28 January 202312 mins 20 secs
विजयगढ़ और जयगढ़ राज्य में कई तरह की समानताएं थीं। दोनों ही बेहद संपन्न, मजबूत और धार्मिक राज्य थे। दोनों राज्य के रस्म-ओ-रिवाज ही नहीं, बल्कि बोली भी एक सी ही थी। यहां तक की विजयगढ़ और जयगढ़ राज्यों की लड़कियों की शादी भी एक दूसरे राज्य में होती थी।
24 January 20238 mins 27 secs
ज्ञानप्रकाश का अध्यापक होना सत्यप्रकाश के लिए घातक हो गया। परदेश में उसे यही संतोष था कि मैं संसार में निराधार नहीं हूँ। अब यह अवलम्ब भी जाता रहा। ज्ञानप्रकाश ने जोर दे कर लिखा अब आप मेरे हेतु कोई कष्ट न उठायें। मुझे अपनी गुजर करने के लिए काफी से ज्यादा मिलने लगा है।
23 January 202317 mins 42 secs
सत्यप्रकाश मजदूरी करना नीच काम समझता था। उसने एक धर्मशाला में असबाब रखा। बाद में शहर के मुख्य स्थानों का निरीक्षण करके एक डाकघर के सामने लिखने का सामान लेकर बैठ गया और अपढ़ मजदूरों की चिट्ठियाँ मनीआर्डर आदि लिखने का व्यवसाय करने लगा।
22 January 20237 mins 52 secs
उस दिन से सत्यप्रकाश के स्वभाव में एक विचित्र परिवर्तन दिखायी देने लगा। वह घर में बहुत कम आता। पिता आते तो उनसे मुँह छिपाता फिरता। कोई खाना खाने को बुलाने आता तो चोरों की भाँति दुबका हुआ जा कर खा लेता न कुछ माँगता न कुछ बोलता।
21 January 20238 mins 43 secs
सत्यप्रकाश के जन्मोत्सव में लाला देवप्रकाश ने बहुत रुपये खर्च किये थे। उसका विद्यारम्भ-संस्कार भी खूब धूम-धाम से किया गया। उसके हवा खाने को एक छोटी-सी गाड़ी थी। शाम को नौकर उसे टहलाने ले जाता था। एक नौकर उसे पाठशाला पहुँचाने जाता।
20 January 20238 mins 47 secs
दूसरे दिन अमरनाथ दस बजे ही दर्जी की दुकान पर जा पहुँचे और सिर पर सवार होकर कपड़े तैयार कराये। फिर घर आकर नये कपड़े पहने और मालती को बुलाने चले। वहां देर हो गयी। उसने ऐसा तनाव-सिंगार किया कि जैसे आज बहुत बड़ा मोर्चा जितना है।
19 January 202310 mins 47 secs
अमरनाथ ने बिना किसी आपत्ति के वह साड़ी देवीजी को दे दी और बोले-बहुत अच्छा, मैं कल आ जाऊँगा। मगर क्या आपको मुझ पर विश्वास नहीं है जो साड़ी की जमानत जरूरी है?
देवीजी ने मुस्कराकर कहा-सच्ची बात तो यही है कि मुझे आप पर विश्वास नहीं।
15 January 202311 mins 33 secs
सारे शहर में सिर्फ एक ऐसी दुकान थी, जहाँ विलायती रेशमी साड़ी मिल सकती थीं। और सभी दुकानदारों ने विलायती कपड़े पर कांग्रेस की मुहर लगवायी थी। मगर अमरनाथ की प्रेमिका की फ़रमाइश थी, उसको पूरा करना जरुरी था। वह कई दिन तक शहर की दुकानोंका चक्कर लगाते रहे, दुगुना दाम देने पर तैयार थे, लेकिन कहीं सफल-मनोरथ न हुए और उसके तक़ाजे बराबर बढ़ते जाते थे।
11 January 20239 mins 43 secs
मुद्दतों तक पुरख़ार जंगलों, शरर-बार रेगिस्तानों, दुशवार गुज़ार वादियों और ना-क़ाबिल-ए-उबूर पहाड़ों को तय करने के बाद दिल-फ़िगार हिंद की पाक सर-ज़मीन में दाख़िल हुआ। और एक ख़ुश-गवार चश्मे में सफ़र की कुलफ़तें धो कर ग़लबा-ए-माँदगी से लब-ए-जू-ए-बार लेट गया गया।
10 January 20239 mins 43 secs
इसी ख़याल से ख़ुश होता, कामयाबी की उम्मीद से सरमस्त, दिल-फ़िगार अपनी माशूक़ा दिल-फ़रेब के शहर मीनोसवाद को चला। मगर जूँ मंज़िलें तय होती जाती थीं। उसका दिल बैठा जाता था। कि कहीं उस चीज़ की जिसे मैं दुनिया की सब से बेश-बहा चीज़ समझता हूँ, दिल-फ़रेब की निगाहों में क़द्र न हुई तो मैं दार पर खींच दिया जाऊँगा।