अफगानिस्तान में आतंकी संगठनों के बीच नूरा-कुश्ती शुरू हो गई है। दोहा समझौते में कही गई बातों का अब कोई मतलब नहीं रहा। अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते में तालिबान ने अपने नियंत्रण वाले इलाके से अल-कायदा व दूसरे चरमपंथी संगठनों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने की बात कही थी। अफगानिस्तान पर जैसे ही तालिबान का कब्जा हुआ, वहां दुनिया के बड़े आतंकी संगठन 'हक्कानी नेटवर्क' के हाथ में ही 'काबुल' की सुरक्षा कमान सौंप दी गई। ये वही आतंकी नेटवर्क है, जिसे पाकिस्तानी 'आईएसआई' दिशा-निर्देश जारी करती है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा, अफगानिस्तान के विकास में पाकिस्तान का बड़ा रोल रहा है। 40 वर्षों में पाकिस्तान ने कई अफगानियों को अपने यहां शरण दी है। सुरक्षा जानकारों का कहना है, इसका सीधा मतलब है कि पाकिस्तान अब अफगानिस्तान में अपना हिस्सा चाहता है। वह आर्थिक लाभ के साथ-साथ अपने आतंकी समूहों को फ्री-हैंड देने की शर्त भी रख रहा है।
तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा को लेकर भी खेल चल रहा है। अभी तक किसी के पास यह पुख़्ता सूचना नहीं है कि वह इस समय कहां पर है। भारत के अलावा कई देशों की खुफिया एजेंसियां उसका पता लगाने में जुटी हैं। ऐसी जानकारी भी सामने आ रही है कि अखुंदजादा पाकिस्तान की हिरासत में हो सकता है। तालिबान भी इस बाबत कुछ नहीं बोल रहा है। जनरल कमर जावेद बाजवा का बयान ऐसी संभावनाओं को बल देता है कि वह पाकिस्तान की हिरासत में हो। पाकिस्तान इसी बल पर तालिबान से सौदेबाजी करे। मई 2016 में हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा को तालिबान का प्रमुख बनाया गया था।
इस्लामिक स्टेट ‘आईएस’ को लेकर तालिबान ने भरोसा दिलाया था कि वह उसके साथ संबंध नहीं रखेगा, अब अफगानिस्तान में उसकी दमदार उपस्थिति नजर आ रही है। यह अलग बात है कि आईएस ने अपने साप्ताहिक अखबार अल-नबा के 19 अगस्त के संपादकीय में कहा है, ‘ये अमन के लिए जीत है, इस्लाम के लिए नहीं। ये सौदेबाज़ी की जीत है न कि जिहाद की। हक्कानी नेटवर्क को काबुल सौंपने का मतलब तालिबान और अल-कायदा के बीच संबंध हैं। यह आतंकी नेटवर्क ‘अल-क़ायदा’ का बड़ा मददगार रहा है। ख़लील अल रहमान हक्कानी, चाहते हैं कि उसे तालिबानी सत्ता में पर्याप्त हिस्सा मिले।
बता दें कि हक्कानी नेटवर्क को अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित कर रखा है। इसका कारण यह है कि ये नेटवर्क लम्बे समय तक पाकिस्तान-अफगान सीमा पर तालिबान की वित्तीय और सैन्य ज़रूरतें पूरी करता रहा है। खुफिया एजेंसियों का कहना है कि मौजूदा समय में नंबर दो की पॉजिशन पर काम कर रहे सिराजुद्दीन हक्कानी, तालिबान और पाकिस्तान के बीच पुल का काम करता रहा है। 'इस्लामिक स्टेट' अब वैश्विक स्तर पर अपनी गतिविधियां फैलाना चाहता है। वह तालिबान को फ्री हैंड देने के पक्ष में नहीं है। तालिबानी कब्ज़े को लेकर आईएस ने कहा, उसे कोई जीत नहीं मिली है। ये तो अमेरिका ने एक समझौते के तहत तालिबान को अफगानिस्तान का कब्जा सौंपा है। इराक और सीरिया में हार के बाद आईएस को अफ़गानिस्तान से बेहतर ज़मीन कहीं नहीं मिल सकती। मौजूदा हालात में अल-कायदा पहले से कहीं अधिक ताकत के साथ वापसी कर सकता है। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग की करीब एक दशक पहले की रिपोर्ट बताती है कि अल-कायदा, तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के नेतृत्व को जान अब्द अल-सलाम व खलील अल-रहमान हक्कानी, इन दो अफगान व्यक्तियों ने बहुत आगे बढ़ाया है। कार्यकारी आदेश (ईओ) 13224 में अल-सलाम को अल-कायदा के लिए कार्य करने और तालिबान को सहायता देने वालों में शामिल किया गया था।
खलील अल-रहमान हक्कानी, जो हक्कानी नेटवर्क के सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों और धन उगाहने वालों में से एक है, वह जान 'अब्द अल-सलाम तालिबान और अल-कायदा के समर्थन में लगा रहा है। हक्कानी के पास वित्तीय खुफिया इकाई के इनपुट रहते थे। जान 'अब्द अल-सलाम ने तालिबान और अल-कायदा को धन मुहैया कराया था, जबकि अल-कायदा के लिए प्रशिक्षण और हथियार अधिग्रहण की सुविधा प्रदान की थी। 2008 में, उन्होंने अल-कायदा और तालिबान के लिए हजारों डॉलर एकत्र किए थे। साल 2007 और 2008 में, अल-सलाम ने अफगानिस्तान के वार्डक प्रांत में तालिबान को दूसरी मदद के अलावा हजारों डॉलर की आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी।
2007 में, अल-सलाम ने अल-कायदा कमांडर के प्राथमिक सहायक और सूत्रधार के रूप में कार्य किया था। उसे अल-कायदा कमांडर द्वारा हथियार खरीदने का काम सौंपा गया था। 2005 के आसपास, अल-सलाम ने पाकिस्तान में अल-कायदा के लिए एक बुनियादी प्रशिक्षण शिविर चलाया। इसके अलावा, उन्होंने ऐसे व्यक्तियों की मेजबानी की, जिन्होंने हथियारों और विस्फोटकों के प्रशिक्षण और अल-कायदा की शिक्षा में भाग लेने की मांग की थी। इसी तरह हक्कानी नेटवर्क के वरिष्ठ सदस्य, खलील हक्कानी तालिबान की ओर से धन उगाहने की गतिविधियों में शामिल रहे हैं। 2010 की शुरुआत में, उन्होंने लोगार प्रांत, अफगानिस्तान में तालिबानी यूनिट को धन मुहैया कराया था। सुरक्षा जानकारों का कहना है, हक्कानी नेटवर्क तालिबान से संबद्ध एक आतंकवादी समूह है, जो पाकिस्तान से संचालित होता है। अफगानिस्तान में विद्रोही गतिविधियों में सबसे आगे, हक्कानी नेटवर्क की स्थापना खलील हक्कानी के भाई जलालुद्दीन हक्कानी ने की थी, जो 1990 के दशक के मध्य में मुल्ला उमर के तालिबान शासन में शामिल हुआ था। अब ये सभी आतंकी समूह ‘तालिबान’ के अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सक्रिय भूमिका और वाजिब हिस्सा चाहते हैं।
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अफगानिस्तान में आतंकी संगठनों के बीच नूरा-कुश्ती शुरू हो गई है। दोहा समझौते में कही गई बातों का अब कोई मतलब नहीं रहा। अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते में तालिबान ने अपने नियंत्रण वाले इलाके से अल-कायदा व दूसरे चरमपंथी संगठनों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने की बात कही थी। अफगानिस्तान पर जैसे ही तालिबान का कब्जा हुआ, वहां दुनिया के बड़े आतंकी संगठन 'हक्कानी नेटवर्क' के हाथ में ही 'काबुल' की सुरक्षा कमान सौंप दी गई। ये वही आतंकी नेटवर्क है, जिसे पाकिस्तानी 'आईएसआई' दिशा-निर्देश जारी करती है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा, अफगानिस्तान के विकास में पाकिस्तान का बड़ा रोल रहा है। 40 वर्षों में पाकिस्तान ने कई अफगानियों को अपने यहां शरण दी है। सुरक्षा जानकारों का कहना है, इसका सीधा मतलब है कि पाकिस्तान अब अफगानिस्तान में अपना हिस्सा चाहता है। वह आर्थिक लाभ के साथ-साथ अपने आतंकी समूहों को फ्री-हैंड देने की शर्त भी रख रहा है।
तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा को लेकर भी खेल चल रहा है। अभी तक किसी के पास यह पुख़्ता सूचना नहीं है कि वह इस समय कहां पर है। भारत के अलावा कई देशों की खुफिया एजेंसियां उसका पता लगाने में जुटी हैं। ऐसी जानकारी भी सामने आ रही है कि अखुंदजादा पाकिस्तान की हिरासत में हो सकता है। तालिबान भी इस बाबत कुछ नहीं बोल रहा है। जनरल कमर जावेद बाजवा का बयान ऐसी संभावनाओं को बल देता है कि वह पाकिस्तान की हिरासत में हो। पाकिस्तान इसी बल पर तालिबान से सौदेबाजी करे। मई 2016 में हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा को तालिबान का प्रमुख बनाया गया था।