गुजरात की लड़ाई भी खत्म हुई। आज यानी आठ दिसंबर को गुजरात के साथ ही हिमाचल प्रदेश के भी नतीजे आ गए। गुजरात मे 2017 के चुनावों में भाजपा और कांग्रेस ही प्रमुख रूप से एक दूसरे के सामने थे, लेकिन इस बार दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने सत्ता की लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया। राज्य में जातिगत आरक्षण की मांग को लेकर हुए आंदोलनों के चलते आरक्षित सीटों पर सबकी नजर थी। हम आज आपको इन आरक्षित सीटों का हाल बताएंगे कि बीते विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार इन सीटों पर कितने बदले समीकरण और किसके पाले में आईं दलित और आदिवासी बाहुल्य सीटें। आइये जानते हैं....
गुजरात में विधानसभा सीटों का गणित
गुजरात में कुल 182 सीटें हैं। जिनमें से अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 13 सीटें और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं। वहीं, सामान्य वर्ग के लिए 142 सीटें हैं। ऐसे में आदिवासी वोट गुजरात चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए अहम हैं। राज्य में लगभग 15 फीसदी आबादी आदिवासी समुदाय की है। हालांकि पुराने चुनावों का इतिहास देखें तो साफ होता है कि आदिवासियों के लिए सुरक्षित इन सीटों पर किसी भी एक पार्टी का कभी दबदबा नहीं रहा है। इसके साथ ही पूरे राज्य की लगभग 35 से 40 सीटों पर आदिवासी वोटर अपना असर डालते हैं।
2017 में एसटी सुरक्षित सीटों के नतीजे
साल 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस भाजपा से आगे थी। कांग्रेस ने आरक्षित 27 सीटों में से 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी के खाते में सिर्फ 8 सीटें आई थीं। वहीं, भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी इसके अलावा एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। अगर वोट शेयरिंग के हिसाब से देखें तो कांग्रेस ने 46 फीसदी और बीजेपी ने 45 वोट हासिल किए थे। दोनों पार्टियों को एसटी के लिए आरक्षित सीटों पर करीब-करीब एक जैसा समर्थन मिला था।
2012 में एसटी सीटों के नतीजे
वहीं, साल 2012 में एसटी के लिए आरक्षित कुल 27 सीटों में से कांग्रेस को 16 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, उस चुनाव में भी भाजपा कांग्रेस से पीछे ही रही थी। 2012 में भाजपा ने 10 सीटों पर कब्जा जमाया था जबकि एक सीट जेडीयू के पाले में आई थी।
2017 में एससी आरक्षित सीटों का हाल
2017 के विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जाति एससी के लिए आरक्षित 13 सीटों में सात पर भाजपा को जीत मिली थी। वहीं, कांग्रेस ने पांच सीटों पर कब्जा जमाया था। वहीं, एक सीट पर निर्दलीय जिग्नेश मेवाणी ने कब्जा जमाया था। जिग्नेश मेवाणी वडगाम से चुनाव जीत कर विधायक बने थे। इस बार जिग्नेश मेवाणी ने कांग्रेस के चुनाव निशान पर दम भरा था।
जो हाल एसटी सीटों का है उसी प्रकार एससी सीटों पर भी कभी भी किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं रहा है। हालांकि साल 2012 में कच्छ, मध्य और उत्तर गुजरात के साथ ही अहमदाबाद और राजधानी गांधीनगर की एससी बहुल सीटों पर भाजपा कांग्रेस से आगे थी, लेकिन इस बार हालात बदल चुके हैं। भाजपा-कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी ने भी इस बार चुनावों में दम भरा है। वहीं, राजनीतिक पंडितों का भी कहना है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी के आने से दलित वोटरों के बीच बिखराव हो सकता है।
जिग्नेश मेवाणी ने दर्ज की जीत
जिग्नेश मेवाणी वडगाम विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। उन्होंने दलित युवा नेता के तौर पर राज्य में अपनी खास पहचान बनाई है। इस बार कांग्रेस से दम भर रहे जिग्नेश ने 2017 में निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। पेशे से वकील मेवाणी एक सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में भी उभरे हैं। आम आदमी पार्टी के आने से इस बार अपने वोट बैंक मुस्लिम और दलितों को बनाए रखने की चुनौती है। इस बार उनका मुकाबला भाजपा के मणिभाई जेठाभाई वाघेला और आप के दलपत भाटिया से था। फाइनल नतीजों में जिग्नेश मेवाणी ने जीत दर्ज की है।