दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया
हम तो समझे थे बनेंगे ये सहारे आँसू
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा
वो कौन हैं फूलों के जिन्हें हार मिले हैं
आप क्या आए कि रौशन सब अँधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
दिल में हज़ार ज़ख़्म थे जो न उन्हें दिखा सके
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए
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1 month ago
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