Hindi News
›
Entertainment
›
Movie Reviews
›
Khakee The Bihar Chapter Review in Hindi Pankaj Shukla Neeraj Pandey Bhav Dhulia Karan Tacker Avinash Tiwary
{"_id":"638340e77c20c150b3734135","slug":"khakee-the-bihar-chapter-review-in-hindi-pankaj-shukla-neeraj-pandey-bhav-dhulia-karan-tacker-avinash-tiwary","type":"wiki","status":"publish","title_hn":"Khakee The Bihar Chapter Review: अविनाश तिवारी का धमाकेदार चंदन महतो अवतार, फिर से कसौटी पर ब्रांड नीरज पांडे","category":{"title":"Movie Reviews","title_hn":"मूवी रिव्यूज","slug":"movie-review"}}
Khakee The Bihar Chapter Review: अविनाश तिवारी का धमाकेदार चंदन महतो अवतार, फिर से कसौटी पर ब्रांड नीरज पांडे
करण टैकर
,
अविनाश तिवारी
,
आशुतोष राणा
,
अभिमन्यु सिंह
,
निकिता दत्ता
,
ऐश्वर्या सुष्मिता
,
अनूप सोनी
और
रवि किशन
लेखक
नीरज पांडे
और
उमाशंकर सिंह
निर्देशक
भव धूलिया
निर्माता
शीतल भाटिया
रिलीज डेट
25 नवंबर 2022
ओटीटी
नेटफ्लिक्स
रेटिंग
3/5
एक आईपीएस अफसर हुए हैं अरुण कुमार। यूपी पुलिस में पोस्टिंग के दौरान पूरब के पहले डॉन कहलाए श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर किए। मोबाइल तभी नया नया आया था। और, अरुण कुमार ठहरे विज्ञान के विद्यार्थी। पुलिस अफसर के हौसले को तकनीक का साथ मिला और श्रीप्रकाश शुक्ला की लोकशन पता करके अरुण कुमार ने उसे ढेर कर दिया। इस पर पहले निर्देशक कबीर कौशिक ने फिल्म बनाई ‘सहर’, फिर निर्देशक भव धूलिया ने वेब सीरीज बनाई ‘रंगबाज’। भव धूलिया की दूसरी सीरीज है ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ और बस अगर अरुण कुमार की जगह नाम अमित लोढ़ा कर लिया जाए और श्रीप्रकाश शुक्ला की जगह नाम चंदन महतो कर लिया जाए तो इस सीरीज की भी कहानी कुल मिलाकर वही है। ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ खराब सीरीज नहीं है लेकिन एक निर्देशक के अपने ही कथानक को एक नई सीरीज में दोहरा देने की ये एक ऐसी मिसाल बन गई है जो निर्देशकीय ईमानदारी बिल्कुल नहीं कही जा सकती। वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास ‘वर्दी वाला गुंडा’ पढ़ने वाले गैंगस्टर को प्याज काटकर बीवी को खुश करने की कोशिश में लगे एक पुलिस अफसर को पकड़ना है और लिखना है ‘खाकी द बिहार चैप्टर’!
खाकी द बिहार चैप्टर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
कसौटी पर फिर ब्रांड नीरज पांडे
नीरज पांडे सिनेमा का एक ऐसा ब्रांड हैं जिनकी तमाम गलतियां उनके प्रशंसक लगातार माफ करते जा रहे हैं। पहले वह बड़े परदे पर फेल हुए तो वेब सीरीज में दर्शकों ने उन्हें खूब प्यार दिया। 'स्पेशल ऑप्स' आज भी हिंदी में बनी बेहतरीन वेब सीरीज में शुमार है। फिर इसका दूसरा सीजन बनते बनते डेढ़ पर रह गया और इसके बाद नीरज पांडे अब ओटीटी बदलकर नेटफ्लिक्स पर आ चुके हैं। बिहार उनका अपना अखाड़ा है तो ‘खाकी’ के पहले सीजन का विषय ‘द बिहार चैप्टर’ ठीक ही है। सात एपिसोड की इस वेब सीरीज में जतिन सरना के किरदार च्यवनप्राश की फोन पर होने वाली रतिक्रीड़ा और बाद की कुछ और बातें छोड़ दें तो ये एक ऐसी क्राइम सीरीज होने का दम रखती है जिससे आने वाली नस्लें अपराध कथा कहने की खुराक पा सकती थी। लेकिन, अपराध कथा का ताना बाना बुनने में धोखे बहुत हैं। नेटफ्लिक्स को गांव, देहात तक पहुंचना है तो वह ‘सेक्रेड गेम्स’ से गिरकर ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ पर अटका है। दिक्कत ये है कि ऐसी ही कहानी भव धूलिया जी5 पर ‘रंगबाज’ में पहले ही दिखा चुके हैं।
खाकी द बिहार चैप्टर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
अविनाश तिवारी का दमदार अवतार
‘खाकी द बिहार चैप्टर’ को देखने के आकर्षण बस दो हैं। एक तो इससे जुड़ा नीरज पांडे का नाम जिन्हें सीरीज के रचयिता का खिताब हासिल है और दूसरे इसके दो प्रमुख कलाकार करण टैकर और अविनाश तिवारी। पहले बात अविनाश तिवारी की। सीरीज में उनके किरदार चंदन की पहली पहचान ईंट भट्ठे पर ट्रक ड्राइवर के रूप में भर्ती हुए उस टुच्चे चोर की है जो डीजल चुराता है। ये लिखावट की कमी है कि इस किरदार का रुआब खुद सीरीज बनाने वाले शुरू में ही कमजोर कर देते हैं। इसके बाद वह एलएमजी चलाए, एके 47 चलाए, दर्जनों लोगों का खून बहा दे, एक दुर्दांत अपराधी बनने का रौला दर्शकों के जेहन में उभरता नहीं है। चंदन महतो समाज के हाशिये पर धकेल दिए गए लोगों का मुखिया बनने का ख्वाहिशमंद है। अपनी सेना भी बनाना चाहता है। नेता, डॉक्टर, पुलिस सब जगह उसके खबरी हैं। लाखों की उगाही है। पहनता चौखानेवाला तहमद और रंगीन बनियान है। घड़ी भी उसने वही बांध रखी है जो उसने पहली बार गोली चलाकर हासिल की थी। कमजोर लिखावट के बाद भी अविनाश तिवारी का चंदन महतो अवतार उनके अपने अभिनय से दम पाता रहता है।
खाकी द बिहार चैप्टर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
चिकना चुपड़ा एसपी अमित लोढ़ा
कहानी का दूसरा सिरा अमित लोढ़ा ने पकड़कर रखा है। आईपीएस के रूप में पहली तैनाती से लेकर चंदन महतो को 15 अगस्त से पहले दबोचने के एलान तक उनकी दाढ़ी हमेशा सफाचट रहती है। यूं लगता है कि अपराध को दबाने से ज्यादा उनकी चिंता सुबह, दोपहर, शाम या फिर आधी रात ही क्यों न हो, अपना दाढ़ी चिकनी रखने पर ज्यादा है। उत्तरजीविता के डार्विन के सिद्धांतों के अनुसार अनुकूलन को जो पहला पाठ उन्हें ‘मैं’ से ‘हम’ पर आने का मिलता है, उसके हिसाब से अमित लोढ़ा खुद को बदलता भी है। लेकिन, एक पुलिस अफसर पर पड़ने वाले घरेलू दबाव के बीच उनकी राजस्थान की पृष्ठभूमि कहीं लापता हो जाती है। और, किरदार के इस कमजोर चरित्र चित्रण के चलते चंदन महतो का किरदार अमित लोढ़ा पर हावी होता नजर आता है। वैसे काम भी अविनाश तिवारी ने कमाल का किया है। गंदे से दांत, निकला हुआ पेट और बिहार के हैं तो बोली भी उन्होंने बिल्कुल सही पकड़ी है।
खाकी द बिहार चैप्टर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
सहायक कलाकारों का सही साथ
वेब सीरीज ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ आप एक ही सिटिंग में बिंज वॉच कर सकते हैं और ये आपको ज्यादा बोर नहीं करेगी। दिक्कत शुरू शुरू में तब होती है जब भव धूलिया बार बार अपने मुख्य किरदारों को स्लो मोशन में चलाते हैं। कहानी का सूत्रधार वह दरोगा है जिसके इलाके में चंदन पहला नरसंहार करता है। वह निलंबित है लेकिन कानून का मददगार है। अभिमन्यु सिंह ने ये किरदार निभाया भी अच्छे से है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के किरदार में आशुतोष राणा बेहतरीन हैं और अनूप सोनी ने भी अपना तेज बनाने में कामयाबी पाई। विनय पाठक का वैसा असर बन नहीं पाया जैसी उम्मीद उनसे रहती है। 10 साल पहले मिस इंडिया के फाइनल तक पहुंच चुकी निकिता दत्ता का अभिनय करिश्माई है। दृश्यों की पृष्ठभूमि के हिसाब से बदलती उनकी रूप और वेश सज्जा बहुत प्रभावी बन पड़ी है। ऐश्वर्य सुष्मिता ने दो बच्चों की मोहक मां का किरदार निभाया है और ठेठ बिहारी महिला के किरदार में तारीफ लायक काम किया है।
खाकी द बिहार चैप्टर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
अखरती रही तकनीकी टीम की सुस्ती
तकनीकी रूप से ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ कमजोर है। रात के दृश्यों को नीला लेंस लगाकर शूट करने की परंपरा हिंदी सिनेमा में 60 के दशक से चली आ रही है, भव धूलिया इसे 21वीं सदी के 22वें साल तक खींच लाए हैं। फिल्म के एक्शन दृश्यों में जीवंतता की कमी है। चंदन महतो का गोलियां चलाते समय आंखें झपकाना भी उनके किरदार को कमजोर करता है। अब्बास अली मुगल से ऐसे कमजोर एक्शन की उम्मीद कम ही रहती है और ऐसे दृश्यों के अलावा एडीटर प्रणीव काठीकुलोत को वे दृश्य भी जरूर हटाने चाहिए थे जिनमें जूनियर कलाकारों से ढंग से अभिनय नहीं हो पाया है। कहानी के हिसाब से काबिल जूनियर कलाकार न तलाश पाना सीरीज के कास्टिंग डायरेक्टर विकी सिदाना की विफलता कही जाएगी। सीरीज का संगीत रचने में अद्वैत नेमलकर भी खास कामयाब नहीं रहे, उनके संगीत में साज सारे हैं, बस बिहार नहीं है।
एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें
Disclaimer
हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर और व्यक्तिगत अनुभव प्रदान कर सकें और लक्षित विज्ञापन पेश कर सकें। अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।