आर्ट ऑफ लिविंग के यमुना डूब क्षेत्र में वैश्विक सांस्कृतिक समारोह मामले पर सुनवाई सोमवार को तय हो गई है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के बाद अब सुनवाई में उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार को अपना पक्ष रखना होगा।
हालांकि, अभी तक मामले में आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से पक्ष नहीं रखा गया है, इसलिए सुनवाई जारी रह सकती है। इस बीच मामले में पर्यावरण मंत्रालय की ओर से भी वरिष्ठ अधिकारियों की जांच टीम ने ट्रिब्युनल में दाखिल अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कार्यक्रम की तैयारियों से यमुना डूब क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षति हुई है।
भविष्य में इस तरह के कार्यक्रम बिल्कुल भी यमुना डूब क्षेत्र में नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही संबंधित प्राधिकरण भी यह सुनिश्चित करे कि जमीन का अतिक्रमण न होने पाए। इसके साथ जांच टीम ने समारोह के संबंध में अपनी कड़ी सिफारिशें भी दी हैं। यह सिफारिशें भी समारोह आयोजकों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।
पर्यावरण मंत्रालय की ओर से वरिष्ठ अधिकारियों की जांच टीम ने साइट पर आयोजकों से बातचीत और अन्य तथ्यों पर गौर करने के बाद अपनी सिफारिशों में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर सख्त अनुपालन की बात कही है।
हालांकि कार्यक्रम की भव्यता को देखते हुए जांच टीम की सिफारिशों पर अमल मुश्किल ही दिखाई देता है। पर्यावरण मंत्रालय ने 22 फरवरी को साइट का दौरा किया था।
पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशें
. समारोह आयोजक यह सुनिश्चित करें कि यमुना और उसके डूब क्षेत्र में प्रदूषित जल और ठोस कचरे के कारण प्रदूषण नहीं होना चाहिए। जुटने वाली संख्या के हिसाब से शौचालयों का निर्माण होना चाहिए, जो कि नियमित समय पर साफ होते रहें। ठोस कचरे के लिए उचित जगहों पर कूड़ेदान रखे जाएं।
.मलबा और कचरा यमुना और अन्य जलाशयों में किसी भी तरह डंप न किया जाए। स्थानीय प्राधिकरणों से अनुमति लेकर कचरे की डंपिंग होनी चाहिए।
.पानी का आपूर्ति के लिए किसी भी तरह भू-जल का दोहन नहीं होना चाहिए। इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड से आयोजकों को संपर्क करना चाहिए।
.ध्वनि कानून , 2000 के मुताबिक ही कार्यक्रम संपन्न होना चाहिए। इस दौरान मौजूदा स्थल पर ध्वनि मानकों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
.कार्यक्रम के लिए ईंधन (डीजल) के इस्तेमाल में उत्सर्जन मानकों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
.कार्यक्रम स्थल पर उत्सर्जन रहित वाहनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
.सड़कों और कार्यक्रम स्थल पर धूल न उड़ने पाए, इसलिए पानी का छिड़काव इत्यादि व्यवस्था भी की जानी चाहिए।
.कार्यक्रम खत्म होने पर सभी तरह के स्ट्रक्चर को हटाया जाए और संबंधित डूब क्षेत्र में जो भी नुकसान हुआ है, उसका पुनरुद्धार किया जाना चाहिए।
सिफारिशों पर भारी पड़ सकती है आगंतुकों की संख्या
मालूम हो कि जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच इस हाई-प्रोफाइल बन चुके मामले की सुनवाई कर रही है। 11 से 13 मार्च तक डीएनडी फ्लाईओवर के नजदीक होने वाले इस कार्यक्रम को लेकर भव्य तैयारियां जारी हैं। देश-विदेश की नामी हस्तियां इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगी। कार्यक्रम में 35 लाख लोगों के आने का दावा किया जा रहा है। ऐसी जुगत में पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशों और यमुना डूब क्षेत्र के हश्र का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है।
आर्ट ऑफ लिविंग के यमुना डूब क्षेत्र में वैश्विक सांस्कृतिक समारोह मामले पर सुनवाई सोमवार को तय हो गई है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के बाद अब सुनवाई में उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार को अपना पक्ष रखना होगा।
हालांकि, अभी तक मामले में आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से पक्ष नहीं रखा गया है, इसलिए सुनवाई जारी रह सकती है। इस बीच मामले में पर्यावरण मंत्रालय की ओर से भी वरिष्ठ अधिकारियों की जांच टीम ने ट्रिब्युनल में दाखिल अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कार्यक्रम की तैयारियों से यमुना डूब क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षति हुई है।
भविष्य में इस तरह के कार्यक्रम बिल्कुल भी यमुना डूब क्षेत्र में नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही संबंधित प्राधिकरण भी यह सुनिश्चित करे कि जमीन का अतिक्रमण न होने पाए। इसके साथ जांच टीम ने समारोह के संबंध में अपनी कड़ी सिफारिशें भी दी हैं। यह सिफारिशें भी समारोह आयोजकों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।
पर्यावरण मंत्रालय की ओर से वरिष्ठ अधिकारियों की जांच टीम ने साइट पर आयोजकों से बातचीत और अन्य तथ्यों पर गौर करने के बाद अपनी सिफारिशों में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर सख्त अनुपालन की बात कही है।
हालांकि कार्यक्रम की भव्यता को देखते हुए जांच टीम की सिफारिशों पर अमल मुश्किल ही दिखाई देता है। पर्यावरण मंत्रालय ने 22 फरवरी को साइट का दौरा किया था।
पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशें
. समारोह आयोजक यह सुनिश्चित करें कि यमुना और उसके डूब क्षेत्र में प्रदूषित जल और ठोस कचरे के कारण प्रदूषण नहीं होना चाहिए। जुटने वाली संख्या के हिसाब से शौचालयों का निर्माण होना चाहिए, जो कि नियमित समय पर साफ होते रहें। ठोस कचरे के लिए उचित जगहों पर कूड़ेदान रखे जाएं।
.मलबा और कचरा यमुना और अन्य जलाशयों में किसी भी तरह डंप न किया जाए। स्थानीय प्राधिकरणों से अनुमति लेकर कचरे की डंपिंग होनी चाहिए।
.पानी का आपूर्ति के लिए किसी भी तरह भू-जल का दोहन नहीं होना चाहिए। इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड से आयोजकों को संपर्क करना चाहिए।
.ध्वनि कानून , 2000 के मुताबिक ही कार्यक्रम संपन्न होना चाहिए। इस दौरान मौजूदा स्थल पर ध्वनि मानकों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
.कार्यक्रम के लिए ईंधन (डीजल) के इस्तेमाल में उत्सर्जन मानकों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
.कार्यक्रम स्थल पर उत्सर्जन रहित वाहनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
.सड़कों और कार्यक्रम स्थल पर धूल न उड़ने पाए, इसलिए पानी का छिड़काव इत्यादि व्यवस्था भी की जानी चाहिए।
.कार्यक्रम खत्म होने पर सभी तरह के स्ट्रक्चर को हटाया जाए और संबंधित डूब क्षेत्र में जो भी नुकसान हुआ है, उसका पुनरुद्धार किया जाना चाहिए।
सिफारिशों पर भारी पड़ सकती है आगंतुकों की संख्या
मालूम हो कि जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच इस हाई-प्रोफाइल बन चुके मामले की सुनवाई कर रही है। 11 से 13 मार्च तक डीएनडी फ्लाईओवर के नजदीक होने वाले इस कार्यक्रम को लेकर भव्य तैयारियां जारी हैं। देश-विदेश की नामी हस्तियां इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगी। कार्यक्रम में 35 लाख लोगों के आने का दावा किया जा रहा है। ऐसी जुगत में पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशों और यमुना डूब क्षेत्र के हश्र का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है।