उच्च न्यायालय ने पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में आरोपी जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कलिता की जमानत याचिका पर दिल्ली सरकार और पुलिस को नेटिस जारी कर जवाब मांगा है। दोनों ने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति ए जे भम्भानी की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार और पुलिस को स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि क्यों ने उनको जमानत प्रदान की जाए। दोनों छात्रों की और से पेश अधिवक्ता अदित एस पुजारी ने तर्क रखा कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है और उनके मुवक्किलों को फर्जी मामले में फंसाया गया है।
उन्होंने कहा कि दंगों के मामलों में अधिकांश आरोपियों को जमानत मिल चुकी है। इसके अलावा अनिश्चितकालीन अवधि के लिए उनके मुवक्किलों को जेल में नहीं रखा जा सकता। इसके अलावा उन्होंने जांच में सहयोग किया है। ट्रायल कोर्ट ने 28 जनवरी को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने कहा था कि प्रथम दृष्टया साबित हुआ है और वे आतंक रोधी कानून में आरोपी हैं।
नरवाल और कलिता पिंजरा तोड़ समूह के सदस्य भी हैं। पुलिस ने उन्हें पिछले साल मई में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किया था और वे न्यायिक हिरासत में हैं । उन पर दंगा, गैरकानूनी तरीके से एकत्रित होने और हत्या के प्रयास सहित भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
दंगों में कथित तौर पर पूर्वनियोजित साजिश का हिस्सा बनने के आरोप में पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े एक अलग मामले में कड़े आतंक रोधी कानून-गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी उन पर मामला दर्ज किया गया है।
उच्च न्यायालय ने पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में आरोपी जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कलिता की जमानत याचिका पर दिल्ली सरकार और पुलिस को नेटिस जारी कर जवाब मांगा है। दोनों ने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति ए जे भम्भानी की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार और पुलिस को स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि क्यों ने उनको जमानत प्रदान की जाए। दोनों छात्रों की और से पेश अधिवक्ता अदित एस पुजारी ने तर्क रखा कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है और उनके मुवक्किलों को फर्जी मामले में फंसाया गया है।
उन्होंने कहा कि दंगों के मामलों में अधिकांश आरोपियों को जमानत मिल चुकी है। इसके अलावा अनिश्चितकालीन अवधि के लिए उनके मुवक्किलों को जेल में नहीं रखा जा सकता। इसके अलावा उन्होंने जांच में सहयोग किया है। ट्रायल कोर्ट ने 28 जनवरी को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने कहा था कि प्रथम दृष्टया साबित हुआ है और वे आतंक रोधी कानून में आरोपी हैं।
नरवाल और कलिता पिंजरा तोड़ समूह के सदस्य भी हैं। पुलिस ने उन्हें पिछले साल मई में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किया था और वे न्यायिक हिरासत में हैं । उन पर दंगा, गैरकानूनी तरीके से एकत्रित होने और हत्या के प्रयास सहित भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
दंगों में कथित तौर पर पूर्वनियोजित साजिश का हिस्सा बनने के आरोप में पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े एक अलग मामले में कड़े आतंक रोधी कानून-गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी उन पर मामला दर्ज किया गया है।