न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Shilpa Thakur
Updated Mon, 14 Jan 2019 12:14 PM IST
बीते 5 सालों में गल्फ देशों में जाने वाले भारतीयों की संख्या 62 फीसदी कम हुई है। ये संख्या बेहद तेजी से कम हो रही है। भारतीयों को खाड़ी देशों में प्रवास करने की मंजूरी साल 2017 के मुकाबले, 2018 के नंवबर माह (11 अवधि तक) तक 21 फीसदी कम हुई है। ये संख्या 2.95 लाख है। इससे पहले 2014 में ये संख्या 7.76 लाख थी। जो 2018 में 62 फीसदी तक कम हो गई है। ये आंकड़े ई-माइग्रेट इमिग्रेशन डाटा से लिए गए हैं। जो ईसीआर (इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड) रखने वाले श्रमिकों को प्रवासन की मंजूरी देता है। ऐसा होने के पाछे 5 बड़े कारण हैं। तो चलिए जानते हैं कि क्या हैं वो 5 बड़े कारण-
आर्थिक मंदी
एक सवाल के जवाब में बीते साल दिसंबर में विदेश मंत्रालय ने लोकसभा में कहा है कि श्रमिकों की संख्या गिरने का मुख्य कारण खाड़ी देशों में तेल की कमी के कारण आर्थिक मंदी का आना है। इसके अलावा ये देश सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में पहले अपने नागरिकों को काम देते हैं, बाद में किसी और देश के नागरिकों को। जानकारी के मुताबिक तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक ने तेल उत्पादन में कमी की है।
अपने युवाओं को प्राथमिकता देना
इसका दूसरा कारण है खाड़ी देशों द्वारा अपने देश को युवाओं को प्राथमिकता देना। इस कारण यहां भारतीय श्रमिकों की मांग कम हो रही है। स्थानीय मजदूरों को तेल उत्पादन के बारे में अधिक जानकारी होती है। वे तेल उत्पादन से संबंधित कामों में कुशल होते हैं। जबकि भारतीय श्रमिक उतने कुशल नहीं होते।
नहीं होता अच्छा बर्ताव
भारतीयों की संख्या कम होने का तीसरा बड़ा कारण है, इन देशों में उनके साथ अच्छा व्यवहार न होना। विशेषज्ञों का कहना है कि बीते कुछ सालों से भारतीय श्रमिकों के साथ यहां अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा यहां भारतीय श्रमिकों की मौत भी हो रही हैं। हाल ही में मौत की संख्या में तेजी देखी गई है। इन देशों में काम कर चुके भारतीय श्रमिकों का कहना है कि यहां उन्हें अमानवीय स्थिति में काम करना पड़ता है, जिसके कारण अब मजदूर यहां जाने से कतराने लगे हैं।
सरकार का गंभीर न होना
भारत सरकार विदेशों में रह रहे भारतीयों का ध्यान रखती है। इसके लिए विभिन्न देशों की सरकारों से भी बात की जाती है। लेकिन इस संबंध में भारत सरकार जितना ध्यान विकसित देशों में रहने वाले भारतीयों पर देती है, उतना खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों पर नहीं देती। सरकार इस मामले में खाड़ी देशों से उतनी गंभीरता से बातचीत नहीं करती, जितनी की जानी चाहिए।
नई तकनीक भी जिम्मेदार
खाड़ी देशों में भारतीयों की संख्या कम होने के पीछे काफी हद तक तकनीक भी जिम्मेदार है। तेल उत्पादन के काम में अब तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। तकनीक के अलावा जो काम बचता है वो वहां के कुशल श्रमिक कर लेते हैं। ऐसे में अकुशल भारतीय श्रमिकों के लिए वहां काम के अवसर कम हो जाते हैं।
कतर में बढ़ी है भारतीयों की संख्या
केवल कतर ही ऐसा देश है जहां बीते सालों के मुकाबले 2018 में प्रवासियों के जाने की संख्या बढ़ी है। 2018 में कतर में प्रवास करने के लिए 32,500 को मंजूरी दी गई है। यह संख्या 2017 में 25,000 हजार थी। जो कि अब 31 फीसदी बढ़ गई है। मुंबई स्थित लेबर रिक्रूटर का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कतर 2022 में फुटबॉल वर्ल्ड कप आयोजित करने वाला है। इसलिए यहां श्रमिकों की मांग बढ़ी है। हालांकि ऐसी खबरें भी आई हैं कि यहां भारतीय श्रमिकों को काम के बदले भुगतान नहीं किया जा रहा है। खबर ये भी आई है कि एक कन्सट्रक्शन एजेंसी ने करीब 600 श्रमिकों को वेतन नहीं दिया है।
विस्तार
बीते 5 सालों में गल्फ देशों में जाने वाले भारतीयों की संख्या 62 फीसदी कम हुई है। ये संख्या बेहद तेजी से कम हो रही है। भारतीयों को खाड़ी देशों में प्रवास करने की मंजूरी साल 2017 के मुकाबले, 2018 के नंवबर माह (11 अवधि तक) तक 21 फीसदी कम हुई है। ये संख्या 2.95 लाख है। इससे पहले 2014 में ये संख्या 7.76 लाख थी। जो 2018 में 62 फीसदी तक कम हो गई है। ये आंकड़े ई-माइग्रेट इमिग्रेशन डाटा से लिए गए हैं। जो ईसीआर (इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड) रखने वाले श्रमिकों को प्रवासन की मंजूरी देता है। ऐसा होने के पाछे 5 बड़े कारण हैं। तो चलिए जानते हैं कि क्या हैं वो 5 बड़े कारण-
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आर्थिक मंदी
एक सवाल के जवाब में बीते साल दिसंबर में विदेश मंत्रालय ने लोकसभा में कहा है कि श्रमिकों की संख्या गिरने का मुख्य कारण खाड़ी देशों में तेल की कमी के कारण आर्थिक मंदी का आना है। इसके अलावा ये देश सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में पहले अपने नागरिकों को काम देते हैं, बाद में किसी और देश के नागरिकों को। जानकारी के मुताबिक तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक ने तेल उत्पादन में कमी की है।
अपने युवाओं को प्राथमिकता देना
इसका दूसरा कारण है खाड़ी देशों द्वारा अपने देश को युवाओं को प्राथमिकता देना। इस कारण यहां भारतीय श्रमिकों की मांग कम हो रही है। स्थानीय मजदूरों को तेल उत्पादन के बारे में अधिक जानकारी होती है। वे तेल उत्पादन से संबंधित कामों में कुशल होते हैं। जबकि भारतीय श्रमिक उतने कुशल नहीं होते।
नहीं होता अच्छा बर्ताव
भारतीयों की संख्या कम होने का तीसरा बड़ा कारण है, इन देशों में उनके साथ अच्छा व्यवहार न होना। विशेषज्ञों का कहना है कि बीते कुछ सालों से भारतीय श्रमिकों के साथ यहां अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा यहां भारतीय श्रमिकों की मौत भी हो रही हैं। हाल ही में मौत की संख्या में तेजी देखी गई है। इन देशों में काम कर चुके भारतीय श्रमिकों का कहना है कि यहां उन्हें अमानवीय स्थिति में काम करना पड़ता है, जिसके कारण अब मजदूर यहां जाने से कतराने लगे हैं।
सरकार का गंभीर न होना
भारत सरकार विदेशों में रह रहे भारतीयों का ध्यान रखती है। इसके लिए विभिन्न देशों की सरकारों से भी बात की जाती है। लेकिन इस संबंध में भारत सरकार जितना ध्यान विकसित देशों में रहने वाले भारतीयों पर देती है, उतना खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों पर नहीं देती। सरकार इस मामले में खाड़ी देशों से उतनी गंभीरता से बातचीत नहीं करती, जितनी की जानी चाहिए।
नई तकनीक भी जिम्मेदार
खाड़ी देशों में भारतीयों की संख्या कम होने के पीछे काफी हद तक तकनीक भी जिम्मेदार है। तेल उत्पादन के काम में अब तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। तकनीक के अलावा जो काम बचता है वो वहां के कुशल श्रमिक कर लेते हैं। ऐसे में अकुशल भारतीय श्रमिकों के लिए वहां काम के अवसर कम हो जाते हैं।
कतर में बढ़ी है भारतीयों की संख्या
केवल कतर ही ऐसा देश है जहां बीते सालों के मुकाबले 2018 में प्रवासियों के जाने की संख्या बढ़ी है। 2018 में कतर में प्रवास करने के लिए 32,500 को मंजूरी दी गई है। यह संख्या 2017 में 25,000 हजार थी। जो कि अब 31 फीसदी बढ़ गई है। मुंबई स्थित लेबर रिक्रूटर का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कतर 2022 में फुटबॉल वर्ल्ड कप आयोजित करने वाला है। इसलिए यहां श्रमिकों की मांग बढ़ी है। हालांकि ऐसी खबरें भी आई हैं कि यहां भारतीय श्रमिकों को काम के बदले भुगतान नहीं किया जा रहा है। खबर ये भी आई है कि एक कन्सट्रक्शन एजेंसी ने करीब 600 श्रमिकों को वेतन नहीं दिया है।