हमीरपुर। नगर पालिका हमीरपुर में एक दिसंबर 1988 को पहली बार नगर पालिका अध्यक्ष सीधे जनता के द्वारा चुना गया था। तबसे यह प्रक्रिया चली आ रही है। चुनाव सीधे जनता के द्वारा कराए जाने से दस बार सामान्य व पिछड़ा वर्ग के अध्यक्षों ने नगर की सरकार चलाई है। 34 साल से आज तक अनुसूचित जाति के दावेदारों को मौका नहीं मिला है। न ही आज तक सीट अनुसूचित जाति को आरक्षित हुई है। नगर की कमान सामान्य व पिछड़ा वर्ग के अध्यक्षों के हाथ में रही है। जिससे अनुसूचित वर्ग में मायूसी है।
वर्ष 1988 में शासन ने पहली बार नगर पालिका पार्षदों का चुनाव जनता द्वारा कराए जाने की शुरुआत की थी। एक दिसंबर 1988 में पिछड़ा वर्ग सीट से जीत कर अध्यक्ष की कुर्सी काबिज हुए मुन्नीलाल निषाद ने करीब 32 महीने नगर की सरकार चलाई। सदस्यों द्वारा अविश्वास होने से 10 अगस्त 1991 से 17 मार्च 1992 तक सभासद रामकृपाल सिंह उर्फ बड्डन ने दो तिहाई बहुमत से करीब सात महीने नगर की बागडोर संभाली। मार्च 1992 से सितंबर 92 तक प्रशासक नियुक्ति किया गया। सितंबर 1992 से जनवरी 1993 तक दूसरी बार फिर से रामकृपाल सिंह अध्यक्ष बने।
दिसंबर 1995 में आई महिला सीट पर पहली बार महिला अध्यक्ष अशोका पालीवाल चेयरमैन चुनी गई। जो करीब 28 महीने ही नगर की सेवा कर सकी, और सभासदों के विरोध के चलते मार्च 1998 में फिर से शासन ने प्रशासक को नगर पालिका की कमान सौंप दी। करीब दो माह बाद भाजपा सरकार में सांसद रहे गंगाचरण राजपूत ने शत्रुघ्न सिंह को चेयरमैन बनाया था। जो करीब नौ माह तक ही काबिज रह सके। अविश्वास के बाद चुनाव में पिछड़ा वर्ग महिला सीट से उर्मिला निषाद चुनकर आई। जो करीब दस माह कुर्सी में काबिज रहीं।
दिसंबर 2000 में हुए चुनाव में भाजपा के कैलाश चंद्र गुप्ता अध्यक्ष बनकर नगर की पांच साल सरकार चलाई। नवंबर 2006 में आई महिला सीट से पुष्पा सचान ने जीत का सेहरा पहना और पूरे पांच साल सरकार चलाई। अगस्त 2012 में पिछड़ा वर्ग महिला सीट से मौजूदा चेयरमैन की मां विटोल निषाद ने जीत दर्ज करके वर्ष 2017 तक चेयरमैन पद पर आसीन रही। वर्ष 2017 में आई अनारक्षित सीट से एक बार फिर यह सीट पिछड़ा वर्ग के दावेदार कुलदीप निषाद ने झटक ली।