डेवेलपर्स रियल एस्टेट सेक्टर में हमेशा सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम की मांग करते आएं हैं। इस साल भी इनको ये उम्मीद है कि सरकार इस सिस्टम को जल्द से जल्द सेक्टर में लेकर आएगी। अमर उजाला से बात करते हुए एमआरजी वर्ल्ड के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर, रजत गोयल ने कहा कि सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम से डेवलपरों को अप्रूवल आदि में जो भी अतिरिक्त समय बर्बाद होता है, उसे प्रोजेक्ट के निर्माण और समय से खरीददारों को उसकी डिलीवरी पर लगाया जा सकता है।
गोयल ने बताया कि अफोर्डेबल हाउसिंग एक ऐसा सेगमेंट है, जिसके प्रति खरीददारों की काफी रूचि होती है और अप्रूवल व क्लीयरेंस में शीघ्रता आने से रियल एस्टेट डेवेलपर्स अधिक से अधिक प्रोजेक्ट लेकर आ सकते हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा खरीददारों का रुख कर सकते हैं और डिमांड व सप्लाई के अंतर को कम कर सकते हैं।
सरकार द्वारा जब जीएसटी की दरों को घटाया गया तो समूचे सेक्टर को ऐसी उम्मीदें थी कि इस कदम से मांग बढ़ेगी व मार्केट में बूम देखने को मिलेगा। लेकिन दरें घटने के साथ साथ इनपुट टैक्स क्रेडिट बढ़ाने का लाभ पूरी तरह से ख़त्म करने से अंततः मार्केट पर इसका कोई असर नहीं हुआ व ग्राहकों को कोई फायदा नहीं पहुंचा।
क्यूंकि प्रोजेक्ट निर्माण में उपयोग होने वाले कच्चे मालों जैसे सीमेंट, सरिया आदि पर डेवेलपर्स को जीएसटी देना पड़ता है, जिससे कुल मिलाकर एक तैयार यूनिट या प्रोजेक्ट की कीमत अपेक्षाकृत ज्यादा ही पड़ती है। इस अतिरिक्त बोझ को अंततः ग्राहकों को ही उठाना पड़ता है।
इसलिए इस बार के बजट से हम उम्मीद करते हैं कि सरकार इन पहलुओं पर ध्यान देगी और जरुरी कदम उठाकर डेवलपरों व सेक्टर को राहत प्रदान करेगी।
डेवेलपर्स रियल एस्टेट सेक्टर में हमेशा सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम की मांग करते आएं हैं। इस साल भी इनको ये उम्मीद है कि सरकार इस सिस्टम को जल्द से जल्द सेक्टर में लेकर आएगी। अमर उजाला से बात करते हुए एमआरजी वर्ल्ड के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर, रजत गोयल ने कहा कि सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम से डेवलपरों को अप्रूवल आदि में जो भी अतिरिक्त समय बर्बाद होता है, उसे प्रोजेक्ट के निर्माण और समय से खरीददारों को उसकी डिलीवरी पर लगाया जा सकता है।
गोयल ने बताया कि अफोर्डेबल हाउसिंग एक ऐसा सेगमेंट है, जिसके प्रति खरीददारों की काफी रूचि होती है और अप्रूवल व क्लीयरेंस में शीघ्रता आने से रियल एस्टेट डेवेलपर्स अधिक से अधिक प्रोजेक्ट लेकर आ सकते हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा खरीददारों का रुख कर सकते हैं और डिमांड व सप्लाई के अंतर को कम कर सकते हैं।
सरकार द्वारा जब जीएसटी की दरों को घटाया गया तो समूचे सेक्टर को ऐसी उम्मीदें थी कि इस कदम से मांग बढ़ेगी व मार्केट में बूम देखने को मिलेगा। लेकिन दरें घटने के साथ साथ इनपुट टैक्स क्रेडिट बढ़ाने का लाभ पूरी तरह से ख़त्म करने से अंततः मार्केट पर इसका कोई असर नहीं हुआ व ग्राहकों को कोई फायदा नहीं पहुंचा।
क्यूंकि प्रोजेक्ट निर्माण में उपयोग होने वाले कच्चे मालों जैसे सीमेंट, सरिया आदि पर डेवेलपर्स को जीएसटी देना पड़ता है, जिससे कुल मिलाकर एक तैयार यूनिट या प्रोजेक्ट की कीमत अपेक्षाकृत ज्यादा ही पड़ती है। इस अतिरिक्त बोझ को अंततः ग्राहकों को ही उठाना पड़ता है।
इसलिए इस बार के बजट से हम उम्मीद करते हैं कि सरकार इन पहलुओं पर ध्यान देगी और जरुरी कदम उठाकर डेवलपरों व सेक्टर को राहत प्रदान करेगी।