चीन ने ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के जल बहाव से जुड़ा डाटा भारत के साथ साझा करना शुरू कर दिया है। सूत्रों ने मंगलवार को कहा कि यह इन दो नदियों की जानकारी देने की सालाना कवायद का हिस्सा है।
चीन ने इस बार दोनों देशों के बीच सीमा गतिरोध के कारण तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद दोनों नदियों का डाटा साझा किया है। इससे पहले 2017 में मानसूनी सीजन के दौरान भूटान से सटी सीमा पर दोकलम में भारत के साथ 73 दिन लंबे सीमा गतिरोध के चलते चीन ने जलीय डाटा साझा करना बंद कर दिया था।
इसके लिए उसने ब्रह्मपुत्र और सतलुज में आई बाढ़ के दौरान डाटा जुटाने वाले उपकरण बह जाने का बहाना बनाया था। बाद में उसने 2018 में दोबारा डाटा साझा करना शुरू कर दिया था।
बता दें कि भारत और चीन के बीच हुए समझौते के तहत बीजिंग की तरफ से इन दोनों नदियों का जलीय डाटा साझा करना अनिवार्य है। समझौते के मुताबिक, बीजिंग को ब्रह्मपुत्र का डाटा 15 मई से और सतलुज का डाटा 1 जून से साझा करना पड़ता है। दिन में दो बार डाटा साझा करने का यह काम 15 अक्तूबर तक चलता है।
चीन ने 2002 में ब्रह्मपुत्र और 2005 में सतलुज का डाटा उपलब्ध कराना शुरू किया था, जिसकी मदद से हर साल भारतीय केंद्रीय जल आयोग को बाढ़ का अनुमान जारी करने में मदद मिलती है। इसके लिए चीन ने अपने यहां यारलुंग जांग्बो के नाम से पुकारी जाने वाली ब्रह्मपुत्र पर नुगेशा, यांगकुन और नुक्शिया में तीन हाइड्रोलॉजिकल स्टेशन बनाए हुए हैं, जबकि लांग्केन जांग्बोड नाम वाली सतलुज डाटा त्सादा में बने स्टेशन पर एकत्र किया जाता है।
हालांकि, क्षेत्रीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यांगशी नदी पर तीन बडे़ बांध बनाए जा रहे हैं, जो चीन में वितरण के लिए तीन गुना से भी ज्यादा बिजली पैदा करेंगे। ब्रह्मपुत्र और ग्लेशियर चीन से ही निकलते हैं।
ऊपरी इलाके में होने से चीन बेहतर स्थिति में है और नीचे बहने वाले पानी के बहाव को बांध बनाकर रोक सकता है। इस बांध के बनने से चीन के भारत समेत अपने पड़ोसियों के साथ संबंध और तल्ख हो सकते हैं।
विस्तार
चीन ने ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के जल बहाव से जुड़ा डाटा भारत के साथ साझा करना शुरू कर दिया है। सूत्रों ने मंगलवार को कहा कि यह इन दो नदियों की जानकारी देने की सालाना कवायद का हिस्सा है।
चीन ने इस बार दोनों देशों के बीच सीमा गतिरोध के कारण तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद दोनों नदियों का डाटा साझा किया है। इससे पहले 2017 में मानसूनी सीजन के दौरान भूटान से सटी सीमा पर दोकलम में भारत के साथ 73 दिन लंबे सीमा गतिरोध के चलते चीन ने जलीय डाटा साझा करना बंद कर दिया था।
इसके लिए उसने ब्रह्मपुत्र और सतलुज में आई बाढ़ के दौरान डाटा जुटाने वाले उपकरण बह जाने का बहाना बनाया था। बाद में उसने 2018 में दोबारा डाटा साझा करना शुरू कर दिया था।
बता दें कि भारत और चीन के बीच हुए समझौते के तहत बीजिंग की तरफ से इन दोनों नदियों का जलीय डाटा साझा करना अनिवार्य है। समझौते के मुताबिक, बीजिंग को ब्रह्मपुत्र का डाटा 15 मई से और सतलुज का डाटा 1 जून से साझा करना पड़ता है। दिन में दो बार डाटा साझा करने का यह काम 15 अक्तूबर तक चलता है।
चीन ने 2002 में ब्रह्मपुत्र और 2005 में सतलुज का डाटा उपलब्ध कराना शुरू किया था, जिसकी मदद से हर साल भारतीय केंद्रीय जल आयोग को बाढ़ का अनुमान जारी करने में मदद मिलती है। इसके लिए चीन ने अपने यहां यारलुंग जांग्बो के नाम से पुकारी जाने वाली ब्रह्मपुत्र पर नुगेशा, यांगकुन और नुक्शिया में तीन हाइड्रोलॉजिकल स्टेशन बनाए हुए हैं, जबकि लांग्केन जांग्बोड नाम वाली सतलुज डाटा त्सादा में बने स्टेशन पर एकत्र किया जाता है।
हालांकि, क्षेत्रीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यांगशी नदी पर तीन बडे़ बांध बनाए जा रहे हैं, जो चीन में वितरण के लिए तीन गुना से भी ज्यादा बिजली पैदा करेंगे। ब्रह्मपुत्र और ग्लेशियर चीन से ही निकलते हैं।
ऊपरी इलाके में होने से चीन बेहतर स्थिति में है और नीचे बहने वाले पानी के बहाव को बांध बनाकर रोक सकता है। इस बांध के बनने से चीन के भारत समेत अपने पड़ोसियों के साथ संबंध और तल्ख हो सकते हैं।