धूमिल मात्र अनुभूति के कवि नहीं, विचार के कवि हैं। उनके यहां अनुभूतिपरकता और विचारशीलता, इतिहास और समझ, एक दूसरे से घुले-मिले हैं। उनकी कविता भावात्मक स्तर पर ही नहीं बल्कि बौद्धिक स्तर पर भी सक्रिय रहती है।
मुर्गे की बांग पर
सूरज को टांगकर
सो जाओ हत्याओं के खिलाफ
ओढ़कर
निकम्मी आदतों का लिहाफ।
क्योंकि यही वक्त है जबकि सिरहाने
घड़ी के अलार्म का टूटा हुआ होना भी-
एक अदद सुविधा है।
वर्ना तुम कर भी क्या सकते हो
वर्ना तुम कर भी क्या सकते हो
यदि पड़ोस की महिला का एक बटन
तुम्हारी बीवी के ब्लाउज से
(कीमत में ) बड़ा है
और प्यार करने से पहले
तुम्हें पेट की आग से होकर गुजरना पड़ा है।
फिर भी तुम चाहो तो यह करो
फिर भी तुम चाहो तो यह करो
फिर भी तुम चाहो तो यह करो
कि
अपने इतवार में
घुसी हुई बुढ़िया को
बाहर ढकेल दो
चाहे वह तुम्हारी
गृहस्थी ही क्यों न हो
धूप कमरे में खड़ी है
अपनी देह
स्वप्नों की दीवार बनने से बचाओ
वक्त के चौकस पंजों में
उम्र की गायब शक्लों को समेटकर
खाल के नीचे घुस जाओ
और भूल जाओ
कि नींद में
पेड़ के लिए
तुमने जंगल से बहस की है
चीख जो अंधेरे में
तुमने सुनी है सिर्फ
तुमने ही नहीं सबने सुनी है
सबने उसे ढाल पर गिरते हुए देखा है
सबने उसे ढाल पर
गिरते हुए देखा है
और महज एक देर
सबकी आंखों में
गुस्सा गुर्राया है, आंधीनुमा
बेचैनी चेहरों पर छाई है
सबने महसूस किया- कैसा अन्याय है ।
किंतु वहां सामने कोई नहीं आया है
किंतु वहां सामने
कोई नहीं आया है
किसी ने नहीं कहा कि जुर्म की जगह
यह है और
पत्तों का हरापन डर की वजह है ।
भीतर की बत्तियां बुझाकर
किसी ने नहीं कहा-
हर आदमी
भीतर की बत्तियां बुझाकर
पड़े-पड़े सोता है
क्योंकि वह समझता है
कि दिन की शुरुआत का ढंग
सिर्फ हारने के लिए होता है
हमदर्दी
चेहरों से आंसू और चमड़ा
बटोरती है
उम्मीद के चौखटों पर
चुम्बन की तेल लगी कीलों से
तसल्ली के जुमले टांकती है
और फिर दूसरे मरीज़ की तलाश में
क्षमाहीन लोगों की भीड़ में
वापस चली जाती है
और तुम पाते हो कि तुम अकेले रह गए हो
और तुम पाते हो कि तुम अकेले
रह गए हो
हारी हुई चीजों ने
अपने को चुनौतियों के सामने से
हटा लिया है और
अब सवालों की ओट में
खड़ी होकर
तुम्हारे लौटने का इंतजार
कर रही हैं
लौट जाओ
लौट जाओ
इससे पहले कि तने हुए हाथों के
ठूंठ पर
रोशनी की चील बीट कर दे
असमय का साहस
आनेवाले दिनों को
चिथड़ों और सड़े हुए दांतों से भर दे
इससे पहले कि
ईमानदारी तुम्हें उस जगह ले जाए
जहां बेटा तुम्हें बाप कहते हुए
शरमाए,
तुम वापस चले जाओ
हत्यारी संभावनाओं के नीचे
सहनशीलता का नाम
आज भी हथियारों की सूची में नहीं है
रात खत्म हो चुकी है
और वह सुरक्षित नहीं है
जिसका नाम हत्यारों की सूची में नहीं है।
साभार : धूमिल, संसद से सड़क तक (राजकमल प्रकाशन)
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फिर भी तुम चाहो तो यह करो