आखिरकार सियासी महाभारत के बाद चुनाव आयोग ने
गुजरात विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा दिया है। इसके साथ ही सत्तारूढ़ भाजपा, वर्तमान सियासत की सबसे मजबूत पीएम नरेंद्र मोदी-भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी और विपक्ष की अग्निपरीक्षा का दौर शुरू हो गया है।
इस सूबे का चुनाव नतीजा न सिर्फ आगामी लोकसभा चुनाव का भविष्य तय करेगा, बल्कि देश की भावी राजनीति की पटकथा लिखने की शुरुआत भी करेगा। सत्तारूढ़ भाजपा की हार जहां मोदी-शाह की जोड़ी के कारण भाजपा के अजेय होने का मिथक तोड़ेगी, वहीं विपक्ष को एकजुट हो कर मुकाबले में उतरने का आत्मविश्वास भी देगी। इसके उलट विपक्ष की हार मिशन 2019 के लिए उसकी बची खुची उम्मीदों पर भी निर्ममतापूर्वक पानी फेर देगा।
पढ़ें: गुजरात चुनाव: कांग्रेस के साथ आएंगे हार्दिक पटेल!
चूंकि सवाल सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष दोनों की सियासत के लिए करो या मरो का है, इसलिए इस चुनाव के लिए दोनों ही पक्षों ने अपनी सारी ताकत झोंक दी है। भाजपा जहां बीते लोकसभा चुनाव के समय से ही पीएम मोदी के चेहरे के साथ गुजरात की अस्मिता के सवाल पर चुनाव मैदान में है, वहीं मुख्य विपक्षी
कांग्रेस सूबे में पहली बार करीब डेढ़ दशक से काबिज भाजपा के खिलाफ जातिगत समीकरणों को अपने पक्ष में करने में जुटी है।
राज्य में चुनाव से ठीक पहले अपने कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला को खो चुकी कांग्रेस हालिया तीन प्रमुख आंदोलनों के कारण चर्चा में आए युवा चेहरों को साधने में जुटी है। इस क्रम में पार्टी को ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को साधने में मदद मिली है तो पार्टी दलित नेता जिग्नेश और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को साधने की ओर बढ़ रही है। कांग्रेस को पता है कि गुजरात की हार न सिर्फविपक्ष की भावी संभावनाओं पर पानी फेरेगा, बल्कि जल्द ही पार्टी की कमान संभालने जा रहे उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लगा देगा।
कांग्रेस के उलट भाजपा की चुनौती भी बहुत बड़ी है। चूंकि गुजरात पीएम और अध्यक्ष दोनों का गृह राज्य होने के कारण करीब ढाई दशक से राज्य की सत्ता पर काबिज है। फिर इस बार उसके पास मुख्यमंत्री पद के लिए पीएम मोदी जैसा कद्दावर चेहरा नहीं है।
पार्टी को मालूम है कि यहां चुनाव हारना उसके मिशन 2019 की संभावनाओं पर ग्रहण लगा देगा। पार्टी जिस गुजरात मॉडल के सहारे सत्ता में आई, वहीं मॉडल सियासी रूप से अप्रासांगिक हो जाएगी। विपक्ष इसे केंद्र की मोदी सरकार की साढ़े तीन साल के कार्यकाल पर जनता की राय के रूप में भी प्रचारित करेगा।
भाजपा के लिए चुनौती
करीब ढाई दशक के शासन के कारण सत्ताविरोधी मतों में बढ़ोत्तरी की संभावना
मोदी के पीएम बनने के बाद करिश्माई नेतृत्व का अभाव
पटेल, दलित और ओबीसी वर्ग की कुछ जातियों की नाराजगी
तीनों ही वर्गों के चर्चित नेताओं का कांग्रेस प्रेम
जीएसटी के कारण बढ़ी परेशानी
कांग्रेस की चुनौती
लचर और नेतृत्वविहीन संगठन
राज्य में पीएम मोदी के प्रभाव की ठोस काट नहीं
अल्पेश-जिग्नेश-हार्दिक को एक साथ साधना
कुशल नेतृत्व देने का भरोसा पैदा करना
भाजपा की गुजरात अस्मिता की काट ढूंढना
आखिरकार सियासी महाभारत के बाद चुनाव आयोग ने गुजरात विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा दिया है। इसके साथ ही सत्तारूढ़ भाजपा, वर्तमान सियासत की सबसे मजबूत पीएम नरेंद्र मोदी-भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी और विपक्ष की अग्निपरीक्षा का दौर शुरू हो गया है।
इस सूबे का चुनाव नतीजा न सिर्फ आगामी लोकसभा चुनाव का भविष्य तय करेगा, बल्कि देश की भावी राजनीति की पटकथा लिखने की शुरुआत भी करेगा। सत्तारूढ़ भाजपा की हार जहां मोदी-शाह की जोड़ी के कारण भाजपा के अजेय होने का मिथक तोड़ेगी, वहीं विपक्ष को एकजुट हो कर मुकाबले में उतरने का आत्मविश्वास भी देगी। इसके उलट विपक्ष की हार मिशन 2019 के लिए उसकी बची खुची उम्मीदों पर भी निर्ममतापूर्वक पानी फेर देगा।
पढ़ें: गुजरात चुनाव: कांग्रेस के साथ आएंगे हार्दिक पटेल!
चूंकि सवाल सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष दोनों की सियासत के लिए करो या मरो का है, इसलिए इस चुनाव के लिए दोनों ही पक्षों ने अपनी सारी ताकत झोंक दी है। भाजपा जहां बीते लोकसभा चुनाव के समय से ही पीएम मोदी के चेहरे के साथ गुजरात की अस्मिता के सवाल पर चुनाव मैदान में है, वहीं मुख्य विपक्षी
कांग्रेस सूबे में पहली बार करीब डेढ़ दशक से काबिज भाजपा के खिलाफ जातिगत समीकरणों को अपने पक्ष में करने में जुटी है।
राज्य में चुनाव से ठीक पहले अपने कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला को खो चुकी कांग्रेस हालिया तीन प्रमुख आंदोलनों के कारण चर्चा में आए युवा चेहरों को साधने में जुटी है। इस क्रम में पार्टी को ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को साधने में मदद मिली है तो पार्टी दलित नेता जिग्नेश और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को साधने की ओर बढ़ रही है। कांग्रेस को पता है कि गुजरात की हार न सिर्फविपक्ष की भावी संभावनाओं पर पानी फेरेगा, बल्कि जल्द ही पार्टी की कमान संभालने जा रहे उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लगा देगा।