आरएसएस का कहना है कि पाकिस्तान और अवार्ड लौटाने वाले लेखक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ फोबिया तैयार कर रहे हैं। आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ में कहा गया है कि हम देशभर में मोदी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के गवाह बन रहे हैं। ऐसा धार्मिक असहिष्णुता, अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी के प्रति सरकार के रवैये को लेकर हो रहा है।
मुंबई में भाजपा की राजनीतिक सहयोगी शिवसेना के पाकिस्तानी नेता कसूरी की किताब के अनावरण के मौके पर विरोध प्रदर्शन करने पर पाकिस्तान ने देश में बढ़ती असहिष्णुता और भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। इसी प्रकार हमारे बुद्धिजीवी साहित्यिक व्यक्तित्व अपना सम्मान लौटाकर ‘स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता के तानेबाने पर हमले’ के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। पत्र में विरोध करने वाले लेखकों को ‘वैचारिक असहिष्णुता’ को बढ़ावा देने का दोषी बताया गया है।
उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस पकाने के आरोप में इकलाख की हत्या के बाद कई जानेमाने साहित्यकारों ने अपने अवार्ड सरकार को लौटा दिए हैं। इन साहित्यकारों का आरोप है कि देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ लगातार हमले बढ़ रहे हैं और धार्मिक असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। बावजूद इसके सरकार ने हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी को भी साहित्यकारों ने अपने विरोध का आधार बनाया है। इकलाख की हत्या के करीब दो हफ्ते तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले पर चुप्पी साधे रखी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जब इस मसले पर लोगों को अपनी सभ्यता और संस्कृति की याद दिलाई, उसके बाद पीएम ने भी बिहार की एक चुनावी रैली में लोगों से सद्भाव के साथ रहने की अपील की।
आरएसएस का कहना है कि पाकिस्तान और अवार्ड लौटाने वाले लेखक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ फोबिया तैयार कर रहे हैं। आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ में कहा गया है कि हम देशभर में मोदी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के गवाह बन रहे हैं। ऐसा धार्मिक असहिष्णुता, अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी के प्रति सरकार के रवैये को लेकर हो रहा है।
मुंबई में भाजपा की राजनीतिक सहयोगी शिवसेना के पाकिस्तानी नेता कसूरी की किताब के अनावरण के मौके पर विरोध प्रदर्शन करने पर पाकिस्तान ने देश में बढ़ती असहिष्णुता और भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। इसी प्रकार हमारे बुद्धिजीवी साहित्यिक व्यक्तित्व अपना सम्मान लौटाकर ‘स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता के तानेबाने पर हमले’ के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। पत्र में विरोध करने वाले लेखकों को ‘वैचारिक असहिष्णुता’ को बढ़ावा देने का दोषी बताया गया है।