बिहार में कथित धर्मनिरपेक्ष गैर भाजपा
गठबंधन को तुड़वाने के लिए भाजपा के 'ऑपरेशन बिहार' की शुरुआत नोटबंदी से भी पहले ही हो चुकी थी, जब भाजपा के वरिष्ठ नेता और नीतीश के पुराने दोस्त
सुशील कुमार मोदी को इसके लिए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हरी झंडी मिल गई थी।
सुशील मोदी ने तब से ही इस पर काम शुरू कर दिया था। भाजपा की इस सियासी मुहिम पर पक्की मुहर तब लगी, जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल न होकर, उसके अगले दिन ही नीतीश कुमार ने दिल्ली आकर मॉरीशस के प्रधानमंत्री के सम्मान में दिए गए भोज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शामिल हुए और बिहार में गंगा सफाई को लेकर दोनों ने बंद कमरे में लंबी बातचीत की। उस बैठक के बाद से ही नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार का राजनीतिक रसायन खासा सकारात्मक हो गया।
यह जानकारी देने वाले भाजपा के सूत्रों ने बताया कि बिहार चुनावों में भाजपा की हार के बाद से ही सुशील मोदी, लालू-नीतीश की दोस्ती में दरार डालकर भाजपा के लिए संभावना बनाने के पक्ष में थे।
लेकिन जद(यू) के एनडीए में रहने के समय से ही नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच सियासी रिश्तों में जो खटास थी, न सिर्फ लुधियाना की एनडीए रैली में मंच पर नीतीश और मोदी के बीच हाथ पकड़कर फोटो खिंचाने का विवाद हो या लोकसभा चुनाव से पहले पटना में भाजपा की कार्यकारिणी के दौरान अचानक मुख्यमंत्री निवास पर भोज रद्द करना और फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को नामंजूर करते हुए भाजपा से अलग होने के नीतीश के फैसलों की वजह से सुशील मोदी के भीतर हिचकिचाहट थी।
बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में भी जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डीएनए वाले भाषण और बिहार पैकेट की घोषणा के अंदाज को नीतीश ने बिहार की अस्मिता से जोड़कर एक बड़ा मुद्दा बना दिया था, उसे लेकर भी भाजपा में असमंजस था।
लेकिन बिहार के महागठबंधन की तर्ज पर, 2019 के लोकसभा चुनावों में देश और विशेषकर उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनाने की विपक्षी दलों की पुकार ने भाजपा नेतृत्व के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को भी चौकन्ना कर दिया था।
इसके बाद ही बिहार के महागठबंधन में दरार डालकर, राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के महागठबंधन की भ्रूण हत्या करने की रणनीति तैयार हुई। नीतीश के साथ फिर से तार जोड़कर बिहार में ही महागठबंधन के पैरोकारों की पटखनी देने की योजना पर सुशील मोदी ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को पहले भरोसे में लिया।
फिर शाह ने इस रणनीति के लिए प्रधानमंत्री की मंजूरी ली। प्रधानमंत्री की हरी झंडी मिलने के बाद शाह ने इसकी पूरी जिम्मेदारी सुशील मोदी को दे दी। इसके बाद ही नीतीश से उनकी मुलाकातों का सिलसिला बढ़ गया।
इसका पहला संकेत तब मिला जब नोटबंदी पर नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुलकर समर्थन किया और उनसे बेनामी संपत्ति के खिलाफ भी कार्रवाई करने की मांग कर डाली। नीतीश की इस मांग के बाद ही सुशील मोदी ने लालू यादव, तेजस्वी यादव और लालू की बेटी मीसा भारती के खिलाफ बेनामी संपत्तियों की सिलसिलेवार सूची जारी करना शुरू कर दिया।
इसके साथ ही सीबीआई, आयकर और प्रवर्तन निदेशालय ने इन आरोपों का संज्ञान लेते हुए लालू परिवार के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। सुशील मोदी के आरोपों और सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई ने नीतीश कुमार पर निर्णायक फैसला लेने का दबाव बनाया और तेजस्वी के इस्तीफे को लेकर जो राजनीति शुरू हुई, उसने नीतीश कुमार को लालू यादव से पल्ला छुड़ाने और भाजपा के साथ जाने का फैसला करने का मौका दे दिया।
बिहार में कथित धर्मनिरपेक्ष गैर भाजपा गठबंधन को तुड़वाने के लिए भाजपा के 'ऑपरेशन बिहार' की शुरुआत नोटबंदी से भी पहले ही हो चुकी थी, जब भाजपा के वरिष्ठ नेता और नीतीश के पुराने दोस्त सुशील कुमार मोदी को इसके लिए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हरी झंडी मिल गई थी।
सुशील मोदी ने तब से ही इस पर काम शुरू कर दिया था। भाजपा की इस सियासी मुहिम पर पक्की मुहर तब लगी, जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल न होकर, उसके अगले दिन ही नीतीश कुमार ने दिल्ली आकर मॉरीशस के प्रधानमंत्री के सम्मान में दिए गए भोज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शामिल हुए और बिहार में गंगा सफाई को लेकर दोनों ने बंद कमरे में लंबी बातचीत की। उस बैठक के बाद से ही नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार का राजनीतिक रसायन खासा सकारात्मक हो गया।
यह जानकारी देने वाले भाजपा के सूत्रों ने बताया कि बिहार चुनावों में भाजपा की हार के बाद से ही सुशील मोदी, लालू-नीतीश की दोस्ती में दरार डालकर भाजपा के लिए संभावना बनाने के पक्ष में थे।
लेकिन जद(यू) के एनडीए में रहने के समय से ही नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच सियासी रिश्तों में जो खटास थी, न सिर्फ लुधियाना की एनडीए रैली में मंच पर नीतीश और मोदी के बीच हाथ पकड़कर फोटो खिंचाने का विवाद हो या लोकसभा चुनाव से पहले पटना में भाजपा की कार्यकारिणी के दौरान अचानक मुख्यमंत्री निवास पर भोज रद्द करना और फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को नामंजूर करते हुए भाजपा से अलग होने के नीतीश के फैसलों की वजह से सुशील मोदी के भीतर हिचकिचाहट थी।
बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में भी जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डीएनए वाले भाषण और बिहार पैकेट की घोषणा के अंदाज को नीतीश ने बिहार की अस्मिता से जोड़कर एक बड़ा मुद्दा बना दिया था, उसे लेकर भी भाजपा में असमंजस था।