केंद्र सरकार में स्थायी नौकरी का नियुक्ति पत्र हासिल करने वाले युवा, 'प्रोबेशन और कन्फर्मेशन' अवधि को हल्के में कतई न लें। परिवीक्षा अवधि (प्रोबेशन पीरियड) के दौरान कई तरह से उन पर नजर रखी जाएगी। उनके कामकाज को लेकर विभिन्न स्तर के अधिकारी रिपोर्ट तैयार करेंगे। परिवीक्षा अवधि पूरी होने के बाद अगर कोई कर्मी तय मानकों पर खरा नहीं उतरता है, तो उसके लिए दिक्कतों का पिटारा खुल सकता है। प्रोबेशन अवधि के दौरान, चाइल्ड केयर लीव को लेकर हायतौबा न मचाएं। परिवीक्षाधीन व्यक्ति ने आवश्यक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया या उसने हिंदी में प्रवीणता, आदि विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है, तो संबंधित कर्मी की परिवीक्षा अवधि बढ़ाई जा सकती है। गंभीर केसों में निलंबन भी संभव है।
मूल्यांकन का कोई भी तरीका अपनाया जा सकता है
डीओपीटी के मुताबिक, जो भी व्यक्ति परिवीक्षा पर नियुक्त होता है, तो उसे अपना कार्य पूरी गंभीरता के साथ करना चाहिए। बहुत से व्यक्ति परिवीक्षा अवधि को मात्र औपचारिकता मान लेते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। संबंधित कर्मी का मूल्यांकन करने के लिए अधिकारी नियुक्त होता है। कमेटी की रिपोर्ट मांगी जाती है। इसी आधार पर अस्थायी कर्मचारी की परिवीक्षा अवधि का नतीजा आता है। उसकी परिवीक्षा अवधि बढ़ाई जाएगी या उसकी सेवाएं समाप्त होंगी, ये सब रिपोर्ट पर निर्भर करता है। यह वांछनीय नहीं है कि किसी सरकारी कर्मचारी को लंबी अवधि के लिए परिवीक्षा पर रखा जाए। परिवीक्षा अवधि के दौरान, संबंधित व्यक्ति की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उसके लिए विभागीय परीक्षा या मूल्यांकन का कोई अन्य तरीका अपनाया जा सकता है। कर्मचारी के दृष्टिकोण, चरित्र और योग्यता का बहुत सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाएगा। परिवीक्षाधीन व्यक्ति को एक से अधिक अधिकारियों के अधीन कार्य करने का अवसर दिया जाना चाहिए। बाद में उन सभी अधिकारियों से, संबंधित कर्मी की अलग-अलग कार्य रिपोर्ट प्राप्त की जा सकती है।
आत्म-सुधार के लिए लिखित चेतावनी और बर्खास्ती भी
परिवीक्षा रिपोर्ट पर वरिष्ठ अधिकारियों का एक बोर्ड विचार कर सकता है। उसमें यह तय होगा कि संबंधित परिवीक्षाधीन, सेवा में स्थायी होने के योग्य है या नहीं। इस उद्देश्य के लिए, अलग-अलग रूपों में रिपोर्ट हासिल की जा सकती है। खास बात है कि ये रिपोर्ट, सामान्य वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (एपीएआर) दस्तावेज से अलग होगी। परिवीक्षा की अवधि के लिए सामान्य एपीएआर के अतिरिक्त परिवीक्षा अवधि की अलग रिपोर्ट लिखी जानी चाहिए। असाधारण कारणों को छोड़कर, परिवीक्षा अवधि को एक वर्ष से अधिक न बढ़ाया जाए। किसी भी परिस्थिति में कर्मचारी को सामान्य अवधि से दोगुनी अधिक अवधि तक के लिए परिवीक्षा पर नहीं रखा जाना चाहिए। एक परिवीक्षाधीन व्यक्ति, जो संतोषजनक प्रगति नहीं कर रहा है, को मूल परिवीक्षा अवधि की समाप्ति से पहले उसकी कमियों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए, ताकि वह आत्म-सुधार का प्रयास कर सके। इसे लेकर लिखित चेतावनी दी जा सकती है। निर्दिष्ट अवधि के भीतर उसमें पर्याप्त सुधार नहीं दिखता है, उसे बर्खास्त करने के प्रश्न पर विचार होगा, भले ही नियमों में इसकी आवश्यकता नहीं है। सेवा से हटाना, एक गंभीर, अंतिम और अपरिवर्तनीय कदम है। परिवीक्षाधीन व्यक्ति को सेवामुक्ति का कठोर कदम उठाने से पहले एक अवसर दिया जाना चाहिए।
किस पद के लिए कितनी परिवीक्षा है जरूरी
अगर कोई कर्मचारी पदोन्नति के द्वारा एक ही समूह में एक ग्रेड से दूसरे ग्रेड में पहुंचता है, तो वहां पर परिवीक्षा अवधि की जरुरत नहीं होगी। जैसे ग्रुप सी से कोई कर्मी ग्रुप सी में किसी अन्य ग्रेड वाले पद पर जाता है, तो उस दौरान परिवीक्षा अवधि की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। अगर कोई कर्मचारी पदोन्नति के द्वारा एक ग्रुप से दूसरे ग्रुप में जैसे, 'बी' से 'ए' में जाता है, तो ऐसे में परिवीक्षा अवधि का एक तय समय निश्चित किया गया है। अगर कोई वहां परिवीक्षा अवधि का कोई उल्लेख नहीं है, तो उस मामले में परिवीक्षा अवधि, दो वर्ष होनी चाहिए। सीधी भर्ती के मामले में 7600 रुपये के ग्रेड पे से नीचे के कर्मियों की परिवीक्षा अवधि, दो वर्ष रहेगी। अगर कोई कर्मचारी 7600 रुपये के ग्रेड पे में है या उससे ऊपर है और उस पद के लिए अधिकतम आयु सीमा 35 वर्ष रखी गई, उसमें कोई ट्रेनिंग भी शामिल नहीं है, ऐसे मामले में परिवीक्षा अवधि एक वर्ष रहेगी। अगर कोई कर्मचारी अपनी रिटायरमेंट से पहले दोबारा से कोई नौकरी लेता है, तो वहां पर परिवीक्षा अवधि दो वर्ष रहेगी। अनुबंध आधार पर हुई नियुक्ति, तय कार्यकाल आधारित जॉब, रिटायरमेंट के बाद दोबारा से जॉब लेना, आदि मामलों में परिवीक्षा अवधि की जरुरत नहीं है।
परिवीक्षाधीन व्यक्ति को मिलेंगी इतनी छुट्टियां
एक परिवीक्षाधीन व्यक्ति सीसीएस (छुट्टी) नियम, 1972 के नियम 33 के प्रावधानों के तहत अवकाश का हकदार होगा। अगर किसी वजह से, परिवीक्षाधीन व्यक्ति की सेवाओं को समाप्त करने का प्रस्ताव आता है, तो उसे दी जाने वाली कोई भी छुट्टी नहीं बढ़ाई जाएगी। परिवीक्षा अवधि के दौरान किसी पद पर नियुक्त व्यक्ति, अस्थाई या स्थायी सरकारी सेवक के रूप में अवकाश का हकदार होगा, क्योंकि उसकी नियुक्ति अस्थाई या स्थायी पद पर की गई है। वह कुछ नियमों के तहत एक स्थायी सरकारी कर्मचारी के रूप में छुट्टी का हकदार होगा। आमतौर पर परिवीक्षार्थियों को चाइल्ड केयर लीव 'सीसीएल', परिवीक्षा अवधि के दौरान प्रदान नहीं की जानी चाहिए। केवल कुछ ही विपरित परिस्थितियों में ऐसा संभव होगा। वहां भी लीव मंजूर करने वाला प्राधिकारी, कर्मी के तर्क से संतुष्ट होना चाहिए। परिवीक्षा के दौरान जो यह अवकाश स्वीकृत किया गया है, वह न्यूनतम हो। इसके अलावा सीसीएस (छुट्टी) नियम, 1972 के नियम 43-सी में निहित अन्य प्रावधान भी लागू होंगे। परिवीक्षा की अवधि के दौरान, परिवीक्षाधीन व्यक्ति ने आवश्यक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया है या निर्धारित विभागीय परीक्षा (हिंदी में प्रवीणता, आदि) उत्तीर्ण नहीं की है, तो परिवीक्षा की अवधि को आगे बढ़ाया जा सकता है।
परिवीक्षा अवधि के नतीजे पर निर्भर है ये सब
कुछ कर्मचारी परिवीक्षा अवधि के दौरान लंबी छुट्टी लेने के कारण परिवीक्षा पूरी नहीं कर पाते हैं। ऐसे मामलों में यदि कोई कर्मचारी परिवीक्षा के लिए निर्धारित कुल अवधि का 75 फीसदी पूरा नहीं करता है, तो नियमों के तहत उसकी परिवीक्षा अवधि, ली गई छुट्टी की अवधि तक बढ़ाई जा सकती है। किसी कर्मचारी को स्थायी किया जाए या उसकी परिवीक्षा को बढ़ाया जाए, यह निर्णय प्रारंभिक परिवीक्षा अवधि की समाप्ति के तुरंत बाद लिया जाना चाहिए। कोई परिवीक्षाधीन व्यक्ति, जो संतोषजनक प्रगति नहीं कर रहा है या जो किसी भी तरह से सेवा के लिए खुद को अपर्याप्त दिखाता है, उसे मूल परिवीक्षा अवधि की समाप्ति से पहले अपनी कमियों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। यदि परिवीक्षाधीन व्यक्ति ने परिवीक्षा की अवधि संतोषजनक ढंग से पूरी नहीं की है, तो परिवीक्षा की अवधि बढ़ाए या परिवीक्षाधीन को बर्खास्त करें या परिवीक्षाधीन की सेवाओं को समाप्त करें, ये सब निर्णय नियमों के तहत लिए जाने चाहिए। यदि नियुक्ति प्राधिकारी को किसी भी समय, परिवीक्षा की अवधि के दौरान या उसके अंत में यह प्रतीत होता है कि किसी सरकारी सेवक ने अपने अवसरों का पर्याप्त उपयोग नहीं किया है या संतोषजनक प्रगति नहीं कर रहा है, तो नियुक्ति प्राधिकारी उसे पद पर पदावनत (डिमोशन) कर सकता है।
सेवा से हटने के बाद नहीं मिलेगा कोई मुआवजा
परिवीक्षा की अवधि के दौरान या उसके अंत में सेवा से प्रत्यावर्तित या सेवामुक्त किया गया परिवीक्षार्थी किसी मुआवजे का हकदार नहीं होगा। यदि, परिवीक्षा की अवधि या उसके किसी विस्तार के दौरान, जैसा भी मामला हो, सरकार की ऐसी राय बनती है कि कोई अधिकारी स्थायी नियुक्ति के लिए उपयुक्त नहीं है, तो सरकार उस अधिकारी को बर्खास्त कर सकती है या उसके द्वारा धारित पद को कम कर सकती है। जहां पदोन्नति पर परिवीक्षा निर्धारित है, तो वहां नियुक्त प्राधिकारी, उसके कार्य और आचरण का स्वयं मूल्यांकन करेगा। यदि यह निष्कर्ष निकलता है कि वह अधिकारी, उच्च ग्रेड धारण करने के योग्य है तो वह उत्तीर्ण होगा। यदि संबंधित व्यक्ति ने परिवीक्षा सफलतापूर्वक पूरी कर ली है और नियुक्त प्राधिकारी को लगता है कि उस अधिकारी का कार्य संतोषजनक नहीं रहा है या कुछ और समय तक निगरानी की आवश्यकता है, तो वह उसे उस पद/सेवा/संवर्ग में वापस कर सकता है, जहां से उसे पदोन्नत किया गया था। उसकी परिवीक्षा की अवधि बढ़ाई जा सकती है। यदि परिवीक्षा के दौरान अधिकारी का कार्य संतोषजनक नहीं रहा हो तो किसी व्यक्ति को उस पद या ग्रेड पर वापस भेजने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।