्यान अपनी तरफ लाने के बहाने तलाश रही है।
विस्तार
पूरी दुनिया जानती है कि तालिबान कट्टरपंथी और हिंसक संगठन है। उसके अफगानिस्तान पर काबिज होने के बाद पूरी दुनिया को नागरिक स्वतंत्रता और अधिकार के खतरे में पड़ जाने का डर है। लेकिन जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और फारूक अबदुल्ला तालिबान के समर्थन में बयान दे रहे हैं। महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को कहा कि तालिबान अब एक हकीकत बन चुका है। उन्होंने कहा कि तालिबान को 'असली शरिया' कानून के तहत अफगानिस्तान पर शासन करना चाहिए। उनसे पहले अब्दुल्ला ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि तालिबान सरकार अफगानिस्तान में इस्लाम के सिद्धांतों का पालन करेगी और मानवाधिकारों का ख्याल रखेगी।
ध्यान खींचने की कोशिश
तालिबान के समर्थन में दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के इस बयान को ध्यान खींचने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। जानकार बताते हैं कि दोनों ही नेता जम्मू-कश्मीर में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और तालिबान पर बयान देकर वे जम्मू-कश्मीर के हालात पर चर्चा करने और कश्मीर की अवाम का ध्यान अपनी तरफ करने के बहाने तलाश रहे हैं।
वहीं इसकी एक वजह यह भी बताई जा रही है कि पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) अक्टूबर 2020 में अपने गठन के बाद से ही अस्थिर है और ज्यादतर मुद्दे पर उनकी आपस में सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी खिलाफ बना यह गठबंधन अपना मकसद खो रहा है।
गठबंधन के अस्तित्व में आने के बाद, पीएजीडी नेताओं ने कहा कि उनकी प्राथमिकता अनुच्छेद 370 को बहाल करने के लिए संघर्ष करना था न कि चुनाव लड़ना। लेकिन नवंबर 2021 में, उसने जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव संयुक्त रूप से लड़ने का फैसला किया। लेकिन अभी तक इस बात पर सहमति नहीं बन पाई है कि पीएजीडी विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ेगी या एक साथ। महबूबा का कहना है कि ऐसा करना एक सामूहिक निर्णय होगा और अभी समूह किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया है, क्योंकि परंपरागत रूप से सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। इसी बात को लेकर इन नेताओं में बेचैनी है यह संगठन अभी तक अपने किसी मकसद को हासिल नहीं कर पाया है।
क्या है गुपकार
गुपकार जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों का एक समूह है और जो जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को बहाल करने के लिए एक साथ आया था। पीएजीडी को एक बड़ा झटका तब लगा था जब इस साल 19 जनवरी को सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) पार्टी गठबंधन से बाहर हो गई। अभी एनसी पीडीपी, सीपीआई (एम), अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एएनसी) और पीपुल्स मूवमेंट (पीएम) गठबंधन के शेष घटक हैं। इससे पहले, कांग्रेस, पीसी और जेल में बंद इंजीनियर रशीद के नेतृत्व वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) भी गठबंधन का हिस्सा थी। पीएजीडी में विचारधाराओं, नीतियों और व्यक्तिगत विचारों की विविधता है, इसलिए कई मुद्दों पर वे आपस में ही टकरा रहे हैं।
पार्टी को जिंदा करना चाहती हैं मुफ्ती
बताया जाता है कि एनसी पीएजीडी के गठन के पक्ष में नहीं थी क्योंकि वह पहले से ही टूट चुकी पीडीपी को नया जीवन नहीं देना चाहती थी। जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद जम्मू-कश्मीर की पिछली चुनी हुई सरकार में भाजपा के साथ गठबंधन करने वाली बाद पीडीपी "राजनीतिक रूप से मृत" हो गई थी। एनसी और पीडीपी के नेताओं को लंबे समय तक नजरबंद रखा गया। मुफ्ती अपनी पार्टी को राजनीतिक जीवन देने के लिए सुरक्षा बलों के हाथों कश्मीर के आतंकवादियों के मारे जाने का शोक मनाती रहती हैं। उन पर यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने वोट हासिल करने के लिए अलगाववादी भावना का इस्तेमाल किया और जब जरूरत पड़ी तो गठबंधन सरकार बनाने के लिए भाजपा का समर्थन ले लिया।
दूसरी तरफ राज्य के बंटवारे के बाद एनसी को सबसे अधिक नुकसान हुआ क्योंकि पार्टी को विधानसभा चुनावों के अगले दौर में जीतने की उम्मीद थी। पीडीपी के भाजपा के साथ सरकार बनाने के फैसले से एनसी को बढ़त मिली थी, लेकिन राज्य से अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद अब तक विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं और पार्टी को अब अपना सियासी दबदबा खत्म होता दिख रहा है। इसलिए तालिबान के बहाने एनसी और पीडीपी कश्मीर की तरफ दुनिया का और कश्मीर की अवाम का ध्यान अपनी तरफ लाने के बहाने तलाश रही है।