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UGC letter to central universities criticised by du teachers body dtf
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UGC Letter Controversy: यूजीसी के सर्कुलर के विरोध में उतरे शिक्षक संगठन, बोले- नौकरियों पर मंडराएगा संकट
एजुकेशन डेस्क, अमर उजाल
Published by: राहुल मानव
Updated Tue, 04 Jan 2022 05:59 PM IST
सार
यूजीसी के 28 दिसंबर, 2021 को केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को मांग पर आधारित पाठ्यक्रमों को शुरू करने के पत्र पर शिक्षक संगठन ने विरोध जताया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन डीटीएफ ने कहा कि इससे भाषा और सामाजिक विज्ञान विभाग कमजोर होगा।
UGC writes letter to central universities for on demand courses
- फोटो : Social media
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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर केंद्र सरकार के निर्देशों से अवगत कराते हुए कहा है कि छात्रों को उनकी मांग के अनुसार कोर्स को पढ़ाया जाए। इस पत्र के खिलाफ शिक्षक संगठनों ने ऐतराज जताते हुए इसकी निंदी की है। शिक्षक संगठनों का कहना है कि इस कदम से नौकरियों पर संकट मंडराएगा। भाषाएं और सामाजिक विज्ञान विभाग कमजोर होगा।
बिना छात्रों के आंकलन के शुरू किए गए विभाग
यूजीसी ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार को 28 दिसंबर, 2021 को लिखे पत्र में कहा है कि शिक्षा मंत्रालय द्वारा 30 नवंबर, 2021 को इस मामले में यूजीसी को पत्र लिखकर सूचना दी थी कि मंत्रालय ने यह पाया है कि विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुछ विभागों को उनमें पढ़ाए जाने वाले कोर्स में रूचि रखने वाले छात्रों की संख्या के किसी भी आंकलन के बगैर शुरू कर दिया गया। इसलिए सभी विश्वविद्यालयों व संस्थानों से अनुरोध है कि वे छात्रों की मांग और किसी विशेष पाठ्यक्रम में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या के आधार पर पाठ्यक्रमों का संचालन कर सकते हैं और नामांकित छात्रों की संख्या के साथ उनके लिए लगाए जाने वाले शिक्षण कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या के अंदर सभी विभागों का पुनर्गठन कर सकते हैं।
भाषा और सामाजिक विज्ञान विभाग पर पड़ेगा असर
मंगलवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) ने इस पत्र की ओलचना करते हुए कहा है कि सरकार को ऐसे मामलों पर निर्णय लेते समय सिर्फ नौकरी की संभावनाओं के लिहाज से ही फैसले नहीं लेने चाहिए। यूजीसी की यह सलाह न केवल विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छोटी भाषा और कुछ सामाजिक विज्ञान विभागों को बंद कर देगी बल्कि इससे शिक्षकों और स्कॉलर की नौकरियों का नुकसान भी होगा। साथ ही कई क्षेत्रों में हो रहे अनुसंधान के विकास को भी कम कर देगी। इस नीति से स्कूल स्तर पर भी सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को यह कमजोर करेगा। यूजीसी द्वारा इस तरह के फैसले से उजागर होता है कि सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के जरिए भाषाओं और विविधता पर अपने प्रचार की रणनीति से काम कर रही है। डीटीएफ ने यह भी आशंका व्यक्त की है कि इस तरह के पुनर्गठन के फैसले से तदर्थ शिक्षकों पर भी प्रभाव पड़ेगा। ऐसा कोई भी कदम विशेष रूप से डीयू में स्वीकार नहीं किया जाएगा, जहां 4,500 शिक्षक पिछले कई वर्षों से तदर्थ के आधार पर काम कर रहे हैं।
यूजीसी ने उच्च शिक्षा विभाग की बात का हवाला दिया
यूजीसी ने रजिस्ट्रारों को लिखे पत्र में उच्च शिक्षा विभाग के 26 मई, 2020 के नोट का भी हवाला दिया, जिसमें केंद्र ने शुरुआती पांच वर्षों में केंद्रीय विश्वविद्यालय में खोले जा सकने वाले विभागों की संख्या पर कुछ मानदंड निर्धारित किए थे। इसमें इस बात का भी ध्यान रखने के लिए कहा गया था कि कितने छात्र उन विभागों के कोर्सों को पढ़ने की रूचि रखते हैं। यूजीसी के अधिकारी द्वारा कहा गया है कि विश्वविद्यालयों को किसी भी ऐसे पाठ्यक्रम को बढ़ावा देना चाहिए जिसे वे शुरू करना चाहते हैं और छात्रों के बीच जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन एक ऐसा मामला भी हो सकता है जहां किसी विशेष विश्वविद्यालय द्वारा इसे बढ़ावा देने के प्रयासों के बाद भी पाठ्यक्रम के लिए बहुत कम या कोई छात्र उसे पढ़ने वाला न हो। ऐसी स्थिति में उस पाठ्यक्रम या विभाग के शुरू करने की बातों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता है। यूजीसी के पत्र में यह स्पष्ट लिखा है है कि कुछ विश्वविद्यालयों ने निर्धारित मानदंडों का पालन किए बिना विभागों को शुरू कर दिया।
विस्तार
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर केंद्र सरकार के निर्देशों से अवगत कराते हुए कहा है कि छात्रों को उनकी मांग के अनुसार कोर्स को पढ़ाया जाए। इस पत्र के खिलाफ शिक्षक संगठनों ने ऐतराज जताते हुए इसकी निंदी की है। शिक्षक संगठनों का कहना है कि इस कदम से नौकरियों पर संकट मंडराएगा। भाषाएं और सामाजिक विज्ञान विभाग कमजोर होगा।
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बिना छात्रों के आंकलन के शुरू किए गए विभाग
यूजीसी ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार को 28 दिसंबर, 2021 को लिखे पत्र में कहा है कि शिक्षा मंत्रालय द्वारा 30 नवंबर, 2021 को इस मामले में यूजीसी को पत्र लिखकर सूचना दी थी कि मंत्रालय ने यह पाया है कि विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुछ विभागों को उनमें पढ़ाए जाने वाले कोर्स में रूचि रखने वाले छात्रों की संख्या के किसी भी आंकलन के बगैर शुरू कर दिया गया। इसलिए सभी विश्वविद्यालयों व संस्थानों से अनुरोध है कि वे छात्रों की मांग और किसी विशेष पाठ्यक्रम में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या के आधार पर पाठ्यक्रमों का संचालन कर सकते हैं और नामांकित छात्रों की संख्या के साथ उनके लिए लगाए जाने वाले शिक्षण कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या के अंदर सभी विभागों का पुनर्गठन कर सकते हैं।
भाषा और सामाजिक विज्ञान विभाग पर पड़ेगा असर
मंगलवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) ने इस पत्र की ओलचना करते हुए कहा है कि सरकार को ऐसे मामलों पर निर्णय लेते समय सिर्फ नौकरी की संभावनाओं के लिहाज से ही फैसले नहीं लेने चाहिए। यूजीसी की यह सलाह न केवल विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छोटी भाषा और कुछ सामाजिक विज्ञान विभागों को बंद कर देगी बल्कि इससे शिक्षकों और स्कॉलर की नौकरियों का नुकसान भी होगा। साथ ही कई क्षेत्रों में हो रहे अनुसंधान के विकास को भी कम कर देगी। इस नीति से स्कूल स्तर पर भी सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को यह कमजोर करेगा। यूजीसी द्वारा इस तरह के फैसले से उजागर होता है कि सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के जरिए भाषाओं और विविधता पर अपने प्रचार की रणनीति से काम कर रही है। डीटीएफ ने यह भी आशंका व्यक्त की है कि इस तरह के पुनर्गठन के फैसले से तदर्थ शिक्षकों पर भी प्रभाव पड़ेगा। ऐसा कोई भी कदम विशेष रूप से डीयू में स्वीकार नहीं किया जाएगा, जहां 4,500 शिक्षक पिछले कई वर्षों से तदर्थ के आधार पर काम कर रहे हैं।
यूजीसी ने उच्च शिक्षा विभाग की बात का हवाला दिया
यूजीसी ने रजिस्ट्रारों को लिखे पत्र में उच्च शिक्षा विभाग के 26 मई, 2020 के नोट का भी हवाला दिया, जिसमें केंद्र ने शुरुआती पांच वर्षों में केंद्रीय विश्वविद्यालय में खोले जा सकने वाले विभागों की संख्या पर कुछ मानदंड निर्धारित किए थे। इसमें इस बात का भी ध्यान रखने के लिए कहा गया था कि कितने छात्र उन विभागों के कोर्सों को पढ़ने की रूचि रखते हैं। यूजीसी के अधिकारी द्वारा कहा गया है कि विश्वविद्यालयों को किसी भी ऐसे पाठ्यक्रम को बढ़ावा देना चाहिए जिसे वे शुरू करना चाहते हैं और छात्रों के बीच जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन एक ऐसा मामला भी हो सकता है जहां किसी विशेष विश्वविद्यालय द्वारा इसे बढ़ावा देने के प्रयासों के बाद भी पाठ्यक्रम के लिए बहुत कम या कोई छात्र उसे पढ़ने वाला न हो। ऐसी स्थिति में उस पाठ्यक्रम या विभाग के शुरू करने की बातों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता है। यूजीसी के पत्र में यह स्पष्ट लिखा है है कि कुछ विश्वविद्यालयों ने निर्धारित मानदंडों का पालन किए बिना विभागों को शुरू कर दिया।
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