मेरे अंतर्मन को सीचे l
ऐसा ख़्वाब और ख़याल भी तू l
मंजिल तक पहुँचाए जो l
उस पथ का हमराही भी तू ll
गंगा में बहती धारा सा l
ऐसे मन का सार भी तू ll
काँटों से लिपटे फूलों पर l
ऐसे बैठे वह भँवरा भी तू ll
पर्वत श्रृखंला सा अडिग l
ऐसा मेरे मन का विश्वास भी तू ll
चंद लम्हों में हसरत जैसा l
ऐसा एक पल का ऐतबार भी तू ll
-अपराजिता
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