तराई में कम होती जा रही बासमती चावल की खेती को बढ़ावा देने के लिए बाजपुर और काशीपुर को बासमती जोन बनाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए किसान उत्पादक समूह (एफपीओ) का गठन किया जाएगा। इसमें 300 किसानों को जोड़ा जाएगा। नाबार्ड के माध्यम से किसानों को बासमती की बेहतर प्रजाति, वैज्ञानिक तकनीक, बड़े कृषि यंत्रों की खरीद में छूट के साथ ही फसल के बेहतर दामों के लिए बाजार भी मुहैया कराया जाएगा। इसकी निगरानी जिला स्तर पर निगरानी समिति करेगी।
जिले में वर्ष 2017-18 में चावल की खेती एक लाख पांच हजार 409 हेक्टेयर और वर्ष 2018-19 में एक लाख सात हजार हेक्टेयर में हुई थी। इस वर्ष यह एक लाख तीन हजार हेक्टेयर में की गई है। मुख्य कृषि अधिकारी के मुताबिक कई साल पहले तक बासमती दस हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में बोई जाती थी। वर्तमान में यह घटकर साढ़े तीन हजार हेक्टेयर से कम रह गई है। कृषि मंत्रालय की ओर से किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में केंद्रीय योजना के तहत कृषक उत्पादन संगठन बनाए जा रहे हैं। इसके तहत जिले में भी कृषक उत्पादन संगठन के दो क्लस्टरों में से एक क्लस्टर बाजपुर और काशीपुर में बनाया जाएगा। इस कलक्टर में बासमती चावल की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा।
नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक राजीव प्रियदर्शी ने बताया कि एक क्लस्टर में बनने वाले कृषक संगठन में कम से कम 300 किसानों को शामिल किया जाएगा। काशीपुर और बाजपुर में प्रस्तावित क्लस्टर में शामिल किसानों को बासमती की खेती के लिए वैज्ञानिक प्रशिक्षण, दूसरे बासमती जोनों में भ्रमण, बेहतर प्रजाति की जानकारी देने के साथ ही कृषि यंत्रों की खरीद पर रियायत दी जाएगी। इसके अलावा पैदा किए जाने वाले बासमती का अच्छा दाम मिले, इसकी व्यवस्था की जाएगी।
एफपीओ का गठन
- एफपीओ में 50 फीसदी छोटे और सीमांत किसान शामिल होंगे
- एफपीओ के गठन में सहकारी समिति करेंगी सहयोग।
- महिला किसानों का भी होगा प्रतिनिधित्व।
- किसानों को खाद, बीज और उर्वरक बेहतर गुणवत्ता और उचित दामों में होंगे मुहैया
बढ़ती लागत और घटते उत्पादन से कम हो रहा रुझान
जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय वर्मा ने बताया कि उर्वरकों के बढ़ते दाम, अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग व गिरते जलस्तर के कारण खेती में लागत बढ़ गई है। फसलों में लगने वाली बीमारियों के चलते प्रतिवर्ष उत्पादन में कमी आती जा रही है। मिलों की ओर से कई वर्षों तक गन्ना किसानों का भुगतान लंबित रखने सहित धान और गेहूं के मूल्य भुगतान में भी देरी हो रही है। तराई में किसानों का पारंपरिक खेती के प्रति रुझान घटता जा रहा है। किसान नकदी फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
जिले में पहले बासमती की अच्छी पैदावार होती थी, जो अब कम हो गई है। नाबार्ड की योजना के तहत काशीपुर और बाजपुर को बासमती जोन बनाने की कार्यवाही की जा रही है। कृषक संगठन में शामिल किसान अंशदान जमा कर कार्य भी बढ़ा सकेंगे।
- रंजना राजगुरु, डीएम
तराई में कम होती जा रही बासमती चावल की खेती को बढ़ावा देने के लिए बाजपुर और काशीपुर को बासमती जोन बनाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए किसान उत्पादक समूह (एफपीओ) का गठन किया जाएगा। इसमें 300 किसानों को जोड़ा जाएगा। नाबार्ड के माध्यम से किसानों को बासमती की बेहतर प्रजाति, वैज्ञानिक तकनीक, बड़े कृषि यंत्रों की खरीद में छूट के साथ ही फसल के बेहतर दामों के लिए बाजार भी मुहैया कराया जाएगा। इसकी निगरानी जिला स्तर पर निगरानी समिति करेगी।
जिले में वर्ष 2017-18 में चावल की खेती एक लाख पांच हजार 409 हेक्टेयर और वर्ष 2018-19 में एक लाख सात हजार हेक्टेयर में हुई थी। इस वर्ष यह एक लाख तीन हजार हेक्टेयर में की गई है। मुख्य कृषि अधिकारी के मुताबिक कई साल पहले तक बासमती दस हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में बोई जाती थी। वर्तमान में यह घटकर साढ़े तीन हजार हेक्टेयर से कम रह गई है। कृषि मंत्रालय की ओर से किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में केंद्रीय योजना के तहत कृषक उत्पादन संगठन बनाए जा रहे हैं। इसके तहत जिले में भी कृषक उत्पादन संगठन के दो क्लस्टरों में से एक क्लस्टर बाजपुर और काशीपुर में बनाया जाएगा। इस कलक्टर में बासमती चावल की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा।
नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक राजीव प्रियदर्शी ने बताया कि एक क्लस्टर में बनने वाले कृषक संगठन में कम से कम 300 किसानों को शामिल किया जाएगा। काशीपुर और बाजपुर में प्रस्तावित क्लस्टर में शामिल किसानों को बासमती की खेती के लिए वैज्ञानिक प्रशिक्षण, दूसरे बासमती जोनों में भ्रमण, बेहतर प्रजाति की जानकारी देने के साथ ही कृषि यंत्रों की खरीद पर रियायत दी जाएगी। इसके अलावा पैदा किए जाने वाले बासमती का अच्छा दाम मिले, इसकी व्यवस्था की जाएगी।
एफपीओ का गठन
- एफपीओ में 50 फीसदी छोटे और सीमांत किसान शामिल होंगे
- एफपीओ के गठन में सहकारी समिति करेंगी सहयोग।
- महिला किसानों का भी होगा प्रतिनिधित्व।
- किसानों को खाद, बीज और उर्वरक बेहतर गुणवत्ता और उचित दामों में होंगे मुहैया
बढ़ती लागत और घटते उत्पादन से कम हो रहा रुझान
जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय वर्मा ने बताया कि उर्वरकों के बढ़ते दाम, अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग व गिरते जलस्तर के कारण खेती में लागत बढ़ गई है। फसलों में लगने वाली बीमारियों के चलते प्रतिवर्ष उत्पादन में कमी आती जा रही है। मिलों की ओर से कई वर्षों तक गन्ना किसानों का भुगतान लंबित रखने सहित धान और गेहूं के मूल्य भुगतान में भी देरी हो रही है। तराई में किसानों का पारंपरिक खेती के प्रति रुझान घटता जा रहा है। किसान नकदी फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
जिले में पहले बासमती की अच्छी पैदावार होती थी, जो अब कम हो गई है। नाबार्ड की योजना के तहत काशीपुर और बाजपुर को बासमती जोन बनाने की कार्यवाही की जा रही है। कृषक संगठन में शामिल किसान अंशदान जमा कर कार्य भी बढ़ा सकेंगे।
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रंजना राजगुरु, डीएम