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UP By-Elections : चुनावी रण में नहीं उतरा हाथी, दलित बनेंगे किसके साथी, सभी पार्टियां लगा रही हैं गणित
अमित मुद्गल, लखनऊ
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Sat, 26 Nov 2022 06:10 AM IST
सार
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UP : यही कारण है कि पक्ष-विपक्ष ने इसमें पूरी ताकत लगाई है। चूंकि बसपा उपचुनाव के इस रण में उतरी नहीं है इसलिए दलित वोटरों पर सभी की निगाह है। उनका रुख क्या होगा। बसपा थिंक टैंक भी इस पर पैनी नजर रखे है, क्योंकि तीनों ही क्षेत्रों में दलित मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या में हैं।
एक लोकसभा और दो विधानसभा क्षेत्रों में हो रहा उप चुनाव भले ही सत्ता के ढांचे को प्रभावित न कर रहा हो, पर दिग्गजों के क्षेत्र में चुनाव होने से यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। यही कारण है कि पक्ष-विपक्ष ने इसमें पूरी ताकत लगाई है। चूंकि बसपा उपचुनाव के इस रण में उतरी नहीं है इसलिए दलित वोटरों पर सभी की निगाह है। उनका रुख क्या होगा। बसपा थिंक टैंक भी इस पर पैनी नजर रखे है, क्योंकि तीनों ही क्षेत्रों में दलित मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या में हैं।
मैनपुरी : दलित जिसके साथ होगा खड़ा, वही हो जाएगा मजबूत
मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र का चुनाव पूरी तरह से हाई प्रोफाइल है। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर उनकी पुत्रवधू डिंपल यादव चुनावी रण में उतरी हैं। इस सीट को जीतने के लिए सपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। लगभग साढे़ चार लाख यहां यादव वोटर हैं। इनके बाद शाक्य वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। लगभग 3.25 लाख शाक्य चुनाव का परिणाम किसी के भी पक्ष में करने का दम रखते हैं।
यही वजह है कि भाजपा ने यहां से यादव को टक्कर देने के लिए शाक्य समाज से रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है। यहां दलित मतदाताओं की संख्या भी कम नहीं है। लगभग डेढ़ लाख दलित वोटर हैं। 17 लाख से ज्यादा वोटों वाले इस क्षेत्र में करहल, जसवंतनगर, किशनी, भोगांव और मैनपुरी सदर विधानसभा क्षेत्र आते हैं। करहल से खुद अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। जसवंत नगर से शिवपाल यादव विधायक हैं। किशनी से भी सपा के ब्रजेश कठेेरिया विधायक हैं। भोगांव से भाजपा के रामनरेश अग्निहोत्री जबकि मैनपुरी से भाजपा के जयवीर सिंह विधायक हैं। यानी मुकाबला तीन-दो का रहा था।
चूंकि यहां बसपा का उम्मीदवार मैदान में नहीं है तो सबकी निगाह दलित वोटरों पर है। बसपा इस वर्ग में अपनी खासी पैठ रखती है। वहीं यह भी सच है कि विस चुनाव 2022 में उसकी पकड़ इस वर्ग से ढीली हुई। दलित वोटर बंटे जिसका परिणाम यह रहा कि विधानसभा चुनाव में बसपा एक ही सीट जीत पाई। अब मैनपुरी में दलित वोटर जिसके साथ खड़ा हो गया, वही उम्मीदवार मजबूत हो जाएगा। दलितों को साधने के लिए भाजपा ने भी पूरी ताकत लगाई है। इसके लिए असीम अरुण, बेबी रानी मोर्य, केंद्रीय मंत्री एसपी बघेल को उतारा गया है।
रामपुर : भाजपा ने आजम खां के धुर विरोधी पर लगाया दांव
रामपुर विधानसभा क्षेत्र में भी इस समय चुनावी माहौल से गरम है। सजा होने के बाद यहां से आजम खां की विधायकी चली गई, जिससे अब उप चुनाव हो रहा है। अपने खास असिम रजा को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतार कर सपा में आजम ने अपनी ताकत का अहसास कराया। साथ ही उन्होंने पूरी ताकत लगाई है कि उनका यह गढ़ टूटने न पाए। उधर, भाजपा ने आजम खां के धुर विरोधी आकाश सक्सेना पर फिर से दांव लगाया है।
आजम और आकाश की अदावत पुरानी है। ऐसे में मुकाबला भी कड़ा है। आकाश जहां लोधी, वैश्यों के साथ दलितों पर दांव लगाने की कवायद में हैं, वहीं असिम मुस्लिम, यादव के साथ अन्य वोटरों को जोड़ने की मशक्कत कर रहे हैं। रामपुर में तीन लाख 88 हजार वोटर हैं। इनमें आधे से अधिक मुस्लिम हैं। दूसरे नंबर पर लोधी आते हैं, इनकी संख्या 50 हजार से ज्यादा है। वैश्य 30 हजार और दलित वोटरों की संख्या 20 हजार से ज्यादा है। यहां आकाश वैश्य, लोधी, पिछडे़ और दलितों का समीकरण बनाने की कोशिश में जुटे हैं और इसके लिए भाजपा ने दिग्गजों की फौज मैदान में उतारी है। गुलाब देवी समेत अन्य कई नेता लगातार यहां डेरा डाले हैं।
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खतौली : दलितों को जोड़ने के लिए भाजपा ने उतारी टीम
खतौली विधानसभा सीट पर भी उप चुनाव हो रहा है। हेट स्पीच मामले में विधायक विक्रम सैनी को सजा मिली, जिससे यह सीट खाली हुई। भाजपा ने उनकी पत्नी राजकुमारी सैनी को चुनाव मैदान में उतारा है तो रालोद ने मदन भैया पर दांव लगाया है। रालोद को सपा का समर्थन है। यहां पिछले चुनाव में बसपा तीसरे स्थान पर रही थी, पर इस बार चुनाव मैदान में नहीं है। ऐसे में मुकाबला आमने-सामने का है। जयंत चौधरी ने बड़ी-बड़ी सभाओं से माहौल बनाना शुरू किया है। वहीं भाजपा की तैयारी भी काफी तगड़ी है। इस सीट पर दलित वोटर 50 हजार से ज्यादा हैं। भाजपा ने दलितों को जोड़ने के लिए पूरी टीम उतारी है। पूर्व विधायक रणवीर राणा, रवि प्रकाश के साथ अन्य लोगों को यहां जोड़ा गया है।
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