बिठाकर डोली में उसे एक इंसान ले गया
अजनबी शहर का लड़का मेरी जान ले गया
वो फूल था मेरा मैं उसका माली था
मैं दरबार-ए-ख़ुदा में उसका सवाली था
चैन-ओ-क़रार उसी के पास था मेरा
ज़ालिम दुनिया में वही ख़ास था मेरा
छीनकर वो मुझसे मेरा ये गुमान ले गया
अजनबी शहर का लड़का मेरी जान ले गया
तितलियों से उसका दोस्ताना था
उसे प्यार मुझसे वालेहाना था
रंग मोहब्बत के उसमें लगाए थे मैंने
फूल ख़्वाहिशों के उसमें सजाए थे मैंने
हरीफ़ मेरा खुशियों से भरा गुलदान ले गया
अजनबी शहर का लड़का मेरी जान ले गया
यूँ ही नहीं मेरे दिल की मकान-दार थी वो
यक़ीन करो लड़की बहुत शानदार थी वो
बड़े शौक़ से अपनी शेरवानी सिलवाई थी
उसके लिए हार और पाज़ेब भी बनवाई थी
इक लुटेरा लूटकर ये सारा सामान ले गया
अजनबी शहर का लड़का मेरी जान ले गया
पाँव के नीचे से ज़मीं सिमट रही थी
जब गाँव में उसकी डोली उठ रही थी
आसमाँ पर बिजली कड़कड़ाने लगी थी
हवा चराग़ों को बुझाने लगी थी
फिर एक सैलाब बहाके मेरे अरमान ले गया
अजनबी शहर का लड़का मेरी जान ले गया
जान-जान कहकर मुझे बुलाया करती थी
मेरी ग़लतियों पर मुझे समझाया करती थी
कॉल न करने का सबब पूछती थी बार-बार
कहती थी तुम मुझे यूँ ही सताते हो हर बार
ग़मे-हिज्र माज़ी की तरफ़ मेरा ध्यान ले गया
अजनबी शहर का लड़का मेरी जान ले गया
अजनबी मुझको अब समझता है ये ज़माना
बता मुझ मुसाफ़िर का अब कहाँ है ठिकाना
रास्ता मंजिलों तक पहुँचाता नहीं है
और वक़्त भी साथ मेरा निभाता नहीं है
तू गया तो साथ अपने मेरी पहचान ले गया
अजनबी शहर का लड़का मेरी जान ले गया
ज़ख़्म-ए-दिल पे मरहम लगाओ यारों
जाम बनाओ सिगरेट पिलाओ यारों
ये सब्र क्यूँ मुझे आ नहीं रहा
और दर्द भी दिल से जा नहीं रहा
जैसे छीनकर वो मुझसे कुल-जहान ले गया
अजनबी शहर का लड़का मेरी जान ले गया
~ तारिक़
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1 month ago
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