इंजेक्शन की निडिल से डर लगने में कुछ असामान्य नहीं है, आपको या शायद आपके आसपास रहने वाले लोगों में निडिल से डर हो सकता है। हालांकि कोरोना महामारी जैसी विपरीत परिस्थिति में, जहां संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए वैक्सीनेशन को ही सबसे कारगर हथियार माना जा रहा है, इस तरह के डर के चलते लोगों के लिए टीकाकरण कराना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। अब अगर आपको भी हाल फिलहाल वैक्सीनेशन कराते समय इस डर का अनुभव हुआ हो तो यकीन मानिए आप जैसे लाखों लोग हैं, जिनकी निडिल देखते ही हालत खराब हो जाती है। तो ऐसे में सबसे बड़ा सवाल, जिन्हें निडिल से डर होता है वह वैक्सीनेशन करा कैसे पाते हैं? हाल ही में एक वैज्ञानिक ने इसके पीछे की थ्योरी के बारे में जानकारी दी है।
सोशल मीडिया पर साइंस सैम के नाम से मशहूर 31 साल की टोरंटो न्यूरोसाइंटिस्ट सामंथा यामिन, लोगों को वैक्सीनेशन कराने को लेकर प्रेरित करती रहती हैं। हालांकि यामिनी की कहानी भी कुछ वैसी ही है जैसा कि सूई से डरने वाले हम में से ज्यादातर लोगों की होती है। सोशल मीडिया पर शेयर किए गए एक पोस्ट में यामिन बताती हैं कि अभी भले ही मैं लोगों को वैक्सीनेशन के लिए प्रेरित कर रही हूं लेकिन लंबे समय तक मैं खुद निडिल फोबिया की शिकार थी। इस फोबिया के चलते अक्सर वैक्सीन लेने में आनाकानी करते-करते साल बीत जाते थे। यह फोबिया किसी को भी हो सकती है।
ट्रिपैनोफोबिया- निडिल से डर की समस्या
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक निडिल से लगने वाला डर एक प्रकार के फोबिया के कारण हो सकता है, इसे मेडिकल की भाषा में ट्रिपैनोफोबिया कहा जाता है। इस फोबिया में लोगों को इंजेक्शन या हाइपोडर्मिक सुइयों से डर लगने लगता है। वैसे तो बच्चों में सुइयों से डर होना ज्यादा सामान्य है क्योंकि वे अपनी त्वचा में किसी नुकीली चीज के चुभने की अनुभूति के अभ्यस्त नहीं होते हैं। हालांकि कुछ लोगों में यह डर वयस्कता तक भी बना रहता है। कई लोगों में यह डर जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है। निडिल से डर के चलते इलाज न हो पाने से कई बीमारियों की जटिलताओं का भी खतरा रहता है।
कहीं आपको भी तो नहीं है ट्रिपैनोफोबिया?
निडिल देखते ही डर लगने की समस्या को वैसे तो स्वास्थ्य विशेषज्ञ सामान्य मानते हैं, हालांकि कुछ स्थितियों में इस डर के कारण गंभीर लक्षण भी हो सकते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक निडिल देखते ही आंख बंद कर लेना या चीख निकलने तक तो सामान्य है पर अगर इससे चक्कर आने, बेहोशी, घबराहट, हाई ब्लड प्रेशर या हृदय गति असामान्य होने लगे तो ऐसी स्थितियां ट्रिपैनोफोबिया का संकेत हो सकती हैं।
ट्रिपैनोफोबिया होता क्यों है?
अध्ययनकर्ताओं को वैसे तो अब तक ट्रिपैनोफोबिया की असल वजह पता नहीं चल सकी है, हालांकि माना जाता है कि जीवन से जुड़े कुछ अनुभवों के कारण यह फोबिया हो सकती है।
- निडिल जैसी की किसी चीज से पहले किसी गंभीर आघात का अनुभव होना।
- फोबिया की यह समस्या आनुवांशिक भी हो सकती है, यानी कि यदि आपके घर में किसी को ऐसी दिक्कत रही हो तो आपमें भी यह सामान्य हो सकती है।
- मस्तिष्क के कुछ रसायनों में परिवर्तन।
- बचपन में किसी बीमारी के चलते बहुत ज्यादा इंजेक्शन लेना पड़ा हो।
ट्रिपैनोफोबिया को कैसे ठीक करें और टीकाकरण कैसे कराएं?
यदि आपमें ट्रिपैनोफोबिया के लक्षण हैं तो इस बारे में चिकित्सक से संपर्क करें। ट्रिपैनोफोबिया वाले अधिकांश लोगों को मनोचिकित्सा का सुझाव दिया जाता है। ऐसे लोगों में कॉग्नेटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) या एकस्पोजर थेरपी के माध्यम से निडिल को लेकर असामान्य डर कम किया जा सकता है। कुछ लोगों को दवाइयों की भी जरूरत हो सकती है।
अब सवाल आता है कि ट्रिपैनोफोबिया की स्थिति में वैक्सीनेशन कैसे कराएं? इस बारे में न्यूरोसाइंटिस्ट सामंथा यामिन कहती हैं, कोरोना जैसे महामारी से लड़ने के लिए वैक्सीनेशन आवश्यक है। इस फोबिया से निपटने के लिए टीकाकरण से कुछ दिन पहले तक मैं रोज वैक्सीन सेंटर जाती, वहां लोगों को देखती, खुद को अभ्यस्त करने के प्रयास करती। इस बारे में मैने मनोचिकित्सक से भी संपर्क किया। वैक्सीनेशन की जरूरत को समझते हुए यह सभी उपाय आवश्यक हैं।
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स्रोत और संदर्भ:
fear of medical procedures involving injections
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