जितनी पत्तियाँ हैं
उतने दुख हैं वृक्ष के
जितनी शाखें हैं फल हैं उतनी आशंकाएँ
जितनी गहरी छाया है
यातना है उतनी गहरी
जितनी गहरी जड़ें हैं
जितनी गहराई तक उखड़ना है
जितनी ऊँचाई है
उतने ऊँचे होने हैं आघात
बीज फिर भी क्यों होना चाहते हैं वृक्ष
मनुष्यों की तरह शायद नहीं होते वृक्ष
बीजों को वे अपनी बुरी स्मृतियाँ नहीं देते
उन्हें वे सिर्फ़ फलों की फूलों की रंगों की ख़ुशबुओं की
मौसमों और चिड़ियों की स्मृतियाँ ही देते हैं
दुखद स्मृतियों से उन्हें रखते हैं मुक्त
घृणा और हिंसा से भरे इस समय में
पौधों को सींचते हुए
करता हूँ कामना उस साहस की
जिसके साथ मिट्टी में कर सकूँ प्रवेश
एक बीज की तरह।
1 month ago
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