अभी तो वक़्त का काफ़ी हिसाब बाक़ी है
हमें जो पढ़नी है असली किताब बाक़ी है।
इन्हें सम्भाल कर रखूँगा ग़ुम न जाएँ कहीं,
ख़राबियाँ जो अब देंगी ख़िताब बाक़ी है।
तेरा गुरूर भी तोड़ेगी आबरू मेरी,
अभी तो आख़िरी जाम-ए-शराब बाक़ी है।
अभी गिरफ़्त में है मुल्क़ तानाशाही की,
कितना जाने अभी ख़ाना ख़राब बाक़ी है। आगे पढ़ें
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