वित्त मंत्री अरूण जेटली के बजट में नया कुछ नहीं है। छोटे आयकर दाताओं को राहत तो संतुष्टि देने वाला है, लेकिन बजट पेश होने के बाद जिस शेयर मार्केट जिस तरह से गिरा है, उसको देखकर नहीं लगता है कि कॉरपोरेट इस बजट से ज्यादा खुश होंगे।
सरकार ने छोटे आयकरदाताओं को 5 हजार रुपये छूट देकर खुद की पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया है। भले सरकार की मंशा अधिक आयकरदाताओं को जोडना हो, लेकिन भविष्य में इसका उल्टा परिणाम दिखेगा।
सरकार का ये बजट काफी दकियानुसी लग रहा है। आयकर पर बहुत उम्मीदें थी, लेकिन इसमें मायूसी हाथ लगी है। किसानों के लिए जो ऐलान किए गए हैं, वो काफी अच्छे हैं, लेकिन इनपर सरकार कितना अमल कर पाएगी, ऐलान और काम के होने में काफी फर्क होता है।
शहरों में किए गए ऐलान तो पूरे हो नहीं पाते, गांवों में इतनी आसानी से काम हो पाएगा, यह असंभव सा प्रतीत होता है। कृषि सेस का फायदा किसानों तक कैसे पहुंचेगा, जबकि बाजार के कई हिस्सा राज्य सरकार के पास है। जबकि इसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा।
शेयर बाजार के लाभांश पर अलग टैक्स लगाने से छोटे निवेशक इससे दूर होंगे। लोग जुडने की बजाय अलग होंगे। कंपनी पहले ही टैक्स देती है और फिर निवेशक क्यों दें? सरकार ने हर तबके को खुश करने की कोशिश की है।
बजट में सरकार के ग्रोथ के लिए ज्यादा स्कोप नहीं दिया। सरकार राजस्व कैसे जनरेट करेगी? इस पर कुछ खास फोकस नहीं किया गया है। कृषि के लिए कई प्रोग्राम तो बनाए गए, लेकिन इन सबमें राज्यों की भी भागीदारी होती है और इस पर अमल कराना ही बड़ी चुनौती है।
बजट में सामाजिक गतिविधियों पर अधिक ध्यान दिया गया है। राजस्व को लेकर कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं होने से अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकता है। युवाओं का देश कहने वाली सरकार रोजगार कैसे पैदा करेगी? इस पर बजट में ध्यान नहीं दिया गया।
वित्त मंत्री अरूण जेटली के बजट में नया कुछ नहीं है। छोटे आयकर दाताओं को राहत तो संतुष्टि देने वाला है, लेकिन बजट पेश होने के बाद जिस शेयर मार्केट जिस तरह से गिरा है, उसको देखकर नहीं लगता है कि कॉरपोरेट इस बजट से ज्यादा खुश होंगे।
सरकार ने छोटे आयकरदाताओं को 5 हजार रुपये छूट देकर खुद की पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया है। भले सरकार की मंशा अधिक आयकरदाताओं को जोडना हो, लेकिन भविष्य में इसका उल्टा परिणाम दिखेगा।
सरकार का ये बजट काफी दकियानुसी लग रहा है। आयकर पर बहुत उम्मीदें थी, लेकिन इसमें मायूसी हाथ लगी है। किसानों के लिए जो ऐलान किए गए हैं, वो काफी अच्छे हैं, लेकिन इनपर सरकार कितना अमल कर पाएगी, ऐलान और काम के होने में काफी फर्क होता है।
शहरों में किए गए ऐलान तो पूरे हो नहीं पाते, गांवों में इतनी आसानी से काम हो पाएगा, यह असंभव सा प्रतीत होता है। कृषि सेस का फायदा किसानों तक कैसे पहुंचेगा, जबकि बाजार के कई हिस्सा राज्य सरकार के पास है। जबकि इसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा।
शेयर बाजार के लाभांश पर अलग टैक्स लगाने से छोटे निवेशक इससे दूर होंगे। लोग जुडने की बजाय अलग होंगे। कंपनी पहले ही टैक्स देती है और फिर निवेशक क्यों दें? सरकार ने हर तबके को खुश करने की कोशिश की है।
बजट में सरकार के ग्रोथ के लिए ज्यादा स्कोप नहीं दिया। सरकार राजस्व कैसे जनरेट करेगी? इस पर कुछ खास फोकस नहीं किया गया है। कृषि के लिए कई प्रोग्राम तो बनाए गए, लेकिन इन सबमें राज्यों की भी भागीदारी होती है और इस पर अमल कराना ही बड़ी चुनौती है।
बजट में सामाजिक गतिविधियों पर अधिक ध्यान दिया गया है। राजस्व को लेकर कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं होने से अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकता है। युवाओं का देश कहने वाली सरकार रोजगार कैसे पैदा करेगी? इस पर बजट में ध्यान नहीं दिया गया।