कजाकिस्तान में भड़की अशांति रूस और अमेरिका के बीच टकराव का एक और मुद्दा बन सकती है। रूसी सूत्रों ने खुलेआम आरोप लगाया है कि कजाकिस्तान में हिंसा और उपद्रव के पीछे ‘बाहरी ताकतों’ का हाथ है। उधर अमेरिका ने इस बारे में सफाई दी है कि उन घटनाओं को भड़काने में उसकी कोई भूमिका रही है। कजाकिस्तान में उपद्रव दो जनवरी को शुरू हुए। बुधवार को हालात बेकाबू होते दिखे। तब देश की सरकार ने इस्तीफा दे दिया।
प्राकृतिक गैस की कीमत में बढ़ोतरी
कजाकिस्तान में अशांति की फौरी वजह प्राकृतिक गैस की कीमत में की गई बढ़ोतरी है। लेकिन जानकारों का कहना है कि स्थानीय लोगों में असंतोष काफी समय से पनप रहा था, जो गैस के दाम बढ़ने पर आंदोलन की शक्ल में भड़क उठा। बुधवार को राष्ट्रपति कासिम-जोमार्त तोकादेव ने गैस की कीमत में बढ़ोतरी को वापस लेने और दाम तय करने के पुराने तरीके को बहाल करने का एलान किया।
इस बीच मास्को में क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय) ने एक बयान में ‘बाहरी ताकतों’ को चेतावनी दी कि वे कजाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में दखल ना दें। क्रेमलिन ने कहा कि कजाकिस्तान अपनी समस्याओं को खुद हल करने में सक्षम है। रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा- ‘हम संवैधानिक और कानूनी ढांचे के अंदर बातचीत से समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करते हैं। हम सड़कों पर दंगा और कानून के उल्लंघन का समर्थन नहीं करते।’
पूर्व सोवियत गणराज्यों के बीच कजाकिस्तान को एक शांत और स्थिर देश माना जाता रहा है। वहां पहली बार ऐसी अशांति देखने को मिली है। रूस जिन देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में समझता है, उनमें कजाकिस्तान भी है। कजाकिस्तान उन पूर्व सोवियत गणराज्यों में शामिल है, जो सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) में शामिल हैं।
सीएसटीओ से ‘शांति सेना’ भेजने की गुजारिश
बुधवार को हालात बेकाबू देख कजाख राष्ट्रपति ने सीएसटीओ से ‘शांति सेना’ भेजने की गुजारिश की, जिसे रूसी नेतृत्व वाले इस संगठन ने तुरंत स्वीकार कर लिया। सीएसटीओ ने कहा है कि शांति सेना की तैनाती कुछ समय के लिए ही की जाएगी। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इस सेना को कजाकिस्तान के भीतर कितने अधिकार प्राप्त होंगे। पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर आंदोलन जारी रहा और सुरक्षा बल उसके दमन पर उतरे, तो अमेरिका और पश्चिमी देश उसके खिलाफ जरूर आवाज उठाएंगे। इससे रूस से उनका टकराव और बढ़ेगा।
विश्लेषकों ने बताया है कि ताजा अशांति की जड़ पूर्व राष्ट्रपति नूल सुल्तान नजरवायेव के परिजनों के खिलाफ बढ़ते गए असंतोष में है। नजरवायेव को रूस का समर्थक माना जाता है। करीब तीन दशक तक सत्ता में रहने के बाद नजरवायेव ने 2019 में पद छोड़ दिया था। तब तोकायेव राष्ट्रपति बने थे। लेकिन समझा जाता है कि आज भी देश पर नजरवायेव और उनके परिवार का ही वर्चस्व है।
नजरवायेव विरोधी राजनीतिक कार्यकर्ता बोता जारदेमेली ने टीवी चैनल अल-जरीरा से कहा- ‘देश में हर व्यक्ति यह समझता है कि तोकायेव को नजरवायेव ने राष्ट्रपति बनाया, जिनके हाथ में कोई राजनीतिक ताकत या प्रभाव नहीं है। हकीकत यह है कि नजरवायेव के परिजन, उनकी बेटी और दामाद का देश की अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र पर नियंत्रण है। लोग यह भी समझते हैं कि गैस की कीमतों में बढ़ोतरी का फायदा उन लोगों ही होता।’ जारदेमेली 2013 से निर्वासित हैं और अभी बेल्जियम में रहते हैं।
विस्तार
कजाकिस्तान में भड़की अशांति रूस और अमेरिका के बीच टकराव का एक और मुद्दा बन सकती है। रूसी सूत्रों ने खुलेआम आरोप लगाया है कि कजाकिस्तान में हिंसा और उपद्रव के पीछे ‘बाहरी ताकतों’ का हाथ है। उधर अमेरिका ने इस बारे में सफाई दी है कि उन घटनाओं को भड़काने में उसकी कोई भूमिका रही है। कजाकिस्तान में उपद्रव दो जनवरी को शुरू हुए। बुधवार को हालात बेकाबू होते दिखे। तब देश की सरकार ने इस्तीफा दे दिया।
प्राकृतिक गैस की कीमत में बढ़ोतरी
कजाकिस्तान में अशांति की फौरी वजह प्राकृतिक गैस की कीमत में की गई बढ़ोतरी है। लेकिन जानकारों का कहना है कि स्थानीय लोगों में असंतोष काफी समय से पनप रहा था, जो गैस के दाम बढ़ने पर आंदोलन की शक्ल में भड़क उठा। बुधवार को राष्ट्रपति कासिम-जोमार्त तोकादेव ने गैस की कीमत में बढ़ोतरी को वापस लेने और दाम तय करने के पुराने तरीके को बहाल करने का एलान किया।
इस बीच मास्को में क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय) ने एक बयान में ‘बाहरी ताकतों’ को चेतावनी दी कि वे कजाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में दखल ना दें। क्रेमलिन ने कहा कि कजाकिस्तान अपनी समस्याओं को खुद हल करने में सक्षम है। रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा- ‘हम संवैधानिक और कानूनी ढांचे के अंदर बातचीत से समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करते हैं। हम सड़कों पर दंगा और कानून के उल्लंघन का समर्थन नहीं करते।’
पूर्व सोवियत गणराज्यों के बीच कजाकिस्तान को एक शांत और स्थिर देश माना जाता रहा है। वहां पहली बार ऐसी अशांति देखने को मिली है। रूस जिन देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में समझता है, उनमें कजाकिस्तान भी है। कजाकिस्तान उन पूर्व सोवियत गणराज्यों में शामिल है, जो सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) में शामिल हैं।
सीएसटीओ से ‘शांति सेना’ भेजने की गुजारिश
बुधवार को हालात बेकाबू देख कजाख राष्ट्रपति ने सीएसटीओ से ‘शांति सेना’ भेजने की गुजारिश की, जिसे रूसी नेतृत्व वाले इस संगठन ने तुरंत स्वीकार कर लिया। सीएसटीओ ने कहा है कि शांति सेना की तैनाती कुछ समय के लिए ही की जाएगी। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इस सेना को कजाकिस्तान के भीतर कितने अधिकार प्राप्त होंगे। पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर आंदोलन जारी रहा और सुरक्षा बल उसके दमन पर उतरे, तो अमेरिका और पश्चिमी देश उसके खिलाफ जरूर आवाज उठाएंगे। इससे रूस से उनका टकराव और बढ़ेगा।
विश्लेषकों ने बताया है कि ताजा अशांति की जड़ पूर्व राष्ट्रपति नूल सुल्तान नजरवायेव के परिजनों के खिलाफ बढ़ते गए असंतोष में है। नजरवायेव को रूस का समर्थक माना जाता है। करीब तीन दशक तक सत्ता में रहने के बाद नजरवायेव ने 2019 में पद छोड़ दिया था। तब तोकायेव राष्ट्रपति बने थे। लेकिन समझा जाता है कि आज भी देश पर नजरवायेव और उनके परिवार का ही वर्चस्व है।
नजरवायेव विरोधी राजनीतिक कार्यकर्ता बोता जारदेमेली ने टीवी चैनल अल-जरीरा से कहा- ‘देश में हर व्यक्ति यह समझता है कि तोकायेव को नजरवायेव ने राष्ट्रपति बनाया, जिनके हाथ में कोई राजनीतिक ताकत या प्रभाव नहीं है। हकीकत यह है कि नजरवायेव के परिजन, उनकी बेटी और दामाद का देश की अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र पर नियंत्रण है। लोग यह भी समझते हैं कि गैस की कीमतों में बढ़ोतरी का फायदा उन लोगों ही होता।’ जारदेमेली 2013 से निर्वासित हैं और अभी बेल्जियम में रहते हैं।