न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जालंधर (पंजाब)
Published by: ajay kumar
Updated Tue, 29 Sep 2020 02:13 AM IST
नए कृषि कानूनों पर किसानों का कहना है कि हमें सरकार निजी हाथों में न सौंपे। सरकार खुद फसल की खरीदकर निजी कंपनियों को या व्यापारियों को बेच सकती है। सरकार की खरीद पर हमें यकीन है लेकिन व्यापारी तो व्यापार करेगा। सरकार नुकसान झेल सकती है लेकिन व्यापारी नुकसान नहीं झेल सकता। वह अपना नुकसान तो किसानों से ही पूरा करेगा।
अलावलपुर के गांव जगरांवा के रहने वाले गुरदियाल सिंह थियाड़ा 20 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। वह साल में गेहूं और धान ही उगाते हैं। गुरदियाल सिंह का कहना है कि हम फसल उगाते हैं, क्योंकि हमें पता है कि सरकार इसकी खरीद करेगी। अब सरकार खरीद प्रक्रिया से निकलना चाहती है। इससे किसान व्यापारी के हत्थे चढ़ जाएगा। सरकार तो किसानी को जिंदा रखने के लिए घाटा सह सकती है लेकिन व्यापारी घाटा नहीं खाएगा।
जालंधर के किसान जंग बहादुर सिंह संघा का कहना है कि पंजाब का मुख्य धंधा किसानी है। 1960 से लेकर अब तक एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) व पनसप गेहूं व धान की खरीद करती आ रही हैं। एक पूरा सिस्टम बना हुआ है, मंडी है, आढ़ती है सरकारी स्टाफ है। इसको अचानक खत्म नहीं किया जा सकता।
पंजाब का किसान इतना धनवान और पढ़ा लिखा नहीं है कि वह व्यापारियों के साथ डील कर सके। अगर सरकार सुधार लाना भी चाहती है तो इसके लिए लंबी योजना बनानी चाहिए। हम खुद मक्का की खेती करते हैं और हमारा मक्का काफी बढ़िया है। मक्का पर एमएसपी 1850 रुपये है लेकिन 1200 रुपये में भी खरीदार नहीं है क्योंकि मक्का की फसल खुली मार्केट में है।
गांव घराला गुरदासपुर में 40 एकड़ जमीन पर गन्ना, लीची और धान की खेती करने वाले किसान कमलजीत सिंह का कहना है कि नेताओं को किसानों का दर्द समझना चाहिए। यह किसानों का आंदोलन है क्योंकि किसानी खतरे में है। हम धान की खेती करते हैं तो मंडी में जाते ही अगले दिन पैसा मिल जाता है, लेकिन चावल को जब निजी व्यापारी को बेचते हैं तो पैसे के लिए उनके आगे-पीछे घूमना पड़ता है। कांट्रेक्ट खेती का भी किसानों को नुकसान होगा, व्यापारी किसानों से ठेके पर खेती करवाएगा। फसल खराब हो गई या उसमें नमी आ गई तो हर्जाना व्यापारी अपने कंधों पर नहीं लेगा बल्कि किसानों पर डालेगा। नए कानून से हमारी हालत खराब होगी।
गांव पचरंगा में धान और गेहूं की खेती करने वाले किसान इंदरजीत सिंह का कहना है कि नए कानूनों से किसानों को फायदा नहीं होने वाला है। किसानों के आंदोलन में जो राजनीतिक लोग घुस रहे हैं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह किसानों की जंग है, किसी नेता के हाथ में नहीं जाएगी। सरकार से पैसा मिलना होता है, जिस कारण किसान ने अपनी कमाई का पूरा खाता पहले ही तैयार किया होता है, बच्चों की फीस देने से लेकर शादी ब्याह तक का।
पचरंगा के किसान हरदीप सिंह का कहना है कि सरकार को किसानों की बात सुननी चाहिए। नोटबंदी से देश को फायदा होगा यह दावा अर्थशास्त्री करते थे, क्या फायदा हुआ। जीएसटी से व्यापार बढ़ेगा यह दावा अर्थशास्त्री करते थे, क्या मिला। अब दावा कृषि को लेकर किया जा रहा है लेकिन सरकार को पंजाब व हरियाणा के किसानों से राय लेकर ही कानून बनाना चाहिए था। पंजाब के छोटे किसान की हालत पहले से खराब है। इन कानूनों से किसानों का हाल और बुरा होगा। न तो किसानों की दशा सुधरेगी और न ही दिशा।
नए कृषि कानूनों पर किसानों का कहना है कि हमें सरकार निजी हाथों में न सौंपे। सरकार खुद फसल की खरीदकर निजी कंपनियों को या व्यापारियों को बेच सकती है। सरकार की खरीद पर हमें यकीन है लेकिन व्यापारी तो व्यापार करेगा। सरकार नुकसान झेल सकती है लेकिन व्यापारी नुकसान नहीं झेल सकता। वह अपना नुकसान तो किसानों से ही पूरा करेगा।
अलावलपुर के गांव जगरांवा के रहने वाले गुरदियाल सिंह थियाड़ा 20 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। वह साल में गेहूं और धान ही उगाते हैं। गुरदियाल सिंह का कहना है कि हम फसल उगाते हैं, क्योंकि हमें पता है कि सरकार इसकी खरीद करेगी। अब सरकार खरीद प्रक्रिया से निकलना चाहती है। इससे किसान व्यापारी के हत्थे चढ़ जाएगा। सरकार तो किसानी को जिंदा रखने के लिए घाटा सह सकती है लेकिन व्यापारी घाटा नहीं खाएगा।
जालंधर के किसान जंग बहादुर सिंह संघा का कहना है कि पंजाब का मुख्य धंधा किसानी है। 1960 से लेकर अब तक एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) व पनसप गेहूं व धान की खरीद करती आ रही हैं। एक पूरा सिस्टम बना हुआ है, मंडी है, आढ़ती है सरकारी स्टाफ है। इसको अचानक खत्म नहीं किया जा सकता।