मथुरा के बलदेव में बलदेव छठ महोत्सव पर भारी भीड़ उमड़ी। रविवार सुबह से मंदिर प्रांगण में दाऊजी महाराज की जय, रेवती मैया की जयकार सुनाई दी। नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की... नंद के आनंद भयो जय दाऊ दयाल की...गूंज रही। मंदिर जाने वाले सभी रास्ते श्रद्धालुओं से भरे नजर आए। बड़ी संख्या में भक्तों ने दाऊ बाबा के दर्शन कर पुण्य लाभ कमाया। मंदिर को गुब्बारों के साथ बिजली की झालरों से सजाया गया। वेद मंत्रोच्चारण से बलदेव सहस्रनाम पाठ विधिवत किया गया। बलदेव अवैरनी चौराहा, बलदेव नरहोली चौराहा, बस स्टैंड मार्ग पर जाम की स्थिति रही। भारी भीड़ के चलते पुलिस को व्यवस्थाएं काबू रखने में काफी परेशानी हुई।
बलदेव प्रतिमा का पौराणिक महत्व
बलरामजी की विशाल प्रतिमा का निर्माण श्रीकृष्ण के पौत्र ब्रजनाभ ने अपने पूर्वजों की पुण्य स्मृति में कराया था। बलरामजी का यह विग्रह जो द्वापर युग के बाद काल शेष से भूमिस्थ हो गया था, इसके प्राक्ट्य का रोचक इतिहास है। गोकुल में महाप्रभु बल्लभाचार्य के पौत्र गोस्वामी गोकुल नाथजी को बलदेवजी ने स्वप्न दिया कि श्यामा गाय जिस स्थान पर प्रतिदिन दूध स्त्रवित कर जाती है, उस स्थान पर भूमि में उनकी प्रतिमा दबी है। उन्होंने भूमि की खोदाई करा कर श्रीविग्रह को निकाला। गोस्वामी ने विग्रह को तपस्वी कल्याणदेवजी को पूजा अर्चना के लिए सौंप दिया। इसके बाद मंदिर का निर्माण कराया गया। तब से आज तक कल्याणदेवजी के वंशज ही मंदिर में पूजा सेवा कर रहे हैं।
कलयुग में हरते हैं कष्ट
जनपद मुख्यालय से पूर्वी छोर पर 20 किलोमीटर दूर स्थित बलदेव नगरी में बलरामजी का श्रीविग्रह करीब आठ फीट ऊंचा, साढ़े तीन फीट चौड़ा और श्यामवर्ण है। पीछे शेष नाग सात फनों से युक्त मूर्ति की छाया करते हैं। विग्रह नृत्य मुद्रा में है। दाहिना हाथ सिर से ऊपर वरद मुद्रा में है। बाएं हाथ में चशक है। विशाल नेत्र, भुजाएं, भुजाओं में आभूषण, कलाई में कड़ूला है। मुकुट में बारीक नक्काशी है। दाऊजी पैरों में आभूषण और कमर में धोती पहने हैं। मूर्ति के कान में कुंडल, कंठ में बैजयंती माला है। मूर्ति के सिर के ऊपर के तीन बलय हैं। मान्यता है मंगला के जो दर्शन करता है, वह कभी कंगला नहीं हो सकता।
दाऊजी पैरों में आभूषण और कमर में धोती पहने हैं। मूर्ति के कान में कुंडल, कंठ में बैजयंती माला है। मूर्ति के सिर के ऊपर के तीन बलय हैं। मान्यता है मंगला के जो दर्शन करता है, वह कभी कंगला नहीं हो सकता।
इसलिए हैं ब्रज के राजा
जब सभी देव ब्रज को छोड़ कर चले, तब बलदेवजी ही ब्रज के संरक्षक और रक्षक के रूप में अड़े रहे। इसलिए दाऊजी महाराज को ब्रज का राजा माना गया। ब्रजराज बड़े सरल व दयालु स्वभाव के हैं। आज भी कलयुग में असंख्य श्रद्धालु अपनी बगीची आदि स्थानों पर भांग घोंटते छानते समय बलदेवजी को भांग को पीने का आमंत्रण देते हुए कहते हैं कि दाऊजी महाराज ब्रज के राजा, भांग पीवे तो यहां आजा।
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