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By-elections: BJP's strategy in booth management failed due to candidate selection in Mainpuri and Khatauli
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उपचुनाव : मैनपुरी और खतौली में प्रत्याशी चयन से बूथ प्रबंधन में सफल नहीं हुई भाजपा की रणनीति
अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ
Published by: पंकज श्रीवास्तव
Updated Fri, 09 Dec 2022 09:54 AM IST
सार
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मुस्लिम बहुल रामपुर में सपा और मोहम्मद आजम खान का अभेद्य गढ़ ढहाकर भाजपा ने लाज बचाई है। रामपुर में मात्र 33 फीसदी मतदान के बावजूद भाजपा के आकाश सक्सेना की 34 हजार मतों से जीत को रामपुर में रामराज की शुरुआत बताया जा रहा है।
रामपुर में मतगणना स्थल (फाइल फोटो)
- फोटो : अमर उजाला
मैनपुरी और खतौली उप चुनाव में प्रत्याशी चयन से लेकर बूथ प्रबंधन तक भाजपा की रणनीति सफल नहीं हो सकी। सत्ता, संगठन और संसाधनों के बावजूद मैनपुरी की रिकार्ड हार और खतौली सीट हाथ से छीनने से भाजपा को झटका लगा है। लेकिन करीब साढ़े चार दशक से सपा और मोहम्मद आजम खान का अभेद्य गढ़ रहे रामपुर में भगवा परचम फहरने से भाजपा के राष्ट्रवाद के एजेंडे को मजबूती मिली है।
सपा के संस्थापक एवं संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनकी मैनपुरी सीट पर हुए उप चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा और सपा ने पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा। सरकार और संगठन पूरे दमखम से पार्टी प्रत्याशी रघुराज शाक्य के समर्थन में मैदान में थे। वहीं सैफई का यादव परिवार ने भी मुलायम की राजनीति विरासत को बचाने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी। लेकिन चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि मैनपुरी में पार्टी की रिकार्ड हार में कहीं न कहीं जिला और क्षेत्रीय स्तर पर संगठन की कमजोरी भी बड़ी वजह रही।
मैनपुरी में चुनाव प्रचार से लौटे एक कार्यकर्ता का कहना है कि मैनपुरी में हार की सबसे बड़ी वजह वहां संगठन का कमजोर होना है। बीते चार दशकों से मैनपुरी में सैफई परिवार का दबदबा होने के कारण वहां कार्यकर्ताओं की उतनी अच्छी टीम खड़ी नहीं सकी जितनी अन्य जिलों में है। वे बताते हैं कि लोकसभा क्षेत्र के 2239 बूथों में से 400 से अधिक बूथ ऐसे हैं जहां भाजपा का बस्ता (मतदान केंद्र के बाहर लगने वाली टेबल की सामग्री) लेने वाला कोई नहीं था। सपा प्रत्याशी डिंपल यादव के सामने रघुराज शाक्य कमजोर प्रत्याशी साबित हुए। शाक्य का अपने गांव के बूथ पर चुनाव हारना और मैनपुरी भाजपा के जिलाध्यक्ष प्रदीप चौहान के बूथ पर भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। पार्टी सूत्रों के मुताबिक सीएम योगी, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल जहां पूरा दमखम लगा रहे थे। वहीं आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उप चुनाव की जीत के दम पर मैनपुरी में तैनात चुनाव प्रबंधन के लिए तैनात किए गए पार्टी पदाधिकारी अति आत्मविश्वास में रहे। जबकि सैफई परिवार राजनीति विरासत बचाने के लिए घर घर दस्तक देता रहा।
खतौली उप चुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर शुरुआत में ही बगावत के सुर उठने लगे थे। मुजफ्फनगर दंगों में दो साल की सजा मिलने से विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता समाप्त होने के बाद पार्टी ने उनकी ही पत्नी राजकुमारी सैनी को प्रत्याशी बनाया। उप चुनाव में खतौली सीट हाथ से छीनने से भाजपा को पश्चिमी यूपी में बड़ा झटका लगा है। हालांकि रामपुर सीट जीतने से विधानसभा में भाजपा की सदस्य संख्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर खतौली की हार से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव बालियान के लिए भी बड़ा संदेश है। पार्टी के दो कद्दावर जाट नेताओं की मौजूदगी के बावजूद खतौली का जाट वोट बैंक रालोद के मदन भैया के समर्थन में रहा। जयंत की जाट, जाटव, गुर्जर और मुस्लिम गठजोड़ की रणनीति के आगे भाजपा के दोनों जाट नेताओं की चुनावी रणनीति फेल रही। खतौली में पार्टी की ओर से तैनात बड़े नेताओं और स्थानीय नेताओं की मतभिन्नता ने भी चुनावी रणनीति को धरातल पर नहीं उतरने दिया।
रामपुर में रामराज से दिया संदेश
मुस्लिम बहुल रामपुर में सपा और मोहम्मद आजम खान का अभेद्य गढ़ ढहाकर भाजपा ने लाज बचाई है। रामपुर में मात्र 33 फीसदी मतदान के बावजूद भाजपा के आकाश सक्सेना की 34 हजार मतों से जीत को रामपुर में रामराज की शुरुआत बताया जा रहा है। आकाश को ना केवल आजम के खिलाफ किए गए संघर्ष का इनाम मिला है। पहले रामपुर लोकसभा उप चुनाव और फिर विधानसभा उप चुनाव में भगवा फहराकर भाजपा ने ध्रवीकरण के आधार पर राष्ट्रवाद की राजनीति को 2024 तक जारी रखने का संदेश दिया है।
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