कोरोना के साथ अब विश्व में मंकीपॉक्स वायरल के फैलने का संदेह बढ़ गया है। इस वायरल के खतरे को देखते हुए हरियाणा सरकार ने अलर्ट जारी करते हुए कहा है कि जो यात्री साउथ अफ्रीका, यूरोप, उत्तरी अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया से आ रहा है, उस पर तीन सप्ताह नजर रखी जाए। यदि उसमें वायरल के लक्षण मिलते हैं तो उसके जांच सैंपल आईसीएमआर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी लैब पूना भेजा जाए।
पीजीआईएमएस में कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं कोवैक्सीन वैक्सीन की अनुसंधान टीम के सदस्य डॉ. रमेश वर्मा ने बताया कि मंकीपॉक्स एक वायरल बीमारी है। यह बंदर व एनिमल से इंसान में आई है। पहले साउथ अफ्रीका में इसके केस आते थे अब यूरोप, इंग्लैंड, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, इटली, बैलजियम, फ्रांस, उत्तरी अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया में इसके केस देखे गए हैं।
यह स्माल पॉक्स की तरह के लक्षणों वाली बीमारी है। इसमें बुखार, सिर दर्द, शरीर का टूटना, मांसपेशियों में दर्द, थकावट, गांठ का बनना व चर्म पर फफोले बनना है। जिनको स्माल पॉक्स की वैक्सीन लग चुकी है, उन्हें इससे घबराने की जरूरत नहीं है। हमारे देश में सवाल उठ रहा है कि अब बच्चों को यह वैक्सीन नहीं लगती, इसलिए 15 से नीचे आयु वाले बच्चों को इससे खतरा है। इससे अलर्ट रहने की जरूरत है।
डॉ. अनिल बिरला, डॉ. रमेश वर्मा।
दो से चार सप्ताह लगता है ठीक होने में
डॉ. रमेश वर्मा ने बताया कि मंकी पॉक्स से ठीक होने में दो से चार सप्ताह का समय लगता है। यह अधिकांश अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन कई मामलों में यह भयानक रूप ले लेता है। इसमें निमोनिया, आंखों की रोशनी का खोना, ब्रेन में सूजन तक हो जाती है। इससे संक्रमितों की मृत्यु दर 3 से 6 प्रतिशत है, जो कोरोना से भी अधिक है।
फैलने का कारण
सांस के माध्यम से, थूक से, संक्रमित के कपड़े के संपर्क में आने, फफोलों का पानी लगने से।
नोट : इसमें चेहरे, हाथ व पांव पर फफोले पड़ते हैं। इसकी जांच पीसीआर टेस्ट के माध्यम से होती है। बीमारी के लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है।
विस्तार
कोरोना के साथ अब विश्व में मंकीपॉक्स वायरल के फैलने का संदेह बढ़ गया है। इस वायरल के खतरे को देखते हुए हरियाणा सरकार ने अलर्ट जारी करते हुए कहा है कि जो यात्री साउथ अफ्रीका, यूरोप, उत्तरी अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया से आ रहा है, उस पर तीन सप्ताह नजर रखी जाए। यदि उसमें वायरल के लक्षण मिलते हैं तो उसके जांच सैंपल आईसीएमआर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी लैब पूना भेजा जाए।
पीजीआईएमएस में कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं कोवैक्सीन वैक्सीन की अनुसंधान टीम के सदस्य डॉ. रमेश वर्मा ने बताया कि मंकीपॉक्स एक वायरल बीमारी है। यह बंदर व एनिमल से इंसान में आई है। पहले साउथ अफ्रीका में इसके केस आते थे अब यूरोप, इंग्लैंड, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, इटली, बैलजियम, फ्रांस, उत्तरी अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया में इसके केस देखे गए हैं।
यह स्माल पॉक्स की तरह के लक्षणों वाली बीमारी है। इसमें बुखार, सिर दर्द, शरीर का टूटना, मांसपेशियों में दर्द, थकावट, गांठ का बनना व चर्म पर फफोले बनना है। जिनको स्माल पॉक्स की वैक्सीन लग चुकी है, उन्हें इससे घबराने की जरूरत नहीं है। हमारे देश में सवाल उठ रहा है कि अब बच्चों को यह वैक्सीन नहीं लगती, इसलिए 15 से नीचे आयु वाले बच्चों को इससे खतरा है। इससे अलर्ट रहने की जरूरत है।
डॉ. अनिल बिरला, डॉ. रमेश वर्मा।
दो से चार सप्ताह लगता है ठीक होने में
डॉ. रमेश वर्मा ने बताया कि मंकी पॉक्स से ठीक होने में दो से चार सप्ताह का समय लगता है। यह अधिकांश अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन कई मामलों में यह भयानक रूप ले लेता है। इसमें निमोनिया, आंखों की रोशनी का खोना, ब्रेन में सूजन तक हो जाती है। इससे संक्रमितों की मृत्यु दर 3 से 6 प्रतिशत है, जो कोरोना से भी अधिक है।
फैलने का कारण
सांस के माध्यम से, थूक से, संक्रमित के कपड़े के संपर्क में आने, फफोलों का पानी लगने से।
नोट : इसमें चेहरे, हाथ व पांव पर फफोले पड़ते हैं। इसकी जांच पीसीआर टेस्ट के माध्यम से होती है। बीमारी के लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है।
प्रदेश सरकार ने अलर्ट जारी किया है। चिन्हित देशों से आने वाले यात्रियों के संपर्क में स्वास्थ्य विभाग है। यदि किसी को लक्षण मिलता है या समस्या आती है तो उसका सैंपल जांच के लिए भेजा जाएगा। जरूरी है मास्क पहना जाए, इससे कोरोना के साथ इस संक्रमण से भी बचा जा सकता है। विदेश से आने वालों से पूछा जाएगा कि क्या वह किसी संक्रमित के संपर्क में रहे हैं। इसके साथ ही यदि किसी को इसके लक्षण मिलते हैं तो उसे आइसोलेट किया जाएगा। - डॉ. अनिल बिरला, सिविल सर्जन