केंद्र सरकार ने मंगलवार को राज्यसभा में एक जानकारी देकर खलबली सी मचा दी। सरकार ने बताया कि देश में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी के चलते एक भी मौत दर्ज नहीं की गई। राज्य स्वास्थ्य मंत्री भारती प्रवीण पवार के इस बयान ने विपक्ष को सवाल उठाने का मौका तो दिया ही है, आम आदमी और भाजपा समर्थकों को भी हैरान कर दिया। कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान एक समय में ऑक्सीजन की किल्लत से पूरा देश जूझ रहा था। ताजनगरी में सांसों के संकट के उस दौर में रेनू सिंघल अपने पति को बचाने के लिए अपनी जान पर खेल गई, उन्हीं दिनों राजामंडी निवासी 58 वर्षीय सुबोध कुमार गौतम की सांसें ऑक्सीजन सिलिंडर के इंतजार में थम गई। छोटा भाई हितेंद्र गौतम ऑक्सीजन प्लांट पर लाइन में खड़ा रहा। इधर, अस्पताल में बड़े भाई ने दम तोड़ दिया।
आगरा की रेनू सिंघल अपने पति को बचाने के लिए अस्पताल-अस्पताल भटकी थीं। लेकिन ऑक्सीजन और बेड की कमी के चलते उनके पति की जान चली गई। रेनू एसएन अस्पताल पहुंचीं तो वहां 20 मिनट तक उनके पति को कोई ऑटो से उतारने तक नहीं आया।
इमरजेंसी के गेट पर मेरे पति के मुंह से जीभ बाहर निकल आई। ऐसे में रेनू बदहवास हो गईं और अपनी जान खतरे में डालते हुए मुंह से सांस दी। रेनू ने कहा था, 'मैं अपनी जान देकर भी उन्हें बचा लेती लेकिन सिस्टम से हार गई। (रोते हुए) मैं कितनी अभागी हूं जो मेरे पति ने मेरी गोद में दम तोड़ दिया...। उस दिन अगर उन्हें ऑक्सीजन मिल जाती तो आज वो जीवित होते।'
उन्हें मुंह से सांस देने के बाद मैं तीन दिन बीमार रही। गले में खराश, हल्का बुखार आया। गर्म पानी व दवा से ठीक हो गई। भगवान मुझे ले लेता... मेरा पति दे देता...। परिवार में अब कोई कमाने वाला नहीं है। किराये के मकान में रहती हूं। बेटी की पढ़ाई कैसे होगी... अब कैसे जीवन कटेगा, मुझे पता नहीं..।
(जैसा कि रेनू अग्रवाल ने अमर उजाला को बताया)
सरकार दावा कर रही है कि ऑक्सीजन से कोई मौत नहीं हुई। जबकि भुगतभोगी चीख-चीख कर सरकार के दावे को झूठा बता रहे हैं। राजामंडी निवासी हितेंद्र गौतम के बड़े भाई सुबोध कुमार गौतम की 27 अप्रैल को ऑक्सीजन नहीं मिलने से मौत हो गई। हितेंद्र ने बताया कि मेरे भाई को ऑक्सीजन नहीं मिल सकी। सिलिंडर के इंतजार में उनकी जान चली गई। 26 अप्रैल को मैं रातभर ऑक्सीजन सिलिंडर की खोज में दर-दर भटकता रहा। 12 से 14 अस्पतालों में गया, शायद कहीं ऑक्सीजन वाला बेड मिल जाए। फिर एक हॉस्पिटल में बिना ऑक्सीजन के भर्ती किया। 26 अप्रैल को बड़ी मुश्किल से एक सिलिंडर मिला। 27 अप्रैल को फिर एक सिलिंडर की जरूरत थी। मैं सुबह चार बजे सिकंदरा प्लांट पर खाली सिलिंडर लेकर अपने एक परिचित को लाइन में खड़ा कराया। 10 बजे मैं पहुंच गया। तीन बजे तक करीब पांच घंटे लाइन में खड़ा रहा, लेकिन सिलिंडर नहीं मिला। तभी मेरे दूसरे भाई का अस्पताल से फोन आया कि अब भाईया नहीं रहे। मेरे भाई को उस दिन सिलिंडर मिल जाता तो आज वह जीवित होते। उनके फेफड़ों में संक्रमण था।