अफगानिस्तान में तालिबान की केयरटेकर सरकार बन चुकी है। मुल्ला हसन अखुंद प्रधानमंत्री, जबकि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर व मुल्ला अबदस सलाम को डिप्टी पीएम का पद सौंपा गया है। इन सबके बीच पड़ोसी देशों के दो शख्स खूब चर्चा में रहे हैं। एक हैं भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार 'अजीत डोभाल' और दूसरे हैं पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ 'फैज हमीद'। डोभाल ने दिल्ली में अमेरिकी सीक्रेट एजेंसी 'सीआईए' के चीफ विलियम बर्न व रूस के एनएसए निकोलाई पेत्रुशेव से मुलाकात की तो वहीं फैज हमीद ने ईरान, चीन, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के खुफिया प्रमुखों के साथ बैठक की। लंबे समय तक इंटेलिजेंस में रहे कैबिनेट सचिवालय से सेक्रेटरी 'सिक्योरिटी' के पद से रिटायर हुए पूर्व आईपीएस यशोवर्धन आजाद कहते हैं, डोभाल की बैठक दुनिया में शांति स्थापना के लिए थी, फैज हमीद की 'मुलाकात' एक ऐसे कॉमन गोल को लेकर हुई, जिसके परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं। उनके एजेंडे में 'आतंक' टॉप पर है। बड़ी बात ये है कि उस आतंकी जोखिम से 'अमेरिका व कश्मीर' अभी बाहर नहीं निकल सके हैं।
सितंबर के दूसरे सप्ताह में अफगानिस्तान को लेकर दुनिया में बैठकों के कई महत्वपूर्ण दौर संपन्न हुए हैं। पूर्व आईपीएस यशोवर्धन आजाद ने बताया, अजीत डोभाल की बैठक बहुत अहम थी। उसमें अमन चैन को कायम रखने पर चर्चा हुई है। आतंक के खिलाफ संयुक्त तौर पर खड़े होने की पैरवी की गई। दोभाल, निकोलाई पेत्रुशेव और विलियम बर्न की बैठक अफगानिस्तान की ताजा स्थिति को लेकर थी। वहां की केयरटेकर सरकार में आतंकी समूहों का जमावड़ा है। कुछ आतंकी अपने दम पर सरकार में शामिल हुए हैं तो बाकी पाकिस्तान की मदद से अहम पद लेने में कामयाब हो गए। यूएन द्वारा घोषित आतंकी जब केयरटेकर सरकार में बॉस बन रहे हैं तो वहां की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। वहां का आतंकवाद दुनिया में पैर न पसार सके, अजीत डोभाल ने इस मुद्दे पर चर्चा की है। तालिबान और पाकिस्तान मिलकर किस तरह से मानवाधिकारों को रौंद रहे हैं, वे दुनिया के लिए आतंकी खतरा पैदा कर रहे हैं, उस पर बात की गई है।
दुनिया में हो रही 90 फीसदी आतंकी गतिविधियों का जुड़ाव किसी न किसी तरह पाकिस्तान से रहा है। तालिबान से पाकिस्तान और चीन को आशा है कि उन्हें लूट के माल में से उनका हिस्सा जरूर मिलेगा। आईएसआई चीफ लेफ़्टिनेंट जनरल फैज हमीद की बैठक में ये सब बातें चर्चा का विषय रही हैं। पाकिस्तान में इस वक्त अफगानिस्तान के तीस लाख से ज्यादा शरणार्थी पहुंच चुके हैं। वह डूरंड लाइन को भी नहीं मानता है। पड़ोसी की सोच है कि इस बहाने उसे फंड मिल जाएगा। वह पैसा मांग रहा है। हक्कानी, जो आईएसआई से ही निकला है, उसे तालिबान के मंत्रिमंडल में अच्छी जगह मिल गई है। पाकिस्तान और तालिबान, अलग नहीं हैं। पूर्व आईपीएस आजाद कहते हैं, आपको ध्यान होगा कि 2001 में कुन्दूज एयरलिफ्ट का मामला दुनिया के सामने आया था। अमेरिका ने तालिबान पर जबरदस्त बमबारी कर दी थी। पाक के शीर्ष अधिकारी, तालिबान के बड़े लोगों को निकालकर लाए थे। पड़ोसी देश पाकिस्तान, शुरू से चाहता है कि ‘तालिबान’ को वैश्विक मान्यता मिल जाए।
रूस भी चिंता में है। उसकी मुस्लिम आबादी में तालिबान का कैसा असर होगा। दूसरा, तालिबान के साथ तो 35 आतंकी संगठन हैं। उनके बीच समन्वय कैसा होगा, ये कोई नहीं जानता। अमेरिका को तालिबान ने कहा, उसकी जमीं से अलकायदा की गतिविधियां नहीं होंगी। आईएस और आईएसकेपी जैसे आतंकी संगठन अलग राह पर हैं। इनके बीच समन्वय नहीं है। इन पर तालिबान का अंकुश बहुत मश्किल होगा। पहले आतंकी संगठनों का एक कॉमन गोल था कि अफगानिस्तान से बाहरी ताकतों को उखाड़ा जाए। अब उसने वह लक्ष्य हासिल कर लिया है। पाकिस्तान के साथ मिलकर हक्कानी, लश्कर और जैश, ये आतंकी संगठन कश्मीर में गड़बड़ी फैलाने का लक्ष्य बना रहे हैं। पाकिस्तान, अपने आतंकी ट्रेनिंग कैंपों को अफगानिस्तान में शिफ्ट करना चाहता है। अलकायदा, अमेरिका पर लक्ष्य साधेगा, इसमें शक नहीं है। इनकी गतिविधियां चालू हो रही हैं। तालिबान का अभी पहला अध्याय है। इसका अनुभव अच्छा नहीं रहा। दुनिया के देश तालिबान को मान्यता देने में हिचक रहे हैं। वजह, तालिबान का भविष्य पूरी तरह अनिश्चित है। पाकिस्तान, हर संभव प्रयास करेगा कि आतंकी समूहों को दोबारा से खड़े कर भारत, अमेरिका या किसी दूसरे पश्चिमी राष्ट्र पर निशाना लगा दे। अफगानिस्तान में अभी बहुत खराब स्थिति है। कुछ समय बाद स्थितियां तेजी से बदलेंगी। उनकी रफ्तार और दिशा, इसके लिए इंतजार करना होगा।
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अफगानिस्तान में तालिबान की केयरटेकर सरकार बन चुकी है। मुल्ला हसन अखुंद प्रधानमंत्री, जबकि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर व मुल्ला अबदस सलाम को डिप्टी पीएम का पद सौंपा गया है। इन सबके बीच पड़ोसी देशों के दो शख्स खूब चर्चा में रहे हैं। एक हैं भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार 'अजीत डोभाल' और दूसरे हैं पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ 'फैज हमीद'। डोभाल ने दिल्ली में अमेरिकी सीक्रेट एजेंसी 'सीआईए' के चीफ विलियम बर्न व रूस के एनएसए निकोलाई पेत्रुशेव से मुलाकात की तो वहीं फैज हमीद ने ईरान, चीन, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के खुफिया प्रमुखों के साथ बैठक की। लंबे समय तक इंटेलिजेंस में रहे कैबिनेट सचिवालय से सेक्रेटरी 'सिक्योरिटी' के पद से रिटायर हुए पूर्व आईपीएस यशोवर्धन आजाद कहते हैं, डोभाल की बैठक दुनिया में शांति स्थापना के लिए थी, फैज हमीद की 'मुलाकात' एक ऐसे कॉमन गोल को लेकर हुई, जिसके परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं। उनके एजेंडे में 'आतंक' टॉप पर है। बड़ी बात ये है कि उस आतंकी जोखिम से 'अमेरिका व कश्मीर' अभी बाहर नहीं निकल सके हैं।
सितंबर के दूसरे सप्ताह में अफगानिस्तान को लेकर दुनिया में बैठकों के कई महत्वपूर्ण दौर संपन्न हुए हैं। पूर्व आईपीएस यशोवर्धन आजाद ने बताया, अजीत डोभाल की बैठक बहुत अहम थी। उसमें अमन चैन को कायम रखने पर चर्चा हुई है। आतंक के खिलाफ संयुक्त तौर पर खड़े होने की पैरवी की गई। दोभाल, निकोलाई पेत्रुशेव और विलियम बर्न की बैठक अफगानिस्तान की ताजा स्थिति को लेकर थी। वहां की केयरटेकर सरकार में आतंकी समूहों का जमावड़ा है। कुछ आतंकी अपने दम पर सरकार में शामिल हुए हैं तो बाकी पाकिस्तान की मदद से अहम पद लेने में कामयाब हो गए। यूएन द्वारा घोषित आतंकी जब केयरटेकर सरकार में बॉस बन रहे हैं तो वहां की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। वहां का आतंकवाद दुनिया में पैर न पसार सके, अजीत डोभाल ने इस मुद्दे पर चर्चा की है। तालिबान और पाकिस्तान मिलकर किस तरह से मानवाधिकारों को रौंद रहे हैं, वे दुनिया के लिए आतंकी खतरा पैदा कर रहे हैं, उस पर बात की गई है।