झारखंड विधानसभा की तस्वीर लगभग साफ हो गई है। गठबंधन को पक्ष में जनता ने मजबूत जनादेश दिया है। पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत मुख्यमंत्री रघुवर दास ने हार स्वीकार करते हुए जनादेश का सम्मान करने की बात कही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रस्तावित हेमंत सोरेन को राज्य विधानसभा चुनाव में जीत के लिए बधाई दी। हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो, कांग्रेस और राजद का गठबंधन राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा पर भारी पड़ा। हम आपको बता रहे हैं भाजपा की हार की बड़ी वजह क्या रही।
भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह जो सामने आ रही है वह है विधानसभा चुनाव में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का गठबंधन से बाहर निकलना। आजसू के बाहर निकलने का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। वहीं, विपक्षी दल झामुमो, कांग्रेस और राजद का गठबंधन एकजुट रहा।
विपक्ष की एकजुटता ने न सिर्फ उसे जीत दिलाई बल्कि उसके वोट प्रतिशत में भी वृद्धि हुई। वहीं भाजपा के वोट प्रतिशत में गिरावट आई और हाथ से सत्ता भी निकल गई।महागठबंधन को पिछली बार के मुकाबले करीब 20 सीटों का फायदा होता दिख रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन को 25 सीटें मिली थीं। 45 सीटों पर महागठबंधन की जीत तय दिख रही है। बहुमत का आंकड़ा 41 है। इससे साफ हो जाता है कि झारखंड की जनता ने महागठबंधन के पक्ष में जनादेश दिया है और रघुवर सरकार को नाकार दिया है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट शेयर में भारी गिरावट
इस साल मई महीने में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने धमाकेदार वापसी की थी। झारखंड में भी भाजपा ने जीत का परचम लहराया था। 14 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 11 सीटें और एक सीट उसके सहयोगी आजसू को मिली थी। यानि भाजपा गठबंधन को लोकसभा में 12 सीटें मिली थीं। उस समय जेएमएम और कांग्रेस को एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा था।
लोकसभा चुनाव में मिले 51 फीसदी वोट
लोकसभा चुनाव के आकंड़ों पर नजर डाले तो भाजपा को झारखंड में 51 प्रतिशत वोट मिले थे और करीब 54 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी। झारखंड में लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर लगभग 10 फीसदी गिरता रहा है। इस हिसाब से भाजपा को उम्मीद था कि उसका वोट शेयर 51 फिसदी से घटकर 41 फिसदी पर आएगा तब भी वह सत्ता में वापसी कर लेंगे। लेकिन आजसू के अलग होने से कुर्मी-कोयरी समेत पिछड़े और दलितों के वोट भाजपा को कम मिले और इन समुदायों का वोट आजसू के खाते में चला गया। आजसू को इस बार विधानसभा में 8 फीसदी वोट मिले हैं जबकि भाजपा को 33 फीसदी वोट मिले हैं। अगर इन दोनों का गठबंधन होता तो दोनों का वोट शेयर 41 फीसदी होता और भाजपा की वापसी हो सकता है।
इस बार 65 पार का नारा फेल
लोकसभा में बड़ी जीत से उत्साहित भाजपा को विधानसभा में वापसी की पूरी उम्मीद थी। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस बार 65 पार का नारा भी दिया था। पीएम मोदी, गृह मंत्री, यूपी के सीएम योगी समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने ताबड़तोड़ रैलियां की थी। लेकिन झारखंड के आदिवासी और पिछड़े वर्ग के वोटरों को लुभाने में भाजपा सफल नहीं हो सकी। भाजपा का आत्मविश्वास और आजसू को दरकिनार करने का खामियाजा उसे भुगतना पड़ा।

झारखंड विधानसभा की तस्वीर लगभग साफ हो गई है। गठबंधन को पक्ष में जनता ने मजबूत जनादेश दिया है। पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत मुख्यमंत्री रघुवर दास ने हार स्वीकार करते हुए जनादेश का सम्मान करने की बात कही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रस्तावित हेमंत सोरेन को राज्य विधानसभा चुनाव में जीत के लिए बधाई दी। हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो, कांग्रेस और राजद का गठबंधन राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा पर भारी पड़ा। हम आपको बता रहे हैं भाजपा की हार की बड़ी वजह क्या रही।
भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह जो सामने आ रही है वह है विधानसभा चुनाव में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का गठबंधन से बाहर निकलना। आजसू के बाहर निकलने का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। वहीं, विपक्षी दल झामुमो, कांग्रेस और राजद का गठबंधन एकजुट रहा।
विपक्ष की एकजुटता ने न सिर्फ उसे जीत दिलाई बल्कि उसके वोट प्रतिशत में भी वृद्धि हुई। वहीं भाजपा के वोट प्रतिशत में गिरावट आई और हाथ से सत्ता भी निकल गई।महागठबंधन को पिछली बार के मुकाबले करीब 20 सीटों का फायदा होता दिख रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन को 25 सीटें मिली थीं। 45 सीटों पर महागठबंधन की जीत तय दिख रही है। बहुमत का आंकड़ा 41 है। इससे साफ हो जाता है कि झारखंड की जनता ने महागठबंधन के पक्ष में जनादेश दिया है और रघुवर सरकार को नाकार दिया है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट शेयर में भारी गिरावट
इस साल मई महीने में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने धमाकेदार वापसी की थी। झारखंड में भी भाजपा ने जीत का परचम लहराया था। 14 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 11 सीटें और एक सीट उसके सहयोगी आजसू को मिली थी। यानि भाजपा गठबंधन को लोकसभा में 12 सीटें मिली थीं। उस समय जेएमएम और कांग्रेस को एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा था।
लोकसभा चुनाव में मिले 51 फीसदी वोट
लोकसभा चुनाव के आकंड़ों पर नजर डाले तो भाजपा को झारखंड में 51 प्रतिशत वोट मिले थे और करीब 54 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी। झारखंड में लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर लगभग 10 फीसदी गिरता रहा है। इस हिसाब से भाजपा को उम्मीद था कि उसका वोट शेयर 51 फिसदी से घटकर 41 फिसदी पर आएगा तब भी वह सत्ता में वापसी कर लेंगे। लेकिन आजसू के अलग होने से कुर्मी-कोयरी समेत पिछड़े और दलितों के वोट भाजपा को कम मिले और इन समुदायों का वोट आजसू के खाते में चला गया। आजसू को इस बार विधानसभा में 8 फीसदी वोट मिले हैं जबकि भाजपा को 33 फीसदी वोट मिले हैं। अगर इन दोनों का गठबंधन होता तो दोनों का वोट शेयर 41 फीसदी होता और भाजपा की वापसी हो सकता है।
इस बार 65 पार का नारा फेल
लोकसभा में बड़ी जीत से उत्साहित भाजपा को विधानसभा में वापसी की पूरी उम्मीद थी। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस बार 65 पार का नारा भी दिया था। पीएम मोदी, गृह मंत्री, यूपी के सीएम योगी समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने ताबड़तोड़ रैलियां की थी। लेकिन झारखंड के आदिवासी और पिछड़े वर्ग के वोटरों को लुभाने में भाजपा सफल नहीं हो सकी। भाजपा का आत्मविश्वास और आजसू को दरकिनार करने का खामियाजा उसे भुगतना पड़ा।
