हिंदुस्तान की पहचान और शान हिंदी भाषा ही है। इसे अहमियत देना और पूरी तरह अपनाना बेहद जरूरी है। इसे बोलचाल और कामकाज की भाषा बनाया जाना चाहिए, नहीं तो समय के साथ ये अपनी पहचान भी खो देगी। सरकार को भी चाहिए कि नई शिक्षा नीति जल्द लागू की जाए, उससे शिक्षा के स्तर पर हिंदी को पहचान मिलेगी। स्कूल और कॉलेज स्तर पर हिंदी दिवस को त्योहार की तरह मनाया जाना चाहिए ताकि बच्चों को हिंदी का महत्व समझ में आए। साथ ही घर-घर से हिंदी की शुरुआत होनी चाहिए। लोगों को चाहिए वे अपने बच्चों की दिनचर्या में हिंदी को शामिल करें।
हिंदी भाषा हर भारतीय को एक सूत्र में पिरोने का काम करती है। हमारी देश की पहचान ही अनेकता में एकता है। हिंदी सभी को एक साथ बांधने का काम करती है। पूरे विश्व में हिंदी हिंदुस्तान की पहचान है और इस पर हर देश के व्यक्ति को गर्व होना चाहिए। किसी भी देश में वहां के नागरिक अपनी राष्ट्र भाषा को प्राथमिकता देते हैं, फिर हिंदुस्तान में हिंदी को भूलकर दूसरी भाषा को अपनाना गलत है। पहले लोग केवल अंग्रेजी भाषा बच्चों को सिखाने की दौड़ में लगे रहते थे, अब फ्रेंच जैसी और भी कई भाषाओं की तरफ भाग रहे हैं, लेकिन हिंदी को भूल रहे हैं, जो गलत है।- डॉ. मित्ताली गुप्ता, सदस्य रोटरी क्लब
हर भाषा का अपना एक महत्व होता है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक ही भाषा जरूरी है लेकिन हिंदी मातृभाषा है, जो हर व्यक्ति को आनी ही चाहिए। ऐसा अनिवार्य भी होना चाहिए। देश के किसी भी कोने में चले जाएं लेकिन हिंदी को हर व्यक्ति थोड़ा बहुत समझता ही है। यह बहुत जरूरी है कि देश के हर व्यक्ति को हिंदी आए, इससे देश में कहीं भी जाने पर व्यक्ति को आसानी हो जाएगी। भाषा की वजह से देश में ही लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है लेकिन अगर हर भारतीय हिंदी भाषा को मातृभाषा का दर्जा देकर अपनाएगा तो देश के लिए गर्व की बात होगी।- संतोष शाह, उपाध्यक्ष, लिट्रली ऑर्गेनाइजेशन
राष्ट्रभाषा हिंदी लेखन और वाचन में पूर्ण रूप से स्पष्ट, शुद्ध और वैज्ञानिक भाषा है। देवभाषा के बाद हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसमें स्वर व व्यंजनों का असीम समावेश मिलता है। हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसमें प्रत्येक संज्ञा के लिए पर्यायवाची शब्दों का कोष मिलता है। हिंदी भाषा मातृभाषा ही नहीं भारत की संस्कृति व सभ्यताओं का संपूर्ण दर्शन भी है। इसलिए हमें हिंदी भाषा को प्रोत्साहन देकर और इसे अपनाकर अपने राष्ट्र की संस्कृति को सुदृढ़ करना चाहिए। -कुसुम हिंदू, सामाजिक कार्यकर्ता, सांबा
हिंदी भाषा को पूरी तरह से अपनाना बेहद ही जरूरी है। इसके लिए सरकार को चाहिए कि सबसे पहले तो नई शिक्षा नीति को लागू किया जाए, उससे शिक्षा के स्तर पर भी हिंदी को काफी पहचान मिलेगी। साथ ही घर-घर से हिंदी की शुरुआत होनी चाहिए। जो लोग सुबह उठकर बच्चों को गुड मॉर्निंग बोलते हैं, उसकी जगह सुप्रभात बोला जाना चाहिए, ताकि किसी न किसी तरह से हिंदी उनकी दिनचर्या में शामिल की जा सके। हिंदी को बढ़ावा देना जरूरी है और खासतौर पर नई पीढ़ी के लिए।- रजनी गुप्ता, महासचिव, जेएंडके नेशनल ह्यूमन राइट्स
हिंदी राष्ट्र की भाषा है और देश की बुनियाद ही हिंदी पर है। आज के समय में हर कोई अंग्रेजी को बहुत अहमियत देता है। हर किसी की कोशिश रहती है कि उनके बच्चों को हिंदी कम और अंग्रेजी भाषा ज्यादा आए। स्कूल और कॉलेज स्तर पर हिंदी दिवस को त्योहार की तरह मनाया जाना चाहिए ताकि बच्चों को हिंदी का महत्व समझ में आए। यह बेहद जरूरी है कि हर व्यक्ति यह सुनिश्चित करे कि हिंदी भाषा को बोलचाल और कामकाज की भाषा बनाया जाए। यह एकमात्र ऐसी भाषा है जो हिंदुस्तान की पहचान है।- मीनाक्षी चिब्बर, सामाजिक कार्यकर्ता
हिंदुस्तान की पहचान और शान हिंदी भाषा ही है। इसे अहमियत देना और पूरी तरह अपनाना बेहद जरूरी है। इसे बोलचाल और कामकाज की भाषा बनाया जाना चाहिए, नहीं तो समय के साथ ये अपनी पहचान भी खो देगी। सरकार को भी चाहिए कि नई शिक्षा नीति जल्द लागू की जाए, उससे शिक्षा के स्तर पर हिंदी को पहचान मिलेगी। स्कूल और कॉलेज स्तर पर हिंदी दिवस को त्योहार की तरह मनाया जाना चाहिए ताकि बच्चों को हिंदी का महत्व समझ में आए। साथ ही घर-घर से हिंदी की शुरुआत होनी चाहिए। लोगों को चाहिए वे अपने बच्चों की दिनचर्या में हिंदी को शामिल करें।
हिंदी भाषा हर भारतीय को एक सूत्र में पिरोने का काम करती है। हमारी देश की पहचान ही अनेकता में एकता है। हिंदी सभी को एक साथ बांधने का काम करती है। पूरे विश्व में हिंदी हिंदुस्तान की पहचान है और इस पर हर देश के व्यक्ति को गर्व होना चाहिए। किसी भी देश में वहां के नागरिक अपनी राष्ट्र भाषा को प्राथमिकता देते हैं, फिर हिंदुस्तान में हिंदी को भूलकर दूसरी भाषा को अपनाना गलत है। पहले लोग केवल अंग्रेजी भाषा बच्चों को सिखाने की दौड़ में लगे रहते थे, अब फ्रेंच जैसी और भी कई भाषाओं की तरफ भाग रहे हैं, लेकिन हिंदी को भूल रहे हैं, जो गलत है।- डॉ. मित्ताली गुप्ता, सदस्य रोटरी क्लब
हर भाषा का अपना एक महत्व होता है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक ही भाषा जरूरी है लेकिन हिंदी मातृभाषा है, जो हर व्यक्ति को आनी ही चाहिए। ऐसा अनिवार्य भी होना चाहिए। देश के किसी भी कोने में चले जाएं लेकिन हिंदी को हर व्यक्ति थोड़ा बहुत समझता ही है। यह बहुत जरूरी है कि देश के हर व्यक्ति को हिंदी आए, इससे देश में कहीं भी जाने पर व्यक्ति को आसानी हो जाएगी। भाषा की वजह से देश में ही लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है लेकिन अगर हर भारतीय हिंदी भाषा को मातृभाषा का दर्जा देकर अपनाएगा तो देश के लिए गर्व की बात होगी।- संतोष शाह, उपाध्यक्ष, लिट्रली ऑर्गेनाइजेशन
राष्ट्रभाषा हिंदी लेखन और वाचन में पूर्ण रूप से स्पष्ट, शुद्ध और वैज्ञानिक भाषा है। देवभाषा के बाद हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसमें स्वर व व्यंजनों का असीम समावेश मिलता है। हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसमें प्रत्येक संज्ञा के लिए पर्यायवाची शब्दों का कोष मिलता है। हिंदी भाषा मातृभाषा ही नहीं भारत की संस्कृति व सभ्यताओं का संपूर्ण दर्शन भी है। इसलिए हमें हिंदी भाषा को प्रोत्साहन देकर और इसे अपनाकर अपने राष्ट्र की संस्कृति को सुदृढ़ करना चाहिए। -कुसुम हिंदू, सामाजिक कार्यकर्ता, सांबा
हिंदी भाषा को पूरी तरह से अपनाना बेहद ही जरूरी है। इसके लिए सरकार को चाहिए कि सबसे पहले तो नई शिक्षा नीति को लागू किया जाए, उससे शिक्षा के स्तर पर भी हिंदी को काफी पहचान मिलेगी। साथ ही घर-घर से हिंदी की शुरुआत होनी चाहिए। जो लोग सुबह उठकर बच्चों को गुड मॉर्निंग बोलते हैं, उसकी जगह सुप्रभात बोला जाना चाहिए, ताकि किसी न किसी तरह से हिंदी उनकी दिनचर्या में शामिल की जा सके। हिंदी को बढ़ावा देना जरूरी है और खासतौर पर नई पीढ़ी के लिए।- रजनी गुप्ता, महासचिव, जेएंडके नेशनल ह्यूमन राइट्स
हिंदी राष्ट्र की भाषा है और देश की बुनियाद ही हिंदी पर है। आज के समय में हर कोई अंग्रेजी को बहुत अहमियत देता है। हर किसी की कोशिश रहती है कि उनके बच्चों को हिंदी कम और अंग्रेजी भाषा ज्यादा आए। स्कूल और कॉलेज स्तर पर हिंदी दिवस को त्योहार की तरह मनाया जाना चाहिए ताकि बच्चों को हिंदी का महत्व समझ में आए। यह बेहद जरूरी है कि हर व्यक्ति यह सुनिश्चित करे कि हिंदी भाषा को बोलचाल और कामकाज की भाषा बनाया जाए। यह एकमात्र ऐसी भाषा है जो हिंदुस्तान की पहचान है।- मीनाक्षी चिब्बर, सामाजिक कार्यकर्ता