और सुनाओ बरखुदार
इन दिनों क्या चल रहा;
कालिज - वालिज तो कर लिया
क्या है इरादा अब आगे का?
नौकरी-वोकरी कोई ढूंढ़ी
या अभी आराम चल रहा?
कोई इग्ज़ाम वगैरा लिखो
बहुत कंपीटीशन चल रहा।
और भला नौकरी में भी क्या रखा
छोटी-मोटी सही कोई दुकान चलाओ
मेरी मानो, लम्बा हाथ मारना है तो
कोई सीरियल - वीरियल बनाओ।
दुनिया पगलाई सीरियलों में
हर तरफ़ है उनकी बस चर्चा
ख़ूब चलेगी ऊंची दुकान यह
हाँ, हो जाएगा थोड़ा अच्छा खर्चा।
तजुर्बे को तो रखो ताक पे
आज से ही शुरू हो जाओ
चार दोस्त संग मिलाओ
कोई नई कंपनी बनाओ।
कहानी-वहानी का कोई चक्कर नहीं
हर एपिसोड के पहले ही लिखी जाती
और उनके वजूद की भी क्या बिसात
एक ही ढर्रे पे तो हैं सब चलाती ।
वह है न तुम्हारा छोटा भाई
क्या नाम है उसका? हाँ, गपोड़ी राम
वही लिख देगा कुछ ऊल-जलूल
बस बन जायेगा गया काम।
किरदारों की न फिक्र करो
किस काम की तुम्हारी चांडाल-चौकड़ी?
थोड़ी कमसिन है तो हर्ज़ क्या
दादी माँ का रोल करेगी सहपाठी छोकरी ।
क्या हुआ गर हम-उम्र हैं सभी संगी-साथी
कोई बन जाये उनमें से बेटा, तो कोई बाप
ज़रूरत नहीं रूप-सज्जा बड़े-बूड़ों सरीखी
बस डेड्डी-मम्मी बुलाने भर से बनेगी बात।
किसी को जाना हो छोड़, या फिर
मिल न रही हो किसी से राशि
चिंता की बात नहीं, बस लिख दो इतना
आज से रानी का रोल करेगी चरण दासी।
और किसी को चाहिए गर लंबी छुट्टी
या आन पड़े कोई बेवक्त बीमारी
रातो-रात करवा प्लास्टिक सर्जरी
करो फिर इक नए रूप की तैयारी।
चेहरा तो चेहरा, कद-काठी,
रंग, आवाज़ सब बादल डालो
भला कौन आए पूछने, गर
दो-चार फुट कद भी कतर डालो।
खाली मनोरंजन के नाम पर
असंगत और बेतुकी बकवास रहे जारी
पहले ही लिख दो, है सब मनघड़त,
तुम्हारी नहीं कोई ज़िम्मेदारी।
पब्लिक बहुत नासमझ- भोली-भाली
जितना उल्लू बनाओ, बनती
और सब औरतें, चूल्हा-चौका छोड़
टी वी के सामने जा जमती।
ऐसे नमक, मिर्च-मसाले छिड़को
चटोरी ज़ुबानों पे नशा जम जाये
पानी-पानी कर ऐसा रायता फैलाओ
पाँच-सात साल तो आसानी से खींच जाये।
अरे हाँ, सब से पहले
किसी पंडित को बुलाओ
शुभ-मुहूर्त देख
अपना किस्मती वर्ण निकलवाओ ।
कंपनी का नाम रखो
जैसे ‘क्लासिक प्रोडक्शन’
और सीरियल का नाम हो जैसे
‘कहाँ-कहाँ, कैसी-कैसी कड्कन’।
सफलता के लिए ज़रूरी
बस अक्षरों की करामात
अपने नाम के हिज्जे भी बदलो
तो ज़रूर बनेगी बात।
तो बरखुदार, बस शुरू हो जाओ
लेकर प्रभु का नाम
मामूली नहीं रहे तुम अब
देना है बहुत बड़ा अंजाम।
पब्लिक को उल्लू बनाने में
हुए अगर सफल
ज़रूर बनोगे एक दिन नामी नेता भी
बात तो है यह अटल।
फिर तो काम-धंधे की परेशानी से
मुकम्मल छूट जाओगे
बस झूठे वादों की कमाई
सारी उम्र बैठ के खाओगे।
कवि बिमल सहगल - नवंबर 1954 में दिल्ली में जन्मे बिमल सहगल, आई एफ एस (सेवानिवृत्त) ने दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। अंग्रेजी साहित्य में ऑनर्स के साथ स्नातक होने के बाद, वह विदेश मंत्रालय में मुख्यालय और विदेशों में स्थित विभिन्न भारतीय राजदूतावासों में एक राजनयिक के रूप में सेवा करने के लिए शामिल हो गए। ओमान में भारत के उप राजदूत के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने जुलाई, 2021 तक विदेश मंत्रालय को परामर्श सेवाएं प्रदान करना जारी रखा।
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