स्तनपान कराने वाली महिलाओं को बिना किसी झिझक के वैक्सीन लगवाना चाहिए। कोरोना वायरस का वैक्सीन इन माताओं के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है। साथ ही वैक्सीन लेने के बाद लोगों को एंटीबॉडी जांच पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि हर खुराक लगने के बाद एंटीबॉडी शरीर में बनती हैं।
यह तीन तरह से बनती हैं जिनमें से शायद किसी की पहचान बाजार में मौजूद जांच किट के जरिए न हो पाए। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के आईसीएमआर के महामारी और संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख डॉ. समीरन पांडा ने कहा, एंटीबॉडी जांच व्यर्थ है, क्योंकि प्रतिरक्षा केवल इस पर निर्भर नहीं करती।
हर म्यूटेशन उतना खतरनाक नहीं
उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना वायरस का हर म्यूटेशन गंभीर नहीं है। वैक्सीन सभी म्यूटेशन पर काम कर रही है। हालांकि यह बात अलग है कि डेल्टा पर कितना है और बीटा पर कितना? अगर ओवरऑल स्थिति देखते हैं तो इन म्यूटेशन से भी वैक्सीन बचाने में मददगार है।
वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद पहली मौत और दूसरी अस्पताल में भर्ती होने की आशंका सबसे कम हो जाती है। यह सब वैज्ञानिक और चिकित्सीय तौर पर साबित हो चुका है।
टीकाकरण के बाद इम्यून मेमोरी अधिक जरूरी
व्यावसायिक किट्स से जरूरी नहीं है कि एंटीबॉडी की पहचान हो सके। वैक्सीन लगने के बाद तो तीन तरह की प्रतिरोधक क्षमता सामने आती है। एक को एंटीबॉडी मानते हैं दूसरा सेल मध्यस्थता प्रतिरक्षा होती है। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण है इम्यून मेमोरी। इम्यून मेमोरी ही वायरस के शरीर में प्रवेश करते ही सक्रिय हो जाती है।
अस्थमा , धूल एलर्जी वाले भी लगावाएं टीका
डॉ. समीरन पांडा स्पष्ट करते हैं कि अस्थमा, धूल एलर्जी, परागकणों की एलर्जी आदि जैसी सामान्य एलर्जी वाले लोग भी वैक्सीन ले सकते हैं। सह-रुग्णता वाले रोगियों के लिए यह जरूरी है कि पहले वह अपना उपचार कराएं। स्वस्थ होने के बाद या फिर बीमारी स्थिर हो जाए तब टीकाकरण केंद्र पर जाकर वैक्सीन लें।
विस्तार
स्तनपान कराने वाली महिलाओं को बिना किसी झिझक के वैक्सीन लगवाना चाहिए। कोरोना वायरस का वैक्सीन इन माताओं के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है। साथ ही वैक्सीन लेने के बाद लोगों को एंटीबॉडी जांच पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि हर खुराक लगने के बाद एंटीबॉडी शरीर में बनती हैं।
यह तीन तरह से बनती हैं जिनमें से शायद किसी की पहचान बाजार में मौजूद जांच किट के जरिए न हो पाए। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के आईसीएमआर के महामारी और संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख डॉ. समीरन पांडा ने कहा, एंटीबॉडी जांच व्यर्थ है, क्योंकि प्रतिरक्षा केवल इस पर निर्भर नहीं करती।
हर म्यूटेशन उतना खतरनाक नहीं
उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना वायरस का हर म्यूटेशन गंभीर नहीं है। वैक्सीन सभी म्यूटेशन पर काम कर रही है। हालांकि यह बात अलग है कि डेल्टा पर कितना है और बीटा पर कितना? अगर ओवरऑल स्थिति देखते हैं तो इन म्यूटेशन से भी वैक्सीन बचाने में मददगार है।
वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद पहली मौत और दूसरी अस्पताल में भर्ती होने की आशंका सबसे कम हो जाती है। यह सब वैज्ञानिक और चिकित्सीय तौर पर साबित हो चुका है।
टीकाकरण के बाद इम्यून मेमोरी अधिक जरूरी
व्यावसायिक किट्स से जरूरी नहीं है कि एंटीबॉडी की पहचान हो सके। वैक्सीन लगने के बाद तो तीन तरह की प्रतिरोधक क्षमता सामने आती है। एक को एंटीबॉडी मानते हैं दूसरा सेल मध्यस्थता प्रतिरक्षा होती है। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण है इम्यून मेमोरी। इम्यून मेमोरी ही वायरस के शरीर में प्रवेश करते ही सक्रिय हो जाती है।
अस्थमा , धूल एलर्जी वाले भी लगावाएं टीका
डॉ. समीरन पांडा स्पष्ट करते हैं कि अस्थमा, धूल एलर्जी, परागकणों की एलर्जी आदि जैसी सामान्य एलर्जी वाले लोग भी वैक्सीन ले सकते हैं। सह-रुग्णता वाले रोगियों के लिए यह जरूरी है कि पहले वह अपना उपचार कराएं। स्वस्थ होने के बाद या फिर बीमारी स्थिर हो जाए तब टीकाकरण केंद्र पर जाकर वैक्सीन लें।