साअतें कैसे गुज़ारुँ शब-ए-तन्हाई की
मैं न बख़्शूँगी ख़तायें मेरे हरजाई की
उस का महबूब भी इक रोज़ चला जाये कहीं
और मिले उस को सज़ा ऐसी शनासाई की
वस्ल के ख़्वाब की ताबीर न माँगी कोई
हिज्र के दर्द से ज़ख़्मों की मसीहाई की
दिल की आवाज़ का दरवाज़ा मुक़्फ़फ़ल कर के
बन्द कर दी सभी राहें तेरी रुसवाई की
उजले बादल पे इशारे से "अलीना" लिक्खा
मेरे मोहसिन ने मेरी यूँ भी पज़ीराई की
साभार अलीना इतरत की फेसबुक वॉल से
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