न जाने किस हाल से गुज़र रहा हूं मैं
जैसे एक उम्र तक जिंदगी से बेखबर रहा हूं मैं
तेरे साथ से हर महफ़िल की शान था और
बाद तेरे हर महफ़िल में बे-असर रहा हूं मैं
हर घड़ी हर दफा नाकाम कोशिशें
पाने तुझे बैचेन इस कदर रहा हूं मैं
तेरी बेवफाई कर गई मेरी चमक फीकी
नहीं उगते सूरज सा उम्र भर रहा हूं मैं
होंगे और ही शायर हो टूटा दिल जिनका
तेरे दामन से छूट के दर-वा-दर रहा हूं मैं
नज़रें थकती नहीं देखते राह अब तेरी
कैसे कहूं बेताब अब मर रहा हूं मैं
रात की चांदनी में बुझे चिराग को लेकर
तेरे घर की तलाश में बे-घर रहा हूं मैं
आरज़ू है मेरी कोई पुकारे लेकर नाम मेरा
खो ना जाऊं कहीं इस बात से डर रहा हूं मैं ।।
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2 months ago
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