बरेली। साइबर ठगी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। बड़ी समस्या यह है कि कम रकम की ठगी के मामले जांच के भंवर में फंसे रहते हैं। ऐसे कुछ मामले दर्ज भी होते हैं तो दूसरे प्रदेशों तक जाकर भी पुलिस टीमों के हाथ कुछ नहीं आता। पीड़ित थानों से लेकर अफसरों के दफ्तरों तक बस चक्कर ही काटते हैं।
शनिवार को कर्मचारी नगर निवासी प्रिया तिवारी एसएसपी दफ्तर पहुंचीं। उन्होंने बताया कि पेंसिल की एक नामी कंपनी में जॉब देखकर उन्होंने कॉल की थी। पहले उनसे 620 रुपये गूगल पे कराए गए। फिर सिक्योरिटी बताकर 10,900 रुपये ले लिए गए। तीसरी बार में उनका डेबिट कार्ड नंबर और फोटो मांगा जा रहा था। उन्होंने इन्कार कर दिया। अब उन्हें धोखाधड़ी का अहसास हो रहा है। मामले में रिपोर्ट दर्ज नहीं हो सकी, हालांकि उन्हें जांच का आश्वासन देकर भेज दिया गया।
इसी तरह रोज चार से पांच शिकायतें अधिकारियों के पास और कुछ थानों में पहुंच रही हैं। अधिकांश मामलों में ठगी की रकम कुछ हजार तक होती है। जांच के लिए इन्हें साइबर सेल भेजा जाता है पर बेहद कम मामलों में ही रिकवरी हो पाती है। इसकी बड़ी वजह लोगों में जारूकता का अभाव व समय रहते शिकायत न करना भी रहता है।
इन मामलों में भी पीड़ित परेशान
इज्जतनगर के परवाना नगर निवासी कमल कुमार सक्सेना के मुताबिक 25 सितंबर को उनके खाते से 99,999 रुपये ठगों ने उड़ा दिए। इसके बाद से वह शिकायतें कर रहे हैं पर न तो उनकी रिपोर्ट दर्ज हो सकी है और न उन्हें कोई सूचना दी जा रही है। कोतवाली इलाके के पवन चंद्र के खाते से करीब साल भर पहले तीन ट्रांजेक्शन में करीब एक लाख रुपये निकल गए थे। ठगों ने उनके तीन अलग-अलग कार्ड के नंबरों का इस्तेमाल कर ठगी थी जबकि सभी कार्ड व मोबाइल खाता धारक के पास ही सुरक्षित थे। कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज होने के महीने भर बाद एफआर लगा दी गई। किला क्षेत्र में मोबाइल शॉप चलाने वाले संजय अग्रवाल का दर्द अलग तरह का है। दो युवकों ने सात सितंबर को उनसे बीस हजार से ज्यादा रकम के दो मोबाइल खरीदे और ऑनलाइन भुगतान कर दिया। भुगतान का मेसेज देखने के बाद संजय ने उन्हें जाने दिया। बाद में पता लगा कि यह रकम कर्नाटक पुलिस ने फ्रीज करा दी है। मामला धोखाधड़ी से जुड़ा है पर मोबाइल जाने के बाद संजय को आज तक रकम नहीं मिल सकी है।
पांच लाख से ज्यादा की ठगी के 44 मामलों में हो रही विवेचना
आईजी के अधीन रेंज स्तर का साइबर थाना पुलिस लाइन में तीन साल पहले स्थापित किया गया था। पहले एक लाख से ज्यादा की साइबर ठगी के मामले यहां ट्रांसफर किए जाते थे। थाने पर विवेचना का बोझ बढ़ने से अब यहां पांच लाख से ज्यादा रकम की विवेचना ही हो रही हैं। ऐसे 44 मामलों की विवेचना चल रही हैं। इनमें से 12 इसी साल के और बाकी पुराने हैं। कुछ में एफआर या चार्जशीट की प्रक्रिया चल रही है।
रांची पहुंचकर पता लगा, ठगों का सुराग लगाना मुश्किल
हाल ही में साइबर थाने की टीम बदायूं से जुड़े ठगी के मामले में रांची गई थी। वहां एक बैंक में खुले चार खातों में ठगी की रकम ट्रांसफर की गई थी। वहां बैंक में चारों खाते एक ही दिन खुलने का रिकॉर्ड मिला। आधार कार्ड के मुताबिक चारों के स्थानीय पते एक ही कॉलोनी के थे और मूल निवासी वह अलग-अलग प्रदेशों के थे। प्रारंभिक जांच में एक भी साक्ष्य न मिला जो खुलासे में काम आ सके। अब चार अलग प्रदेशों में जाने पर भी सही आरोपी मिलने की संभावना कम नजर आ रही है। थाना प्रभारी इंस्पेक्टर अनिल कुमार ने बताया कि अधिकांश मामलों में ठगी के लिए प्रयोग किए गए खाते फर्जी निकलते हैं, कुछ में खाता धारक को नहीं पता होता कि उसके खाते का ठगी में इस्तेमाल किया गया है।
साइबर ठगी के जो भी मामले संज्ञान में आते हैं उनमें साइबर सेल से जांच कराकर कार्रवाई कराई जाती है। अधिकांश मामलों में रिपोर्ट दर्ज होती है। ऐसा न भी होने पर जांच जरूर कराई जाती है। प्रयास रहता है कि पीड़ितों को उनकी रकम वापस मिल सके। कई बार लोग ठगों से खुद ही निजी जानकारी साझा कर देते हैं या सूचना देने में देर कर देते हैं। ठगी होते ही सबसे पहले 1930 टोल फ्री नंबर पर शिकायत दर्ज कराएं या cybercrime.gov.in पर मेल करें। - मुकेश प्रताप सिंह, एसपी क्राइम
ये बरतें सावधानी
किसी ऑफर या इनाम के झांसे में न आएं।
किसी को मोबाइल का गुप्त कोड या बैंक डिटेल फोन पर न दें।
वीडियो कॉल पर न्यूड वीडियो बनाकर ठगी के मामले बढ़े हैं, इससे सावधान रहें।
ठगी होने पर संबंधित टोल फ्री नंबर व वेबसाइट पर सूचना दें।
रात में सोते वक्त मोबाइल पर इंटरनेट बंद करना भी ठगी से बचाव करता है।
फिजूल के एप डाउनलोड करने से बचें।
- राहुल मिश्र, साइबर सुरक्षा सलाहकार, यूपी पुलिस लखनऊ