आज ज्योंहि गाड़ी में बैठी तो ड्राइवर ने पूछा, मैम कहां चलना है? क्या हमें कस्तूरबा गांधी मार्ग जाना है? एकदम से दिमाग में दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग (जिसे बातचित की भाषा में दिल्लीवासी केजी मार्ग भी कहते हैं) पर स्थिति कमानी ऑडिटोरियम, उसका स्टेज, उसकी कुर्सियां यहां तक की उसकी ऑफिस, वॉशरूम सब कुछ दिमाग में किसी फिल्म के दृश्य की भांंति घूम गया हो।
मैंने कहा कनाट प्लेस जाना है, के. जी. मार्ग होकर चलो। गाड़ी मेरे आवास से चली तो ऐसा लगा मानों किसी सजे- धजे, बसे - बसाए शहर को रातों - रात लोगों ने छोड़ दिया हो। मुझे कोविड- 19, अर्थात् कोरोना वायरस का खौफ और शहर में उसकी मौजूदगी किसी भयानक असुर या यमराज की उपस्थिति से कम ना लगी।
बचपन से फिल्मों में, टी.वी. सीरियल में या किताबों के पन्नोंं पर यमराज को अपने सिंगों के साथ भैंस पर बैठे देखा है या लंबे- चौड़े असुर को उसके भयानक चेहरे के साथ। अब गाड़ी सत्यमार्ग, विनयमार्ग से होती हुई शांतिपथ पर आ गई है।
चारों ओर बड़ी- बड़ी इमारतें और एक अजीब सी खामोशी छाई हुई है। कोई कानों में कह रहा है लौट जाओ महामारी फैली है। तुम्हेंं भी हो सकती है, लेकिन काम अत्यावश्यक है तो जाना है।
इसके बाद मैं ना जाने किन ख्यालों में खो गई। जैसे- जैसे कमानी ऑडिटोरियम नजदीक आने लगा आदतन मैंने ड्राइवर से कहा कि देखो गाड़ी ट्रैफिक में नहीं फंसनी चाहिए वरना मुझे अच्छी कुर्सी नहीं मिलेगी।
आज 'पंडित जसराज जी' का कार्यक्रम है और उनका नाम लेते ही लोगों से खचाखच भरी कमानी ऑडिटोरियम की कुर्सियांं और फूलों से सजे भव्य मंच पर विराजे जसराज जी हाथ में तानपूरा लिए उनके शिष्यगण और हारमोनियम - तबले के साथ साजिंदे सब के सब आंखों के सामने से गुजर गए।
पब्लिक दीर्घा से नवयुवकों की उत्साह भरी आवाज पंडितजी कृप्या 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय ' सुना दें की आवाज मेरे कानों में गूंज गई । पंडितजी का भव्य व्यक्तित्व और जानी-पहचानी मुस्कराहट के साथ बोलना, जरूर सुनाऊंगा और फिर ऑडिटोरियम में तालियों की गड़गड़ाहट।
सामने के दो- तीन दीर्घों में स्थाई रूप से दिखने वाले संगीत के क्षेत्र के प्रेमी और विद्वानों के जाने- माने चेहरे घूम गए। चूंकि मैं स्वयं एक गायिका हूं तो कभी प्रस्तुति देने वाले कलाकार की हैसियत से और कभी दर्शक की हैसियत से दिल्ली के सभागारों में मेरा आना-जाना लगा रहता है और आप कहीं भी आते-जाते रहें तो जाहिर सी बात है कि लोगों से आपका परिचय हो ही जाता है।
जैसे ही कमानी सभागार के पास गाड़ी आई, ड्राइवर ने एकदम से गाड़ी रोकी और कहा मैम हम कमानी पहुंच गए हैं। मैं अपनी आदत के अनुसार गाड़ी से उतरी और कुछ सोचती हुई गेट की तरफ रुख किया। पर्स भी सिक्योरिटी चेक के लिए खोलने वाली थी तभी गेट पर ताला दिखा।
एक अजीब सा सन्नाटा जैसे ऑडिटोरियम के हर कोने से कोरोना वायरस मुझ पर आक्रमण करने आ रहा हो। मैं एक दम से पीछे मुड़ी और जल्दी से गाड़ी में बैठ गई। सोंचा ड्राइवर को बोलूं कि तुमने मुझे गाड़ी से उतरते वक्त टोका क्यूं नहीं कि ऑडिटोरियम बंद है। फिर एकदम से चुप चाप बैठ गई तभी मानों अंदर से आवाज आई जो होता है अच्छा ही होता है।
जैसे ही गाड़ी कमानी सभागार को क्रॉस करने लगी मेरे कानों को एक आवाज सुनाई दी हां वो कमानी से आ रही आवाज थी जिसमें कोई कह रहा हो, कि 'जाने कहां गए वो दिन'। मैंने मुस्कराते हुए कमानी सभागार को हाथ हिलाकर अलविदा कहा और उसे मानो आश्वासन दिया कि चिंता ना करो बहुत जल्द हम फिर से तुम्हारी कुर्सियों में बैठने आएंगे और तुम्हारे प्रांगन में रौनक लाएंगे क्यूंकि हमने भी प्रण लिया है कि 'कोरोना को हराना है '।
पर जो भी हो हकीकत से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता। हमें ज्यादा से ज्यादा अपने घरों में ही रहना है। सरकार द्वारा बनाए सभी निर्देशों का पालन करना है। सरकार भी अपनी योजनाओं में तभी सफल हो पाती है जब जनता पूरी आस्था से सरकार के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें।
सरकार अपने प्रत्येक नागरिक को परिवार के सदस्य की हैसियत से देखती है। हम देशवासियों को भी प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु को अपने घर के शोक की तरह देखना है जहां तक हो शोक संतप्त परिवार की आर्थिक और मानसिक स्थिरता लाने में मदद करना है।
सभी से गुजारिश है कि अपनी सफाई (हाथों को समय - समय पर साबुन से धोना ), खानपान , यदि संभव हो तो सैनिटाइजर का प्रयोग करना, सोशल -डिस्टेंसिंग का ख्याल रखें और घर से निकलते वक्त मास्क पहनना ना भूलें। दिन में गरम पानी, गरम चाय और काढ़े का सेवन करें। बाहर तभी जाएं जब बहुत जरूरी हो और घर का साफ- सुथरा खाना खाएं। घर के बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें।
हमें 'आशावाद के सिद्धान्त ' पर भरोसा रखना है कि यदि हमने अनुशासन के साथ सरकार के उपरोक्त निर्देशों का पालन किया तो वह दिन दूर नहीं जब हम 'कोरोना वायरस' के प्रकोप से पूरी तरह आजाद हो जाएंगे और एक बार फिर से कमानी सभागार लोगों की हंसी, खुशबूदार फूलों और अच्छे परफ्यूम की खुशबू से खचाखच भरा मिलेगा। पर तब तक के लिए हमें इस दोहे पर अमल करना होगा -
'गुणीजन वहां न जाइए
जहां जमा हों लोग ।
ना जाने किस रूप में
लगे करोना रोग "।।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
आज ज्योंहि गाड़ी में बैठी तो ड्राइवर ने पूछा, मैम कहां चलना है? क्या हमें कस्तूरबा गांधी मार्ग जाना है? एकदम से दिमाग में दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग (जिसे बातचित की भाषा में दिल्लीवासी केजी मार्ग भी कहते हैं) पर स्थिति कमानी ऑडिटोरियम, उसका स्टेज, उसकी कुर्सियां यहां तक की उसकी ऑफिस, वॉशरूम सब कुछ दिमाग में किसी फिल्म के दृश्य की भांंति घूम गया हो।
मैंने कहा कनाट प्लेस जाना है, के. जी. मार्ग होकर चलो। गाड़ी मेरे आवास से चली तो ऐसा लगा मानों किसी सजे- धजे, बसे - बसाए शहर को रातों - रात लोगों ने छोड़ दिया हो। मुझे कोविड- 19, अर्थात् कोरोना वायरस का खौफ और शहर में उसकी मौजूदगी किसी भयानक असुर या यमराज की उपस्थिति से कम ना लगी।
बचपन से फिल्मों में, टी.वी. सीरियल में या किताबों के पन्नोंं पर यमराज को अपने सिंगों के साथ भैंस पर बैठे देखा है या लंबे- चौड़े असुर को उसके भयानक चेहरे के साथ। अब गाड़ी सत्यमार्ग, विनयमार्ग से होती हुई शांतिपथ पर आ गई है।
चारों ओर बड़ी- बड़ी इमारतें और एक अजीब सी खामोशी छाई हुई है। कोई कानों में कह रहा है लौट जाओ महामारी फैली है। तुम्हेंं भी हो सकती है, लेकिन काम अत्यावश्यक है तो जाना है।
इसके बाद मैं ना जाने किन ख्यालों में खो गई। जैसे- जैसे कमानी ऑडिटोरियम नजदीक आने लगा आदतन मैंने ड्राइवर से कहा कि देखो गाड़ी ट्रैफिक में नहीं फंसनी चाहिए वरना मुझे अच्छी कुर्सी नहीं मिलेगी।
आज 'पंडित जसराज जी' का कार्यक्रम है और उनका नाम लेते ही लोगों से खचाखच भरी कमानी ऑडिटोरियम की कुर्सियांं और फूलों से सजे भव्य मंच पर विराजे जसराज जी हाथ में तानपूरा लिए उनके शिष्यगण और हारमोनियम - तबले के साथ साजिंदे सब के सब आंखों के सामने से गुजर गए।