अफगानिस्तान की ताजा घटनाओं का आसपास के क्षेत्र और पूरी दुनिया के लिए क्या असर होगा, अब विश्लेषकों का ध्यान उसका अंदाजा लगाने पर है। इस बात पर लगभग आम सहमति है कि अब लंबे समय तक अफगानिस्तान में अमेरिका के लिए प्रभाव कायम करना संभव नहीं होगा। ब्रिटिश अखबार द फाइनेंशियल टाइम्स के टीकाकार गिडियन रेचमैन ने लिखा है- ‘एक अर्थ में इस घटना की तुलना 1979 में ईरान में हुई इस्लामी क्रांति, 1975 में (वियतनाम के) सैगोन पर कम्युनिस्टों के नियंत्रण और 1959 की क्यूबा क्रांति से की जा सकती है।’
ये आम अनुमान है कि अमेरिका की वापसी के बाद अब तालिबान चीन, पाकिस्तान और खाड़ी देशों सहित कई दूसरे देशों के साथ संबंध बनाने की कोशिश करेगा। तालिबान प्रवक्ताओं ने हाल में संकेत दिए हैं कि तालिबान अंतरराष्ट्रीय मान्यता चाहता है। उनकी दिलचस्पी व्यापार और अंतरराष्ट्रीय सहायता हासिल करने में है। इसके आधार पर ये उम्मीद जताई गई है कि शायद इस बार तालिबान सरकार उदारवादी रुख अपनाए।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि तालिबान महिलाओं और अपने पराजित दुश्मनों से कैसा व्यवहार करता है, उस पर सारी दुनिया की निगाह रहेगी। सोमवार को तालिबान के प्रवक्ता ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा कि तालिबान महिलाओं को काम करने और शिक्षा प्राप्त करने की इजाजत देगा। वह अफगानिस्तान में मौजूद सभी विदेशियों की सुरक्षा की गारंटी भी करेगा। लेकिन ताजा मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि तालिबान के इन वादों के बावजूद अफगानिस्तान में राजनीति और सिविल सोसायटी की गतिविधियों से जुड़ी रहीं महिलाएं इस वक्त गहरी आशंका में हैं।
अमेरिकी विश्लेषकों ने अंदेशा जताया है कि एक हिंसक इस्लामी आंदोलन की अफगानिस्तान में हुई जीत से दुनियाभर में जिहादियों का मनोबल बढ़ेगा। मुमकिन है कि वे तालिबान को अपना मार्गदर्शक समझें और उससे मदद हासिल करने की कोशिश करें। अमेरिकी फौज के अफगानिस्तान में कमांडर रह चुके जॉन एलन ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा है कि अमेरिकी फौज की वापसी के बाद अब हिंदुकुश पहाड़ी वाले इलाके में अल-कायदा खुल कर अपनी गतिविधियां चला सकता है। बाइडेन प्रशासन ने कहा है कि उसे ऐसी सूचना मिली, तो वह जवाबी हमले करेगा। लेकिन जनरल एलन ने कहा कि जब तक जमीन पर आपके लोग ना हों, अफगानिस्तान में आतंक विरोधी कार्रवाई करना बेहद मुश्किल काम साबित होता है।
पास-पड़ोस पर संभावित परिणाम की समीक्षा करते हुए फाइनेशियल टाइम्स में गिडियन रेचमैन ने लिखा है- ‘भारत को अब जम्मू-कश्मीर में अधिक अशांति के लिए तैयार रहना होगा। चीन के लिए भी चिंता की बात है, जिसे शिनजियांग प्रांत में उइगर उग्रवाद का सामना करना पड़ा है। ये उग्रवादी अब अफगानिस्तान में अपना अड्डा बना सकते हैं। ईरान भले ही अमेरिका की हार पर खुश हो, लेकिन उसे हजारा समुदाय को लेकर चिंतित होना पड़ सकता है। तालिबान ने अतीत में इस शिया समुदाय का क्रूर दमन किया है। इसके अलावा अमेरिका और अफगानिस्तान के तमाम पड़ोसियों को बड़ी संख्या में शरणार्थियों के पहुंचने की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है।’
कई विश्लेषकों ने कहा है कि भले तालिबान के पाकिस्तान के साथ गहरे रिश्ते रहे हों, लेकिन जिस तरह तालिबान ने जीत हासिल की है, उससे पाकिस्तान के लिए भी खतरे पैदा हो सकते हैं। इससे पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादियों का मनोबल बढ़ेगा, जो पाकिस्तान के उदारवादी शख्सियतों को निशाना बना सकते हैं।
लेकिन कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि चीन अगर तालिबान के साथ कामकाजी संबंध बनाने में कामयाब हुआ, तो उसे अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को बढाने का एक और मौका मिलेगा। साथ ही ताजा घटनाक्रम से उसे यह कहने का मौका मिला है कि ये घटनाएं दुनिया में अमेरिकी वर्चस्व के अंत का एक और सबूत हैं।
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अफगानिस्तान की ताजा घटनाओं का आसपास के क्षेत्र और पूरी दुनिया के लिए क्या असर होगा, अब विश्लेषकों का ध्यान उसका अंदाजा लगाने पर है। इस बात पर लगभग आम सहमति है कि अब लंबे समय तक अफगानिस्तान में अमेरिका के लिए प्रभाव कायम करना संभव नहीं होगा। ब्रिटिश अखबार द फाइनेंशियल टाइम्स के टीकाकार गिडियन रेचमैन ने लिखा है- ‘एक अर्थ में इस घटना की तुलना 1979 में ईरान में हुई इस्लामी क्रांति, 1975 में (वियतनाम के) सैगोन पर कम्युनिस्टों के नियंत्रण और 1959 की क्यूबा क्रांति से की जा सकती है।’
ये आम अनुमान है कि अमेरिका की वापसी के बाद अब तालिबान चीन, पाकिस्तान और खाड़ी देशों सहित कई दूसरे देशों के साथ संबंध बनाने की कोशिश करेगा। तालिबान प्रवक्ताओं ने हाल में संकेत दिए हैं कि तालिबान अंतरराष्ट्रीय मान्यता चाहता है। उनकी दिलचस्पी व्यापार और अंतरराष्ट्रीय सहायता हासिल करने में है। इसके आधार पर ये उम्मीद जताई गई है कि शायद इस बार तालिबान सरकार उदारवादी रुख अपनाए।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि तालिबान महिलाओं और अपने पराजित दुश्मनों से कैसा व्यवहार करता है, उस पर सारी दुनिया की निगाह रहेगी। सोमवार को तालिबान के प्रवक्ता ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा कि तालिबान महिलाओं को काम करने और शिक्षा प्राप्त करने की इजाजत देगा। वह अफगानिस्तान में मौजूद सभी विदेशियों की सुरक्षा की गारंटी भी करेगा। लेकिन ताजा मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि तालिबान के इन वादों के बावजूद अफगानिस्तान में राजनीति और सिविल सोसायटी की गतिविधियों से जुड़ी रहीं महिलाएं इस वक्त गहरी आशंका में हैं।